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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

साढ़े तीन साल के बेटे की मां अब बनेगी शहर की ‘सरदार’, बोलीं- मैंने मेयर का पर्चा भरने से पहले घरवालों से कह दिया था जीती तो घर पर खाना नहीं बनाऊंगी…

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पानीपत।नगर निगम चुनाव में भाजपा की भारी जीत हुई। कांग्रेस नेता बुल्ले शाह चारों खाने चित हो गए। मेयर सीट तो हारे ही हारे, पार्षदों के 26 वार्डों में से सिर्फ एक सीट मिली। भाजपा के 22 पार्षद चुनाव जीते। तीन निर्दलीय और एक सीट भाजपा के बागी ले गए। बुल्ले शाह से मजबूत तो उनके बड़े भाई पूर्व विधायक बलबीर पाल शाह के सहयोगी नगर परिषद के पूर्व चेयरमैन मुकेश टुटेजा निकले, जो अपने दो साथियों को सीट जितवाने में सफल रहे। वार्ड-18 से बलराम मकौल और वार्ड-22 से चंचल डावर को टुटेजा का सहयोग था। पिछले निगम में 24 सीट में से भाजपा को सिर्फ 6 सीट मिली थी। 2 सीट इनेलो, कुछ निर्दलीय और कुछ कांग्रेस समर्थित जीते थे।

इस कारण से भूपेंद्र सिंह को तत्कालीन विधायक बलबीर पाल शाह ने मेयर बनाया था। इस बार भाजपा ने पूरी बाजी ही बदल थी। कुछ ऐसे वार्ड थे जहां पर भाजपा हार के प्रति आशंकित थी। मसलन- वार्ड-3, वार्ड-8, 9 सहित अन्य वार्ड, लेकिन मेयर को मिले समर्थन से भाजपा प्रत्याशी भी जीतते चले गए। इससे पहले भाजपा की अप्रत्याशित जीत शुरू हुई तो पहले ही राउंड के बाद कांग्रेस ने मतगणना का बहिष्कार कर दिया। कांग्रेस, वार्ड-9 सीट मानकर चल रही थी, लेकिन पहले राउंड में यहां का रिजल्ट भाजपा के पक्ष में आया। भाजपा की मीनाक्षी नारंग ने शिप्रा विज को हरा दिया तो कांग्रेस नेता बुल्ले शाह, धर्मपाल गुप्ता आदि ने विरोध शुरू कर दिया। उनके प्रत्याशी तो मतगणना केंद्र पर रह गए, बाकी सभी कांग्रेस निकल गए।

मेयर बनने के पहले दिन ही भास्कर ने अवनीत कौर से जानी शहर के प्रति जवाबदेही…


महिला सीट होने की वजह से टिकट आपको मिली। कहा जा रहा है कि आप सिर्फ मुखौटा हैं। मेयर के तौर पर फैसले वही लेंगे?
– देखिए, एक वकील जब प्रेक्टिस शुरू करता है तो उसे तुरंत केस नहीं मिलता है। अगर वह एडवोकेट पिता के साथ काम करे तो उसे भी तुरंत केस मिलने लगते हैं। केस तो वकील लड़ता है, लेकिन पिता पीछे से सपोर्ट कर देता है। पिता भूपेंद्र सिंह को मेयर और राजनीति का अच्छा अनुभव है। मेरे साथ उनका अनुभव जरूर होगा, लेकिन काम मैं ही करूंगी।

 आपको राजनीति का अनुभव नहीं है। ऐसे में पिता के कहे अनुसार चलना आपकी मजबूरी होगी। अफसरों को कैसे टैकल करेंगी, वहां पिताजी नहीं होंगे?

– 22 पार्षद भाजपा के हैं। कांग्रेस की एक ही पार्षद है, वो भी पढ़ी लिखी है। विपक्ष कोई है नहीं, ऐसे में हम सब मिल-जुलकर शहर के काम करेंगे। अफसरों को टैकल करना भी सीख जाऊंगी।

 सच बताइए ! आपको उम्मीद थी कि इतने बड़े मार्जिन से जीतेंगी?
– पहले उम्मीद थी कि 50 हजार वोटों से जीतूंगी, लेकिन अंतिम दो दिनों में ये लगने लगा कि मैं कैसे करके बस जीत जाऊं। एक बार जीती तो 5 साल इतना काम करूंगी कि जनता दोबारा चुन लेगी।

 आप सीएस की तैयारी कर रही थीं। फाउंडेशन क्लियर किया, इंटरमीडिएट के कुछ पेपर भी क्लियर किए लेकिन इस बीच तैयारी रोक कर शादी कर ली। बच्चे की देखरेख कर रही थीं। अब बच्चे की देखभाल, जिम्मेदारियां कैसे बैलेंस करेंगी?

