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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

शक्ति आराधना का पर्व है नवरात्रि

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शक्ति आराधना का पर्व है नवरात्रि

–         पंडित बीरेन्द्र नारायण मिश्रा

आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होने वाला पर्व शारदीय नवरात्र कहलाता है। शारदीय नवरात्र शक्ति आराधना का उत्सव है। इन नौ दिनों में देवी शक्ति के नौ अलग-अलग रूप की पूजा-आराधना की जाती है। भृगु ज्योतिष केंद्र, महाकाली मंदिर, सेक्टर 30, चंडीगढ़ के ज्योतिषाचार्य पंडित बीरेन्द्र नारायण मिश्रा ने बताया कि इस वर्ष आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा 6 अक्टूबर बुधवार को शाम 4:35 से प्रारम्भ होकर 7 अक्टूबर दिन गुरुवार को 1:47 तक रहेगी।  चित्रा नक्षत्र 6 अक्टूबर की रात्रि 11:20 से प्रारम्भ होकर 7 अक्टूबर रात्रि 9:12 तक रहेगा तथा वैधृति योग 6 अक्टूबर को प्रातः 5:11 से प्रारम्भ होकर 7 अक्टूबर रात्रि 1:39 तक रहेगा। शास्त्रों में ऐसा प्रमाण है कि प्रतिपदा की पूर्ववर्ती 16 घड़ियाँ तथा चित्रा नक्षत्र एवं वैधृति योग का पूर्वार्ध भाग नवरात्रारम्भ के लिया निषिद्ध है। यदि इनका त्याग संभव न हो तो इनके दूषित काल में ही निर्धारित काल अर्थात प्रथम 10 घड़ियाँ या अभिजीत मुहूर्त में घट स्थापन, पूजा आदि कार्य कर लेने चाहिए। 7 अक्टूबर 2021 के दिन चित्रा नक्षत्र का पूर्वार्ध प्रातः 10:17 तक तथा वैधृति योग का पूर्वार्ध दोपहर 3 बजकर 25 मिनट तक है। प्रातः 10:42 से 12:10 तक चर की तथा दोपहर 12:10 से 1:38 तक लाभ की चौघड़िया है। इसके मध्य 11:52 से 12:38 तक अभिजीत मुहूर्त  रहेगा। अतः लाभ कि चौघड़िया और अभिजीत मुहूर्त का संगमकाल प्रातः 11:52 से प्रारम्भ होकर दोपहर 12:38 तक घटस्थापना का सर्वोत्तम मुहूर्त रहेगा।

पंडित बीरेन्द्र नारायण मिश्रा ने बताया कि श्रीमद देवी भागवत पुराण के अनुसार जब नवरात्रि गुरुवार या शुक्रवार से प्रारंभ होते हैं तो इसका अर्थ है कि माता पालकी पर सवार होकर आएंगी। इस साल नवरात्रि का आरम्भ गुरुवार से होने के कारण माता का आगमन पालकी पर होगा। डोली की सवारी शुभ मानी गई है किन्तु तीसरा और चौथा नवरात्र एक ही दिन होने के कारण नवरात्र आठ दिन के होंगे तथा चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग से दूषित होने के कारण यह बहुत शुभ नहीं होंगे। इस समय में राजनैतिक अस्थिरता, महामारी फैलने की संभावनाएं बन रही हैं। किन्तु नवरात्र काल में तीन सर्वार्थ सिद्धि योग, तीन रवि योग तथा एक सिद्धि योग की उपस्थिति इस प्रभाव को काम करेगी।

अखिल भारतवर्षीय ब्राह्मण महासभा चंडीगढ़ इकाई के प्रवक्ता पं मुनीश तिवारी ने कहा कि नवरात्रि में देवी शक्ति माँ दुर्गा के भक्त उनके नौ रूपों की बड़े विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करते हैं। नवरात्रि के अवसर पर कुछ उपासक अन्न त्याग देते हैं तो कुछ एक समय भोजन कर मां शक्ति कि उपासना करते हैं तथा सकाम या निष्काम भाव से “श्री दुर्गा सप्तशती” का पाठ करते हैं। पं मुनीश तिवारी के अनुसार देवीव्रत में कुमारी पूजन परम आवश्यक है। यदि सामर्थ्य हो तो नवरात्र भर अन्यथा समाप्ति के दिन नौ कन्याओं के चरण धोकर देवीरूप का गंध पुष्प आदि से अर्चन कर आदर सहित मिष्ठान्न / भोजन करना चाहिए तथा वस्त्र आदि से सत्कृत करना चाहिए।

नवरात्र में ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए प्रतिदिन 1 कन्या, भोग एवं मोक्ष के लिए 2, धर्म तथा धन संपत्ति के लिए 3, सरकारी पद एवं पदोन्नति के लिए 4, उच्च विद्या के लिए 5, षट्कर्म सिद्धि के लिए 6, उच्च प्रशासनिक एवं वैधानिक पद प्राप्ति के लिए 7, चल एवं अचल संपत्ति के लिए 8 तथा शासन एवं चुनाव में विजय या नेतृत्व पद के लिए 9 कन्याओं का प्रतिदिन पूजन एवं कन्याभोज कराना चाहिए।

