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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

गणपति की स्थापना के आज तीन मुहूर्त: पूजा विधि, मंत्र और आरती

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  • ग्रंथों के अनुसार- गणेश जी का जन्म मध्याह्न काल में हुआ था, इसलिए इसी समय स्थापना और पूजा करनी चाहिए
  • इस दिन किए गए दान, व्रत और शुभ कार्य का कई गुना फल मिलता है
  • प्रतिमा पूर्ण होनी चाहिए, इसमें गणेश जी के हाथों में अंकुश, पाश, लड्डू हो और हाथ वरमुद्रा में हो

Dainik Bhaskar

Sep 02, 2019, 08:29 AM IST

जीवन मंत्र डेस्क. ग्रंथों के अनुसार भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को गणेश जी का जन्म हुआ था। इस तिथि को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। ग्रंथों के अनुसार गणेश जी का जन्म मध्याह्न काल में हुआ था। इसलिए इसी समय गणेशजी की स्थापना और पूजा करनी चाहिए। गणेश चतुर्थी पर गणेश जी की स्थापना और पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है। समृद्धि और सफलता भी मिलती है। ग्रंथों के अनुसार इस दिन किए गए दान, व्रत और शुभ कार्य का कई गुना फल मिलता है और भगवान श्रीगणेश की कृपा प्राप्त होती है।

  • गणेश स्थापना के शुभ मुहूर्त

सुबह : 09:27 से 11:01 तक

दोपहर : 02:15 से 03:30 तक

शाम : 04:00 से रात 08:05 तक

  • कैसी हो गणेशजी की मूर्ति

घर, ऑफिस या अन्य सार्वजनिक जगह पर गणेश स्थापना के लिए मिट्टी की मूर्ति बनाई जानी चाहिए। गणेशजी की मूर्ति में सूंड बाईं ओर मुड़ी होनी चाहिए। घर या ऑफिस में स्थाई रूप से गणेश स्थापना करना चाह रहे हैं तो सोने, चांदी, स्फटिक या अन्य पवित्र धातु या रत्न से बनी गणेश मूर्ति ला सकते हैं। गणेश प्रतिमा पूर्ण होनी चाहिए। इसमें गणेश जी के हाथों में अंकुश, पाश, लड्डू हो और हाथ वरमुद्रा में (आशीर्वाद देते हुए) हो। कंधे पर नाग रूप में जनेऊ और वाहन के रूप में मूषक होना चाहिए।

  • गणेश चतुर्थी की पूजा व स्थापना विधि

1. गणेश चतुर्थी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर दैनिक क्रियाएं कर के, नहाएं और शुद्ध वस्त्र धारण करें। 

2. पूजा के स्थान पर पूर्व दिशा की ओर मुंह रखकर कुश के आसन पर बैठें। 

3. अपने सामने छोटी चौकी के आसन पर सफेद वस्त्र बिछा कर उस पर एक थाली में चंदन या कुमकुम से स्वस्तिक बनाएं और उस पर शास्त्रों के अनुसार सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान श्रीगणेश की मूर्ति स्थापित करें और फिर पूजा शुरू करें।

  • पूजा शुरू करने से पहले ये मंत्र बोलें

गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं। 

उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥

  • इसके बाद संकल्प लेकर ऊं गं गणपतये नम: मंत्र बोलते हुए जल, मोली (पूजा का लाल धागा) चंदन, सिंदूर, अक्षत, हार-फूल, फल, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेहंदी, यज्ञोपवित (जनेउ), दूर्वा और श्रद्धानुसार अन्य सामग्री चढ़ाएं। इसके बाद गणेशजी को धूप-दीप दर्शन करवाएं। फिर आरती करें। 
  • आरती के बाद 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास रखें और 5 ब्राह्मण को दान कर दें। बाकी प्रसाद में बांट दें। फिर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा देने के बाद शाम को स्वयं भोजन करें।

पूजा के बाद ये मंत्र बोलकर गणेशजी को नमस्कार करें 
 

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय |

नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते ||

भगवान श्रीगणेश की आरती

  • आरती मंत्र – 

चंद्रादित्यो च धरणी विद्युद्ग्निंस्तर्थव च |

त्वमेव सर्वज्योतीष आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम ||

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।

माता जाकि पार्वती पिता महादेवा।।

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।

एक दन्त दयावंत चार भुजा धारी।

माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी।। 

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।

अन्धन को आंख देत कोढ़िन को काया।

बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया।।

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।

हार चढ़े फुल चढ़े और चढ़े मेवा।

लड्डूवन का भोग लगे संत करे सेवा।।

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।

माता जाकि पार्वती पिता महादेवा।।