Mirror 365 - NEWS THAT MATTERS

Dear Friends, Mirror365 launches new logo animation for its web identity. Please view, LIKE and share. Best Regards www.mirror365.com

Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

खोये हुओं का सहारा बनी हरियाणा पुलिस, सिर्फ 8 महीने में ढूंढे 378 बच्चे कभी सुनते है गाने तो कभी करवाते है ड्राइंग, दोस्त बन कर करते है काउंसलिंग

0
88

खोये हुओं का सहारा बनी हरियाणा पुलिस, सिर्फ 8 महीने में ढूंढे 378 बच्चे कभी सुनते है गाने तो कभी करवाते है ड्राइंग, दोस्त बन कर करते है काउंसलिंग

चंडीगढ़, 7 सितंबर – नया शहर, नयी भाषा, आप अनजान और ना कोई अपना।  ऐसे समय में अक्सर इंसान घबरा जाता है। अनजान शहर में किस पर भरोसा करें, इस सवाल का जवाब स्थिति को और भयावह बना देता है।  ऐसे वक्त में जनता सिर्फ पुलिस पर ही उन्हें सुरक्षित घर पहुँचाने का भरोसा करती है।  और इसी कसौटी पर खरी उतर रही है हरियाणा पुलिस की एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट्स। एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट्स न सिर्फ भूले भटकों को उनके परिवार से मिलवा रही है बल्कि भीख व बालमजदूरी में फंसे बच्चों को भी रेस्क्यू करने का कार्य करती है। इस वर्ष, एएचटीयू सिर्फ 8 महीनों में करीबन 378 खोये हुए बच्चों को उनके परिवार से मिलवा चुकी है। कई बच्चे इनमें दिव्यांग थे, जो ना बोल सकते थे और ना सुन सकते थे। इसके अलावा, कई मामलों में, बच्चा ऐसे राज्यों से होता है जहाँ भाषा अलग होने के कारण काउंसलिंग करना मुश्किल हो जाता है।
स्टेट क्राइम ब्रांच चीफ ओ पी सिंह, आईपीएस, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, राज्य अपराध शाखा हरियाणा ने बताया की वर्तमान में स्टेट क्राइम ब्रांच के अधीन 22 मानव तस्करी रोधी इकाई (एएचटीयु) कार्य कर रही है।  सभी यूनिटों में निर्देश दिए गए है की जैसे ही कोई बच्चा, महिला, पुरुष मिलता है तो सबसे पहले उसका उसे सुरक्षित होने का एहसास दिलवाना है।  सभी पुलिस कर्मी उनसे एक परिवार की तरह मिलते है। कोशिश की जाती है की दोनों के बीच एक अपनेपन का रिश्ता स्थापित हो सके ताकि खोये हुए इंसान का भरोसा बने। इससे एएचटीयु को उनके परिवार के बारे में क्लू ढूंढने में आसानी हो जाती है।

कभी भाषा, तो कभी दिव्यांग होना आड़े आ जाता है, लेकिन नहीं मानते हार, सिर्फ एक शब्द से ढूंढ निकालते है परिवार।
पुलिस प्रवक्ता ने बताया की जैसे ही किसी खोये हुए बच्चे, महिला या पुरुष को रेस्क्यू किया जाता है तब सबसे पहले उसकी काउंसलिंग चाइल्ड वेलफेयर कमेटी द्वारा की जाती है। अलग अलग केस में एएचटीयु इंचार्ज को कई-कई घण्टे बैठना पड़ता है। कई बार क्लू में सिर्फ गाँव का नाम, स्थान विशेष, तालाब या मार्केट का नाम होता है। ऐसी स्थिति में घर का पता लगाना काफी मुश्किल हो जाता है लेकिन टीम हार नहीं मानती और उसी क्लू के आधार पर घर-परिवार ढूंढ कर ही चैन लेती है।