नवरात्रि पूजा विधि

– सुबह जल्दी उठें और स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें।

– पूजा सामग्री को एकत्रित करें तथा पूजा की थाल सजाएं।

– मां दर्गा की प्रतिमा को लाल रंग के वस्त्र में रखें।

– मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बोयें और नवमी तक प्रति दिन पानी का छिड़काव करें।

– योग्य सात्विक ब्राह्मण को बुलाकर पूर्ण विधि के अनुसार शुभ मुहूर्त में कलश को स्थापित करें, पहले कलश को गंगा जल से भरें, उसके मुख पर आम की पत्तियां लगाएं और ऊपर नारियल रखें। कलश को लाल कपड़े से लपेंटे और कलावा के माध्यम से उसे बांधें तथा मिट्टी के बर्तन के पास रख दें। तत्पश्चात फूल, कपूर, अगरबत्ती, ज्योत के साथ पंचोपचार पूजा करें।

– नौ दिनों तक माँ दुर्गा से संबंधित मंत्र का जाप करें और माता का स्वागत कर उनसे सुख-समृद्धि की कामना करें।

– अष्टमी या नवमी को दुर्गा पूजा के बाद नौ कन्याओं का पूजन करें और उन्हें तरह-तरह के व्यंजनों (पूड़ी, चना, हलवा) का भोग लगाएं।

– आखिरी दिन दुर्गा के पूजा के बाद घट विसर्जन करें इसमें माँ की आरती गाएं, उन्हें फूल, चावल चढ़ाएं और बेदी से कलश को उठाएं।

शारदीय नवरात्रि की तिथियां

पहला दिन          07 अक्टूबर        मां शैलपुत्री पूजा
दूसरा दिन          08 अक्टूबर        मां ब्रह्मचारिणी पूजा
तीसरा दिन         09 अक्टूबर        मां चंद्रघंटा व मां कुष्मांडा पूजा
चौथा दिन            10 अक्टूबर        मां स्कंदमाता पूजा
पांचवां दिन         11 अक्टूबर        मां कात्यायनी पूजा
छठवां दिन         12 अक्टूबर        मां कालरात्रि पूजा
सातवां दिन         13 अक्टूबर        मां महागौरी पूजा
आठवां दिन        14 अक्टूबर        मां सिद्धिदात्री पूजा
15 अक्टूबरदशहरा (विजयादशमी)

शक्ति आराधना का पर्व है नवरात्रि

–         पंडित बीरेन्द्र नारायण मिश्रा

आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होने वाला पर्व शारदीय नवरात्र कहलाता है। शारदीय नवरात्र शक्ति आराधना का उत्सव है। इन नौ दिनों में देवी शक्ति के नौ अलग-अलग रूप की पूजा-आराधना की जाती है। भृगु ज्योतिष केंद्र, महाकाली मंदिर, सेक्टर 30, चंडीगढ़ के ज्योतिषाचार्य पंडित बीरेन्द्र नारायण मिश्रा ने बताया कि इस वर्ष आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा 6 अक्टूबर बुधवार को शाम 4:35 से प्रारम्भ होकर 7 अक्टूबर दिन गुरुवार को 1:47 तक रहेगी।  चित्रा नक्षत्र 6 अक्टूबर की रात्रि 11:20 से प्रारम्भ होकर 7 अक्टूबर रात्रि 9:12 तक रहेगा तथा वैधृति योग 6 अक्टूबर को प्रातः 5:11 से प्रारम्भ होकर 7 अक्टूबर रात्रि 1:39 तक रहेगा। शास्त्रों में ऐसा प्रमाण है कि प्रतिपदा की पूर्ववर्ती 16 घड़ियाँ तथा चित्रा नक्षत्र एवं वैधृति योग का पूर्वार्ध भाग नवरात्रारम्भ के लिया निषिद्ध है। यदि इनका त्याग संभव न हो तो इनके दूषित काल में ही निर्धारित काल अर्थात प्रथम 10 घड़ियाँ या अभिजीत मुहूर्त में घट स्थापन, पूजा आदि कार्य कर लेने चाहिए। 7 अक्टूबर 2021 के दिन चित्रा नक्षत्र का पूर्वार्ध प्रातः 10:17 तक तथा वैधृति योग का पूर्वार्ध दोपहर 3 बजकर 25 मिनट तक है। प्रातः 10:42 से 12:10 तक चर की तथा दोपहर 12:10 से 1:38 तक लाभ की चौघड़िया है। इसके मध्य 11:52 से 12:38 तक अभिजीत मुहूर्त  रहेगा। अतः लाभ कि चौघड़िया और अभिजीत मुहूर्त का संगमकाल प्रातः 11:52 से प्रारम्भ होकर दोपहर 12:38 तक घटस्थापना का सर्वोत्तम मुहूर्त रहेगा।

