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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

पारस सुपर स्पैशएलिटी अस्पताल पंचकूला – ब्रेस्ट कैंसर का सुरक्षित और पेन रहित प्रभावशाली उपचार रेडिएशन आन्कोलॉजी से बेहतर:डा. प्रनीत सिंह

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ब्रेस्ट कैंसर का सुरक्षित और पेन रहित प्रभावशाली उपचार रेडिएशन आन्कोलॉजी से बेहतर:डा. प्रनीत सिंह
चंडीगढ़,सुनीता शास्त्री।

ब्रेस्ट कैंसर का सुरक्षित औरपेन रहित, प्रभावशाली ढंग सेउपचार रेडिएशन आन्कोलॉजी से किया जा रहा है । जिसमें रोगी दो दिन हॉस्पिटल में और एक सप्ताह रैस्ट करने के बाद स्वस्ाि हो जाता है अपने काम करने लायक हो जाता हेै। यह बात रेडिएशन आन्कोलॉजी के कंस्लटैंट डा. प्रनीत सिंह ने कही।आज भारतीय महिलाओं में बढ़ रहे ब्रेस्ट (स्तन) कैंसर के रुझान प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए पारस सुपर स्पैशएलिटी अस्पताल पंचकूला के डाक्टरों की टीम ने मीडिया के साथ बातचीत की।

पारस सुपर स्पैशएलिटी अस्पताल पंचकूला अस्पताल के मेडिकल आन्कोलॉजी के डायरेक्टर डा. (ब्रिगेडियर) राजेश्वर सिंह ने बताया कि गत् चार दशकों से भारत में बच्चेदानी के मुंह का कैंसर एक जानलेवा बीमारी बना हुआ था, लेकिन अब छाती का कैंसर सबसे अधिक जानलेवा साबित हो रहा है, जिसके परिणाम स्वरूप इसके मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। भारत में प्रत्येक वर्ष छाती के कैंसर के लगभग 1.55 लाख नए मामले सामने आ रहे हैं।उन्होंने बताया कि पहले कैंसर के सभी मामलों में 65 से 70 प्रतिशत महिलाएं 50 वर्ष से अधिक आयु की थी, परंतु अब जवान महिलाओं में छाती का कैंसर आम जैसा हो गया है और 70 प्रतिशत से अधिक महिलाएं इस बीमारी के अन्तिम पड़ाव पर हैं, जब जीवन की उम्मीद बहुत कम हो जाती है। उन्होंने बताया कि पारस अस्पताल में इसके उपचार के लिए आधुनिक सुविधाएं उपस्थित हैं, जहां माहिर डाक्टर कीमोथैरेपी, इम्यूनोथैरेपी और टारगेटिड थैरेपियों द्वारा उपचार करते हैं।सर्जीकल आन्कोलॉजी के सीनियर कंस्लटैंट डा. राजन साहू ने कहा कि इन दिनों छाती के कैंसर की 50 प्रतिशत मरीज महिलाएं 25 से 50 वर्ष की आयु की हैं। उन्होंने कहा कि भारत में कैंसर से पीडि़त कुछ महिलाएं 27 प्रतिशत छाती के कैंसर की मरीज हैं। उन्होंने कहा कि अब वह इस ढंग के साथ सर्जरी करते हैं कि छाती को बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि प्राथमिक पड़ाव में महिलाएं खुद ध्यान देकर या मैमोग्राफी द्वारा छाती के कैंसर का पता लगा सकती हैं।

मेडिकल आन्कोलॉजी के कंस्लटैंट डा. दीपक सिंगला ने कहा कि छाती के कैंसर को हमारे देश में एक धब्बा समझा जाता है। इस लिए महिलाएं प्राथमिक पड़ाव में इस बारे किसी को जानकारी नहीं देती और न ही परिवार में अपना दु:ख सांझा करती हैं। उन्होंने कहा कि जितनी जल्दी इसके टैस्ट करवा कर पता लगाया जा सके, उतनी शीघ्र ही इस बीमारी का उपचार जल्द संभव है।माहिर डाक्टरों ने बताया कि छाती में गांठ, भारीपन, सोजिश, लाली या निप्पल (स्तन) से तरल पदार्थ का रिसना और निप्पल का मुड़ जाना या अंदर की तरफ धंस जाना, इसके प्राथमिक लक्ष्ण हैं, जिनका स्वै निरीक्षण करके महिलाएं इसका पता लगा सकती हैं और उचित समय पर इसका उपचार शुरू हो सकता है।इस प्रैसवार्ता को रेडिएशन आन्कोलॉजी के कंस्लटैंट डा. प्रनीत सिंह, हिस्टोपैथोलॉजी के प्रमुख और सीनियर कंस्लटैंट डा. हर्ष मोहन ने भी संबोधित किया।