– पर्चा भरने से मैंने परिवार वालों को साफ तौर पर मना कर दिया था कि अगर मैं मेयर बनी तो घर पर टाइम नहीं दे पाऊंगी। बेटे की देखभाल भी नहीं कर पाऊंगी। खाना भी नहीं बनाऊंगी। परिवार वालों ने कहा कि यह हम कर लेंगे। तुम नामांकन करो।

जवाब: जैसे अच्छी प्रैक्टिस के लिए सीनियर वकील की गाइडेंस जरूरी है, वैसे ही पिता सिर्फ दिशा दिखाएंगे, काम मैं करूंगी

अवनीत की बड़ी जीत के तीन मुख्य कारण

1. कांग्रेस के पास सियासी चेहरा नहीं था
कांग्रेस नेता बुल्ले शाह ने अनजान चेहरा अंशु पाहवा को उतार दिया, जिसका शहर में कोई राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं था। पब्लिक भी अनजान थी। इसका भी अवनीत को फायदा मिला। क्योंकि, भाजपा की अवनीत कौर अपने पिता पूर्व मेयर सरदार भूपेंद्र के चेहरे के रूप में चुनाव लड़ रही थीं।

2. कांग्रेस का सिंबल पर चुनाव नहीं लड़ना
चुनाव में जितनी भी ईवीएम उपयोग की गई, सभी में पहले नंबर पर भाजपा का कमल निशान था। चाहे वह मेयर हो या पार्षद। पहले नंबर पर कमल का बटन था। वहीं, कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी के पास अपना चिन्ह नहीं था। 26 पार्षद और एक मेयर के लिए अलग-अलग निशान थे। यह भी अवनीत के पक्ष में गया।

3. भाजपा बनाम बुल्ले शाह ने लड़ा चुनाव
एक तरह पूरी भाजपा चुनाव लड़ रही थी, दूसरी ओर कांग्रेस नेता बुल्ले शाह अकेले थे। साथी के नाम पर नामी चेहरा धर्मपाल गुप्ता ही थे। चुनावी जनसभा में भी बुल्ले शाह ने कहा कि वह अकेले चुनाव लड़ रहे हैं। अगर हाथ का निशान होता और कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़ती तो बहुत फायदे में रहती।

अवनीत की रिकॉर्ड जीत, क्योंकि इससे पहले 53 हजार से रोहिता बनी थीं विधायक

74940 वोटों से जीत का रिकॉर्ड नया और सबसे बड़ा है। क्योंकि, विस चुनाव 2014 में रोहिता रेवड़ी ने शहरी सीट से कांग्रेस के बुल्ले शाह को 53, 721 वोटों से हराया था। पानीपत संबंधी विधानसभा या उससे छोटे चुनाव में यह अब तक की सबसे बड़ी जीत है।

कांग्रेस नेता बुल्ले शाह के वार्ड नंबर 20 से अवनीत को तीन गुना ज्यादा वोट मिले

कांग्रेस नेता बुल्ले शाह की अपने घर में भी हार हो गई। जिस मॉडल टाउन में बुल्ले शाह खुद रहते हैं और उनकी मेयर प्रत्याशी अंशु पाहवा, वहां पर भी भाजपा को कांग्रेस से तीन गुना अधिक वोट मिले। वार्ड-20 में अवनीत को 7344 और अंशु को 2660 वोट मिले। हार का अंतर इसलिए भी बड़ा हुआ, क्योंकि कुल 278 बूथों में से सिर्फ 7 बूथ पर अंशु पाहवा को भाजपा प्रत्याशी अवनीत से ज्यादा वोट मिले। शेष 271 बूथ पर भाजपा प्रत्याशी आगे रही। यहीं वजह रही कि अवनीत कौर भारी मतों से जीतने में सफल रही।

बुल्ले जाएंगे कोर्ट; बोले- ईवीएम में गड़बड़, जहां से दो हजार से जीत की थी उम्मीद, वहीं से हार गए

मतदान के बाद रिजल्ट आने पर भी बुल्ले शाह ने ईवीएम पर सवाल उठाए हैं। शाह का आरोप है कि ईवीएम में गड़बड़ी की गई है। पहली बार ईवीएम से चुनाव कराया गया है, जिस वार्ड से उन्हें दो हजार वोटों से पूरी जीत का उम्मीद थी, वहीं चार हजार वोटों से हार सम्भव ही नहीं है। चुनाव आयोग और हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। शाह ने कहा कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में करारी हार के बाद भाजपा ने यह दांव खेला है। जाकि सरासर गलत है। 50 हजार वोट तो अकेले मेरे थे…

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