पंडित बीरेन्द्र नारायण मिश्रा ने बताया कि श्रीमद देवी भागवत पुराण के अनुसार जब नवरात्रि गुरुवार या शुक्रवार से प्रारंभ होते हैं तो इसका अर्थ है कि माता पालकी पर सवार होकर आएंगी। इस साल नवरात्रि का आरम्भ गुरुवार से होने के कारण माता का आगमन पालकी पर होगा। डोली की सवारी शुभ मानी गई है किन्तु तीसरा और चौथा नवरात्र एक ही दिन होने के कारण नवरात्र आठ दिन के होंगे तथा चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग से दूषित होने के कारण यह बहुत शुभ नहीं होंगे। इस समय में राजनैतिक अस्थिरता, महामारी फैलने की संभावनाएं बन रही हैं। किन्तु नवरात्र काल में तीन सर्वार्थ सिद्धि योग, तीन रवि योग तथा एक सिद्धि योग की उपस्थिति इस प्रभाव को काम करेगी।

अखिल भारतवर्षीय ब्राह्मण महासभा चंडीगढ़ इकाई के प्रवक्ता पं मुनीश तिवारी ने कहा कि नवरात्रि में देवी शक्ति माँ दुर्गा के भक्त उनके नौ रूपों की बड़े विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करते हैं। नवरात्रि के अवसर पर कुछ उपासक अन्न त्याग देते हैं तो कुछ एक समय भोजन कर मां शक्ति कि उपासना करते हैं तथा सकाम या निष्काम भाव से “श्री दुर्गा सप्तशती” का पाठ करते हैं। पं मुनीश तिवारी के अनुसार देवीव्रत में कुमारी पूजन परम आवश्यक है। यदि सामर्थ्य हो तो नवरात्र भर अन्यथा समाप्ति के दिन नौ कन्याओं के चरण धोकर देवीरूप का गंध पुष्प आदि से अर्चन कर आदर सहित मिष्ठान्न / भोजन करना चाहिए तथा वस्त्र आदि से सत्कृत करना चाहिए।

नवरात्र में ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए प्रतिदिन 1 कन्या, भोग एवं मोक्ष के लिए 2, धर्म तथा धन संपत्ति के लिए 3, सरकारी पद एवं पदोन्नति के लिए 4, उच्च विद्या के लिए 5, षट्कर्म सिद्धि के लिए 6, उच्च प्रशासनिक एवं वैधानिक पद प्राप्ति के लिए 7, चल एवं अचल संपत्ति के लिए 8 तथा शासन एवं चुनाव में विजय या नेतृत्व पद के लिए 9 कन्याओं का प्रतिदिन पूजन एवं कन्याभोज कराना चाहिए।

नवरात्रि पूजा विधि

– सुबह जल्दी उठें और स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें।

– पूजा सामग्री को एकत्रित करें तथा पूजा की थाल सजाएं।

– मां दर्गा की प्रतिमा को लाल रंग के वस्त्र में रखें।

– मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बोयें और नवमी तक प्रति दिन पानी का छिड़काव करें।

– योग्य सात्विक ब्राह्मण को बुलाकर पूर्ण विधि के अनुसार शुभ मुहूर्त में कलश को स्थापित करें, पहले कलश को गंगा जल से भरें, उसके मुख पर आम की पत्तियां लगाएं और ऊपर नारियल रखें। कलश को लाल कपड़े से लपेंटे और कलावा के माध्यम से उसे बांधें तथा मिट्टी के बर्तन के पास रख दें। तत्पश्चात फूल, कपूर, अगरबत्ती, ज्योत के साथ पंचोपचार पूजा करें।

– नौ दिनों तक माँ दुर्गा से संबंधित मंत्र का जाप करें और माता का स्वागत कर उनसे सुख-समृद्धि की कामना करें।

– अष्टमी या नवमी को दुर्गा पूजा के बाद नौ कन्याओं का पूजन करें और उन्हें तरह-तरह के व्यंजनों (पूड़ी, चना, हलवा) का भोग लगाएं।

– आखिरी दिन दुर्गा के पूजा के बाद घट विसर्जन करें इसमें माँ की आरती गाएं, उन्हें फूल, चावल चढ़ाएं और बेदी से कलश को उठाएं।

शारदीय नवरात्रि की तिथियां

पहला दिन          07 अक्टूबर        मां शैलपुत्री पूजा
दूसरा दिन          08 अक्टूबर        मां ब्रह्मचारिणी पूजा
तीसरा दिन         09 अक्टूबर        मां चंद्रघंटा व मां कुष्मांडा पूजा
चौथा दिन            10 अक्टूबर        मां स्कंदमाता पूजा
पांचवां दिन         11 अक्टूबर        मां कात्यायनी पूजा
छठवां दिन         12 अक्टूबर        मां कालरात्रि पूजा
सातवां दिन         13 अक्टूबर        मां महागौरी पूजा
आठवां दिन        14 अक्टूबर        मां सिद्धिदात्री पूजा
15 अक्टूबरदशहरा (विजयादशमी)