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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

पर्यावरण सुरक्षा के लिए भूमि पेडणेकर ने शूरू की नई पहल, बोलीं- ‘मेरी कोशिश है कि नेचुरल रिसोर्सेज का दुरुपयोग करने वालों की सोच बदले’

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दैनिक भास्कर

Jun 05, 2020, 05:05 AM IST

मुंबई (अमित कर्ण).

भूमि पेडणेकर कई सालों से पर्यावरण संरक्षण को लेकर मुहिम चलाती रही हैं। लॉकडाउन के बीच भूमि OneWishForEarth कैंपेन लेकर आई हैं जिसमें अब अमिताभ बच्चन, अनुष्का शर्मा, करण जौहर जैसे कई सेलेब्स जुड़ चुके हैं। विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर दैनिक भास्कर से उन्होंने अपनी इस मुहीम और इसके लक्ष्य पर खास बातचीत की है। 

OneWishForEarth में कितने सेलेब्स जुड़े हैं? 

मुझे सही तो नहीं पता लेकिन जिन-जिन को मैं पर्सनली जानती हूं, उन सब को मैंने इससे जोड़ा है। शुक्रवार को हम लोग उन सब का डाटा डालेंगे। 

संसाधनों को संभालने के लिए सेलेब्स ने क्या इच्छा की? 

यही कि हम सब लोग अपनी प्रकृति को अगले कुछ सालों में सही होते हुए देखें। जानवरों और बाकी प्रजातियों के साथ जो क्रूरता है, वह कम हो सके। नेचर के साथ हम तालमेस ले रह रहे हैं। सब ने इसी बात पर जोर दिया है कि ऐसा क्या किया जाए, जो हमारी प्रकृति फिर से हरी भरी हो जाए।

सफलता कैसे मिलेगी, प्रदूषण तो फैलेगा ही? 

मैंने पहल का मकसद ही यही है कि हर नागरिक व्यक्तिगत तौर पर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अहम रोल निभाए। सरकार की आलोचना करना आसान है, मगर व्यक्तिगत तौर पर हम क्या कर रहे हैं? अभी भी बेहिसाब प्लास्टिक यूज कर ही रहे हैं। हम लोग इतना खाना, बिजली वेस्ट कर रहे हैं। पहले यह तो स्वीकारा जाए कि क्लाइमेट बदल रहा है। ग्लोबल वॉर्मिंग हो रही है। नेशनल लेवल पर कौन इस मुद्दे पर बात करता है? 

पर्यावरण तो किसी नॉरमल इंटरव्यू में बातचीत का हिस्सा भी नहीं होता। कभी किसी ने मुझसे नहीं पूछा कि प्रकृति पर इतना बोझ जो हम लोग डाल रहे हैं,उसका क्या नतीजा होगा? मेरी इनिशिएटिव का यही मकसद है कि पर्यावरण आम लोगों के लिए सवाल और मुद्दे बनें।

लोगों की सोच कैसे बदलेगी? 

हमें दोगुनी मेहनत करनी होगी प्रकृति को बचाने में। इसके लिए जो लंबी अवधि की योजनाएं हैं, उन पर बिना समय गवाएं क्रियान्वयन करना होगा। यह सोच बदलनी होगी कि विनाश तो 30 साल या 50 साल के बाद होगा। तब जो सिचुएशन आएगी उसे देख लेंगे। इसी अप्रोच को तुरंत बदलना बहुत जरूरी है। वरना क्या चाहते हैं 30 साल बाद जब हमारे आपके बच्चे हों, उन्हें ऑक्सीजन खरीद कर सांस लेनी पड़े। पानी ना हो पीने के लिए, बारिश नहीं हो रही हो।

इंसान अगर नहीं संभला अब भी तो क्या-क्या होगा? 

रोजाना 150 अलग-अलग प्रजातियां हैं विलुप्त हो रही हैं। एक बिलियन से ज्यादा जानवर तो ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग में जलकर खाक हो गए। ऐसी आग न जाने कितनी जगह लगी हैं। हर अमीर के घर में एयर प्यूरीफायर लगा हुआ है। शहरों में पानी की कमी होती है तो गांव से ढो ढो कर लाया जाता है। ऐसे में गांव का किसान क्या करेगा? 

खाना मत बर्बाद करें। वह सबसे बड़ा कंट्रीब्यूटर है ग्लोबल वार्मिंग में। हम लोग जितना अनाज पैदा कर रहे हैं वह अबनॉर्मल है। उस पूरी प्रक्रिया के चलते ग्लोबल वार्मिंग बहुत होता है। जानवरों की तस्करी रोकनी होगी। बतौर ग्राहक हमें बदलना होगा तभी मार्केट छोटी होंगी और जानवरों की तस्करी नहीं होगी। प्रकृति का संतुलन बना रहेगा। यह जो पेंडेमिक हुआ, उसमें वेट मार्केट को बैन करने की मांग उठी है। उस वेट मार्केट को बैन करने से लोग अपने खानपान में बदलाव लाएंगे।

भारत के काम को दुनिया के सामने किस लेवल पर रखा जाता है? 

हिंदुस्तान की आबादी इतनी बड़ी है कि ग्लोबल मीडिया उस बारे में बोले या ना बोले फर्क नहीं पड़ता। फर्क इससे पड़ता है कि हमारी मीडिया इस बारे में कितना प्रचार प्रसार करती है। लोगों के मन में सवाल पैदा करवाती है। भारत क्लाइमेट पॉजिटिव कंट्री है। ऐसी पॉलिसी और इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार हो रहे हैं जिससे हरियाली बढ़े। जो रिन्यूएबल एनर्जी है उसको बढ़ावा दें। 

हिंदुस्तान की कई समस्याओं के समाधान पर्यावरण संरक्षण में छिपे हुए हैं। मेरी कोशिश यह है शहरों के जो नेचुरल रिसोर्सेज एब्यूज करने वाले लोग हैं, उनकी सोच बदले। वह बेपरवाह हैं, क्योंकि उनकी लाइफ में कभी असुविधा नहीं हुई। कभी उन्हें कोसों दूर जाकर पानी नहीं लाना पड़ा। कभी घंटों बिजली के लिए नहीं तरसना पड़ा।