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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

24 साल में 28 हजार किमी की पैदल चले; यानी एक साल में औसतन 1,167 किमी सफर किया

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श्री गुरु नानक देव जी ने 24 साल में दो उपमहाद्वीपों के 60 प्रमुख शहरों की पैदल यात्रा की। इस दौरान उन्होंने 28 हजार किमी का सफर किया। उनकी यात्राओं का मकसद समाज में व्याप्त ऊंच-नीच, जात-पात, अंधविश्वास आिद को खत्म कर आपसी सद्भाव, समानता कायम करना था। वह जहां भी गए, एक परमात्मा की बात की और सभी को उसी की संतान बताया। उनकी यह यात्राएं आज भी कई मसलों को हल करने का रास्ता बन सकती हैं।

खास बात ये है कि गुरुजी इन यात्राओं के दौरान रास्ते में पड़ने वाली हर रियासत के राजा या बादशाह से मिले और उन्हें ये बातें समझाईं।

  • पहली यात्रा- गुरु जी अपनी पहली यात्रा के दौरान पंजाब से हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, नेपाल, सिक्किम, भूटान, ढाका, असम, नागालैंड, त्रिपुरा, चटगांव से होते हुए बर्मा (म्यांमार) पहुंचे थे। वहां से वह ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और हरियाणा होते हुए वापस आए थे।
  • दूसरी यात्रा- दूसरी यात्रा में गुरु जी पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान), सिंध, समुद्री तट के इलाके घूमते हुए गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु के तटीय इलाकों से होते हुए श्री लंका पहुंचे और फिर तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा होते हुए वापस आए।
  • तीसरी यात्रा- तीसरी यात्रा में गुरु जी हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, तिब्बत (सुमेर पर्वत का इलाका) होते हुए लेह-लद्दाख, कश्मीर, अफगानिस्तान (काबुल), पश्चिमी पंजाब होते हुए वापस आए थे।
  • चौथी यात्रा- गुरु नानक देव जी अपनी चौथी यात्रा में मुल्तान, सिंध, बलोचिस्तान, जैदा, मक्का पहुंचे और मदीना, बगदाद, खुरमाबाद, ईरान (यहां उनके साथी भाई मरदाना का निधन हो गया था), इसफाहान, काबुल, पश्चिमी पंजाब से होते हुए करतारपुर साहिब वापस लौटे थे।
  • पांचवीं यात्रा- इस यात्रा के प्रमाण की पुष्टि नहीं है, लेकिन डॉ. कुलदीप सिंह ढिल्लों के शोध के मुताबिक, 5वीं यात्रा में 2334 किलोमीटर का सफर किया था।

आज के संदर्भ में यात्राओं का महत्व :
गुरु जी ने अपनी यात्राओं के जरिये समाज और मानवता को एक सूत्र में पिरोने की कोशिश की। ये आज भी प्रासंगिक है। क्योंकि यात्रा वाले इलाके आज भी तरह-तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं। इनमें आतंकवाद प्रमुख है। विद्वानों की मानें तो इन रूटों से हम साउथ एशिया, सेंट्रल एशिया और अरब मुल्कों से आसानी से जुड़ सकते हैं। इनके जरिये अगर ट्रेड व सरहदी बंदिशों में ढील देकर आवाजाही को सुगम बनाया जाए तो समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है।

3 कहानियां – धर्म की कमाई से निकली दूध की धारा, पाप की कमाई से खून की धारा –

1. गुरु जी पहली यात्रा पर निकले थे। वह भाई मरदाना के साथ सैदपुर नगर पहुंचे और वहां मेहनतकश बढ़ई भाई लालो के यहां ठहरे। शूद्र अर्थात नीची जाति के भाई लालो ने सेवा भाव से जो रूखा-सूखा दिया गुरु साहिब ने उसे स्वीकार किया। हालांकि, उस दौर में नीची जाति के यहां ऊंची जाति वालों का खाना-पीना अच्छा नहीं समझा जाता था। खैर, भाई मरदाना ने गुरु जी से सवाल किया कि इस रूखे-सूखे भोजन में भी स्वादिष्ट खाने जैसा आनंद कैसे है? गुरु जी ने कहा कि इस इंसान के दिल में प्रेम है, यह कड़ी मेहनत करके कमाई करता है। इसमें परमात्मा की बरकत पड़ी हुई है।

2. उसी दौर में सैदपुर नगर के जागीरदार मलिक भागो ने ब्रह्म भोज रखा था। उसने दूसरे साधु-संतों के साथ गुरु जी को भी निमंत्रण भेजा। भोज के लिए जो सामग्री इकट्ठा की गई थी, वह किसानों के घरों से जबरन लाई गई थी। सब पहुंचे, लेकिन गुरु जी नहीं आए। भागो ने गुरु जी से भोज में न आने का कारण पूछा। गुरु जी ने उत्तर देने की बजाय भाई लालो के घर का रूखा-सूखा और घर का पूड़ी-हलवा मंगवाया। एक मुट्ठी से लालो जी के रूखे-सूखे खाने को निचोड़ा तो उससे दूध की धारा बह निकली। दूसरी मुट्ठी से जब मलिक भागो के व्यंजन को निचोड़ा तो उसमें से खून की धारा निकली।

निष्कर्ष- गुरु जी ने वहीं कहा, यह है ‘धर्म की कमाई: दूध की धारा’ और यह है ‘पाप की कमाई: खून की धारा’। यहां देख मलिक भागो गुरु जी के चरणों में गिर पड़ा और अपने किए पापों व लूटपाट का प्रायश्चित कर धर्म की कमाई करने लगा।

अच्छा करोगे तो लोगों के दिलों में हमेशा जिंदा रहोगे –
3. एक गांव से गुजरते हुए कुएं के लालची मालिक ने गुरु जी को पैसे दिए बिना पानी देने से मना कर दिया। गुरु जी हाथ से मिट्‌टी खोदने लगे। कुछ ही देर में साफ पानी आने लगा। गांव वाले भी पानी पीने वहां पहुंच गए। कुएं के मालिक ने देखा एक तरफ धारा बह रही थी, दूसरी तरफ उसके कुएं का पानी कम हो रहा था। गुस्से में आकर उसने गुरु जी की ओर पत्थर मारा। गुरु जी ने हाथ आगे किया और पत्थर वहीं रुक गया। ये देख कुएं का मालिक उनके चरणों पर गिर पड़ा। गुरु जी ने समझाया, ‘किस बात का घमंड? खाली हाथ आए थे, खाली हाथ जाओगे। अच्छा करोगे तो लोगों के दिलों में हमेशा जिंदा रहोगे।’

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