इस वर्ष ढूंढे 378 बच्चे, 482 व्यस्क, बचाये 1114 बाल-मजदूर
श्री ओ पी सिंह अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ने बताया की इस वर्ष अगस्त तक 378 नाबालिग जिनमें 205 लड़के व 173 लड़कियां व 482 वयस्क जिनमें 226 पुरुष व 256 महिलाएं को खोज कर परिजनों से मिलवाया गया है। गुम हो चुके लोगों के अलावा एएचटीयु बाल मजदूरी और भीख मांगने वाले बच्चों को भी बचाने का काम करती है।  इस वर्ष, स्टेट क्राइम ब्रांच की एएचटीयु द्वारा करीबन 1114 बाल मजदूरों और 646 बाल भिखारियों को रेस्क्यू किया गया है। यदि आपको कोई बच्चा बालमजदूरी करता दिखे या भीख मांगते दिखे, तो नजरअंदाज ना करें, पुलिस को तुरंत जानकारी दें।

कोई था 18 साल से लापता तो कोई 15 साल से भूल गया था घर की राह, बच्चों से करनी पड़ती है दोस्ती, नहीं बताते की हम पुलिस से है
अक्सर कई केस में देखा जाता है की जब किसी को गुम हुए कई साल हो जाएँ तो आस छोड़ दी जाती है की उनका परिवार ढूंढा नहीं जा सकेगा लेकिन स्टेट क्राइम ब्रांच ऐसा नहीं सोचती है। पुलिस प्रवक्ता ने जानकारी देते हुए बताया की एक केस में एएसआई राजेश कुमार, एएचटीयु , पंचकूला को पता चला की एक दिव्यांग करनाल नारी निकेतन में रह रही है और सिर्फ एक शब्द ‘दलदल‘ बोलती है।  इसी आधार पर आगे कार्रवाई करते हुए  एएसआई राजेश कुमार ने बिहार के छपरा गाँव के पास दलदली बाजार ढूंढ लिया। वहां छपरा गाँव के मुखिया से बात कर उस दिव्यांग लड़की को 15 साल बाद परिवार से मिलवाया। वहीं एक अन्य केस में केरल में उत्तर प्रदेश से लापता लड़की को खोज निकाला।  इसके अतिरिक्त एक अन्य केस में 18 साल बाद गुमशुदा मनोज, जो की मानसिक दिव्यांग है, उसे उसके परिवार से एएसआई जगजीत सिंह, एएचटीयु यमुनानगर ने उत्तर प्रदेश में मिलवाया। मनोज 2004 से गुम था, ऐसे केस में लम्बा समय बीत जाने के कारण दिव्यांग अक्सर अपने परिवार से जुडी बातें भूल जातें है। लेकिन एएसआई जगजीत सिंह ने हार नहीं मानी और उसके भाई को ढूंढ कर, एक लंबे इंतजार का पटाक्षेप किया।

प्यार ही है कुंजी इस सफलता की, परिवार की दुवाएँ और खुशियों में हमारी खुशी: ओ पी सिंह , आईपीएस
अक्सर समाज में पुलिस के प्रति एक गलतफहमी है की पुलिस वाले हमसे प्यार से बात नहीं करते है और ना ही हमारी बात सुनते है।  लेकिन ऐसा नहीं है।  पुलिस 24 घंटे नौकरी करती है और इसी कोशिश में रहती है कि किसी के साथ अन्याय ना हो। हमारे सभी पुलिस कर्मी दोस्तों की तरह इन भूले भटकों से मिलते है। अधिकतर केस में लापता व्यक्ति को तो बताते भी नहीं है की हम पुलिस से है। काउंसलिंग में गुम हो चुके, भयभीत बच्चों और लोगों को एक दोस्त की जरूरत होती है और हमारी सभी यूनिट के पुलिसकर्मी दोस्त बनकर मिलते है। उनके साथ समय बिताते है ताकि वो परिवार से जुडी बातें याद कर सकें।  उसी आधार पर मिलने वाले क्लू पर पुलिस काम करती है और बिछुड़ों को उनके परिवार से मिलवाती है। परिवार से मिलने वाली दुआओं में ही हमें हमारी जीत नजर आती है।
000