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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

स्वदेशी संसद का शुभारंभ एवं कांग्रेस समेत अनेक विपक्षी दलों में हाहाकार लेखक- सत्येंद्र जैन वरिष्ठ पत्रकार

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स्वदेशी संसद का शुभारंभ एवं कांग्रेस समेत अनेक विपक्षी दलों में हाहाकार
लेखक- सत्येंद्र जैन वरिष्ठ पत्रकार

लोकसभा सचिवालय द्वारा स्वदेशी नवनिर्मित संसद भवन का शुभारंभ कार्यक्रम 28 मई को निर्धारित हो चुका है ।यह संयोग है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक वीर सावरकर की जन्म जयंती भी 28 मई को है।लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला के आग्रह पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कर कमलों द्वारा होना निश्चित हुआ है।कांग्रेस समेत डेढ़ दर्जन से अधिक विपक्षी दलों ने बहिष्कार किया है ।निर्माण के समय से ही कांग्रेस सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का विरोध कर रही है ।सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के अधीन ही संसद भवन एवं अन्य पचास भवनों का निर्माण किया गया है। राहुल गांधी इस प्रोजेक्ट का विरोध कर आरोप लगा रहे थे कि राजा अपना महल बनवा रहा है।धन के अपव्यय का भी आरोप लगाया गया।वह यह भूल गए थे कि उनकी यूपीए सरकार के समय ही तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने नव निर्माण की आवश्यकता पर बल देते हुए केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय को पत्र लिखा था।सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने निर्णय में संपूर्ण प्रोजेक्ट को देश हित में बताया एवं आपत्तिकर्ताओं पर एक लाख रुपए का अर्थ दंड आरोपित किया था। कांग्रेस ने शिलान्यास के समय राष्ट्रीय चिन्ह के स्थापित होने की समय भी विरोध किया था।स्वतंत्रता के पश्चात पहली बार स्वदेशी भवन संसद की कार्यवाही के लिए पूर्णतः तैयार है। राहुल गांधी मलिकार्जुन खरगे समेत समस्त कांग्रेसी नेता अन्य विपक्षी दलों में हाहाकार मचा हुआ है ।विरोध के लिए अनेकों कारण ढूंढ रहे हैं ।जनता के बीच भ्रम की स्थिति निर्मित करने का असफल प्रयास कर रहे हैं ।कुछ दिनों पहले आरोप लगाया गया कि वीर सावरकर जयंती पर क्यों किया जा रहा है? प्रधानमंत्री को इसका शुभारंभ नहीं करना चाहिए।राष्ट्रपति को करना चाहिए ऐसे अनेक आरोप लगाए जा रहे हैं ।लोकसभा अध्यक्ष ने स्वयं जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शुभारंभ करने का आग्रह किया।उनको निमंत्रित किया ।संसद के प्रधान लोकसभा अध्यक्ष होते हैं ।अतः लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय सर्वोपरि है ।यदि किसी को आपत्ति है तो न्यायालय के द्वार भी खुले हैं।भारतीय परंपरा में चोल शासन के समय सत्ता हस्तांतरण के लिए हजारों वर्षों से राजदंड अथवा सैंगोल का उपयोग होता था।15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता के समय वायसराय लार्ड माउंट बैटन ने चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के परामर्श अनुसार सत्ता हस्तांतरण के भारतीय प्रतीक सेंगोल अथवा राजदण्ड को प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भेंट किया था ।सत्ता हस्तांतरण के इस महानतम प्रतीक को पहली बार संसद में लगाया जाएगा।
ऐंसा पहली बार नहीं हो रहा है कि प्रधानमंत्री संसद का शुभारंभ कर रहे हैं।सन 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी संसद भवन के एनेक्सी भवन का शुभारंभ किया था।15 अगस्त 1987 में भी प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसद के पुस्तकालय भवन का शुभारंभ किया था।कांग्रेस के नेता गणों को आरोप लगाने से पूर्व होम वर्क कर लेना चाहिए।जिससे उनकी प्रासंगिकता एवं विश्वसनीयता भारतीय जन मानस अथवा लोकस्मृति में बनी रहे।वर्ष2020 में भी छत्तीसगढ़ में विधानसभा भवन का शिलान्यास छत्तीसगढ़ के प्रथम नागरिक महामहिम तत्कालीन राज्यपाल अनुसुइया उईके जो जनजाति वर्ग से आती हैं,उनसे नहीं करवाया गया। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा सोनिया गांधी और राहुल गांधी से कराया गया ।वर्ष 2011 में भी मणिपुर में भी नवनिर्मित विधानसभा भवन का शुभारंभ भी राष्ट्रपति या वहाँ के राज्यपाल से नहीं कराया गया है।वर्ष 1981 में महाराष्ट्र विधानसभा का उद्घाटन भी भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था।उस समय के राष्ट्रपति या महाराष्ट्र के राज्यपाल ने नहीं किया था ।वर्ष 2010 में तमिलनाडु विधानसभा के सचिवालय भवन उद्घाटन भारत के राष्ट्रपति,तमिलनाडु के राज्यपाल से न करवा कर तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने किया था ।जब सोनिया गांधी संवैधानिक पद पर नहीं थी ।तमिलनाडु और दक्षिण भारत की क्षेत्रीय पार्टियों डीएमके आदि को तो समर्थन कर उदघाटन समारोह में सम्मिलित होना चाहिए क्योंकि चोल साम्राज्य के प्रतीक राजदण्ड ,सेंगोल को पहली बार संसद में स्थापित किया जा रहा है।सेंगोल तमिल गौरव के साथ भारत गौरव को संवर्धित कर रहा है।
सभी विरोध करने वाले दल राष्ट्रपति चुनाव के समय जनजाति गौरव की प्रतीक द्रौपदी मुर्मू के लिए निम्नस्तरीय टिप्पणियाँ कर रहे थे।उनको पराजित करने के लिए यशवंत सिन्हा को अपना प्रत्याशी बनाया था।आज अपना अवसरवादी गुण प्रकट कर रहे हैं।सरकार सबसे कार्यक्रम में सम्मिलित होने का आग्रह कर रही है तो सम्मिलित होना चाहिए ।क्योंकि उत्तरोत्तर समय में संसदीय कार्यप्रणाली में भाग लेने के लिए तो संसद भवन जाना ही पड़ेगा।