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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

प्रचार से पहले रिकॉर्डिंग स्टूडियो में पहुंच रहे नेता, 5 से 20 हजार खर्च कर बनवा रहे चुनावी गाने

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  • किसी गाने की धुन पर अपना गाना बनवाने पर 5 हजार और नई धुन बनवाने पर 20 हजार खर्च 
  • 20 लाख रुपए तक के पैकेज सोशल मीडिया पर भी मिल रहे
  • भाजपा और जजपा गाने बनवाने और सोशल मीडिया पर प्रचार में ज्यादा सक्रिय

Dainik Bhaskar

Sep 24, 2019, 09:36 AM IST

पानीपत (मनोज कौशिक). विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए नेता अलग-अलग रास्ते अपनाने में जुट गए हैं। संभावित उम्मीदवार अपने प्रचार के लिए गीत बनवा कर सोशल मीडिया पर उसे वायरल करा रहे हैं। नेताओं के ये गाने 5 हजार से लेकर 20 हजार रुपए तक में तैयार हो रहे हैं। वहीं, सोशल मीडिया की बात करें तो एजेंसियां और प्रचार कंपनियां 1 लाख से 20 लाख रुपए तक का पैकेज दे रही हैं। हरियाणवी एलबम बनाने वाले सिंगर कृष्ण ढूंढवा कहते हैं कि एक महीना पहले से उनके पास नेताओं की बुकिंग शुरू हो गई थी। छोटे से बड़े नेता तक गीत बनवा रहे हैं। कोई नेता पुरानी धुन या कोई हरियाणवी गाना बनवाता है तो उससे कम से कम 5 हजार रुपए चार्ज किए जाते हैं। यदि कोई नई धुन बनवाना चाहता है तो उसके लिए 20 हजार रुपए तक लेते हैं। कृष्ण ढूंढवा खुद गाना लिखते हैं, खुद ही गाते हैं।

पार्टी- नेता का जैसा एजेंडा, वैसे गाने के बोल 

‘बाबे आली चेल्ली’ गाने से पॉपुलर हुए हरियाणवी राइटर अंशु शर्मा बताते हैं कि पार्टी के हिसाब से गीत लिखे और बनाए जाते हैं। पार्टी और उम्मीदवार का जैसा एजेंडा है, वैसे गीत को बोल होते हैं। इसमें राइटर, सिंगर और म्यूजिक डायरेक्टर शामिल होता है। वे पार्टियों की डिमांड के मुताबिक गीत लिखते हैं। पसंद आए तो उसे रिकॉर्ड करते हैं। रिकॉर्डिंग के बाद पार्टी को ऑडियो उपलब्ध करवा दिया जाता है, लेकिन इसके बाद पार्टियां उस पर अपना वीडियो एडिट करवा लेती हैं। इसका खर्च भी करीब 3 हजार से 10 हजार रुपए तक आ जाता है। अंशु शर्मा भी अब नेताओं के गीत तैयार कर रहे हैं। आने वाले दिनों में काम और बढ़ सकता है।

जैसी सर्विस, वैसा सोशल मीडिया का पैकेज

राजनीतिक प्रचार के लिए दिल्ली में ब्लूस्काई कम्युनिकेशन के नाम से एजेंसी चलाने वाले राहुल कुमार तालान का कहना है कि हर प्रचार के लिए अलग-अलग पैकेज है। यदि किसी नेता को चुनाव के दौरान तीन महीने सर्विस चाहिए हो तो उसके लिए कंपनियां 15 से 20 लाख रुपए चार्ज कर रही हैं। इसमें नेता के विधानसभा क्षेत्र से जुड़ा सर्वे, रिसर्च, फेसबुक, ट्वीटर, वॉट्सऐप हैंडलिंग, आईवीआर (फोन करके नेता का सर्वे और उसका प्रचार विज्ञापन), ग्राफिक्स, पोस्टर, बैनर डिजाइनिंग और नारे बनवाने का काम शामिल है। राहुल का कहना है कि अगर नेता अकेले सोशल मीडिया का पैकेज लेना चाहे तो उससे एक से सवा लाख रुपए चार्ज किए जा रहे हैं। इसमें नेता के सोशल मीडिया पेज का प्रमोशन, उस पर लाइव जनसभाएं, रैलियां, लगातार पोस्टर, ग्राफिक्स से लोगों को एंगेज रखने की कोशिश की जाती है। इसके अलावा फेसबुक पर संबंधित विधानसभा क्षेत्र के लोगों को टारगेट करके पेज प्रमोशन भी किया जाता है। राहुल का कहना है कि कुछ एजेंसियां यह काम कर रही हैं तो कुछ पत्रकार नेताओं के साथ जुड़कर इसे कर रहे हैं।

चुनाव खर्च से बचने को एजेंसियां करती हैं प्रचार

सोशल मीडिया एक्सपर्ट अजय कुमार ने बताया कि नेता एजेंसियां हायर कर रहे हैं। यूं तो प्रत्याशी 28 लाख अधिकतम खर्च कर सकता है, लेकिन पैकेज 20-20 लाख में मिल रहे हैं। ऐसे में एजेंसियां नेताओं से ठेके लेती हैं और फेसबुक, गूगल, वाट्सएप, ट्विटर पर एजेंसी के नाम से विज्ञापन दिखाई देता है। इससे नेता खर्च का हिसाब देने से बच जाते हैं। हालांकि लोकसभा चुनाव में निर्वाचन आयोग ने अमेरिका की 3 कंपनियों से करार किया था, ताकि चुनाव के दौरान सोशल मीडिया के माध्यम से आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों पर कड़ी नजर रखी जा सके। सोशल मीडिया हो या वीडियो विज्ञापन, भाजपा पूरा चुनाव प्रचार कर रही है। इसमें उन्हें जजपा टक्कर दे रही है। वीडियो विज्ञापनों की बात करें तो भाजपा रोजगार और नौकरी देने की बात विज्ञापन से बता रही है।