Chandigarh July 31, 2023
आज दिनांक 31 जुलाई 2023 को पंजाब विश्वविद्यालय के हिंदी–विभाग में प्रेमचंद जयंती का आयोजन किया गया| कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में पाण्डेय शशिभूषण ‘शीतांशु‘ ऑनलाइन जुड़े | कार्यक्रम का आरम्भ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ | शोधार्थी मनजिंदर कौर ने मुख्य वक्ता का अकादमिक परिचय सभी के समक्ष प्रस्तुत किया | मुख्य वक्ता की ख्याति का आधार उनका साहित्यिक एवं भाषा के क्षेत्र में योगदान रहा है | हिंदी की विविध शैलियों पर उन्होंने अपने विचार अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत किए हैं | विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर बैजनाथ प्रसाद ने मुख्यातिथि का औपचारिक रूप से स्वागत किया | अपने व्याख्यान को आरम्भ करते हुए शीतांशु जी ने सर्वप्रथम अपने विषय ‘प्रेमचंद गहन और व्यापक समदृष्टि के निकष‘ से अवगत कराया और कहा कि प्रेमचंद सीधा, सपाट एवं सहज लिखते हैं परन्तु उनकी रचनाओं में गूढ़ अर्थ छिपे हुए हैं | अपने व्याख्यान हेतु उन्होंने प्रेमचंद की दो कृतियों को आधार बनाया पहली कृति उनकी कहानी ‘कफ़न एवं दूसरी कृति उनका चर्चित उपन्यास ‘गोदान‘ | शीतांशु जी कहते हैं कि प्रेमचंद के रचना संसार का सारा संघर्ष भारतीयता बनाम आधुनिकता का संघर्ष है | उन्होंने आधुनिकता के सन्दर्भ में ‘कफ़न‘ कहानी की समीक्षा संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत की | उन्होंने कहा कि ‘कफ़न‘ कहानी गैर आधुनिक कहानी है | यह हिंदी की पहली उत्तर आधुनिक कहानी है | इस तथ्य की पुष्टि वह विविध तर्कों के माध्यम से करते हैं | वे कहते हैं कि कहानी के पात्र ‘घीसू‘ और ‘माधव‘ दोनों इच्छाओं और मनमानेपन से परिचालित हैं एवं अपने इसी चरित्र को वह काहानी में चरितार्थ करते हैं | दोनों पात्रों के चरित्र में उत्तर आधुनिकता की विशेषताएँ द्रष्टव्य होती हैं | संस्कृत विद्वान मंखक के विचार रखते हुए कहते हैं कि मंखक के अनुसार साहित्यकार भविष्य द्रष्टा होता है | वर्तमान के गर्भ में जो छिपा है उसे साहित्यकार परख लेता है | कफ़न कहानी के माध्यम से शीतांशु जी कर्महीन संस्कृति को विस्तारपूर्वक पात्रों के माध्यम से वर्णित करते हैं | इसके लिए वह ‘महाभारत‘ ग्रन्थ के द्वारा भी अपने तथ्य को पुष्ट करते हैं | प्रेमचंद की रचनाओं को पढने के लिए पाठकीय विवेक का होना अनिवार्य है | उनकी रचनाओं में अर्थ का एक गह्वर है | प्रेमचंद अपनी रचनाओं में ही महान हैं | उनके अनुसार साहित्य पढ़ने के लिए साहित्य विवेक एवं जीवन विवेक चाहिए | इनसे ही हमें कहानी की सही समझ प्राप्त होती है | वे कहते हैं रचना केवल पढ़ी ही नही जाती अपितु सुनी भी