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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

कोरोनाकाल में पटाखे पूरी तरह बैन लगना चाहिए ; परंपराओं को छोड़कर यह वक्त सांस बचाने का : डॉ. एचके खरबंदा

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चंडीगढ़ : 4 Nov; पटाखों से होने वाले प्रदूषण से कोरोना, काॅर्डियक, सीओपीडी व सांस के रोगियों को फेफड़ों में इंफेक्शन का सबसे ज्यादा खतरा रहता है। यह सांसें बचाने का वक्त है इसलिए सरकार को पटाखों को प्रतिबंधित करना चाहिए।
ये कहना है पूर्व अस्सिटेंट प्रोफेसर डॉ. एच के खरबंदा डॉ. एचके खरबंदा का; उन्होंने बताया कि एक छोटा पटाखा 10 लीटर और बड़ा पटाखा 100 लीटर ऑक्सीजन खत्म कर देता है। इससे कोरोना से ठीक हुए मरीजों को भी फिर से बीमारीग्रस्त होने का खतरा बना रहेगा। गौरतलब है कि पोस्ट कोविड लक्षण 90 दिन तक बने रहते हैं।उनका कहना है की दशहरा और दीपावली पर पटाखे जलाकर हम खुशियां मनाते आए हैं, लेकिन कोरोना महामारी को देखते हुए इस बार पटाखों के जलाने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा देना चाहिए। इस बार पटाखे नहीं जलाकर लाेगों की जिंदगियों को खतरे में डालने के गुनहगार नहीं बनें। कोरोनाकाल में लंग्स इंफेक्शन के केस तेजी से बढ़े हैं। कोरोना संक्रमित होने से लेकर निगेटिव आ जाने के बाद भी वायरस का असर 90 दिन रहता है और फेफड़े कमजोर रहते हैं। शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। ऐसे में पटाखे जलाकर हम सल्फर डाइआक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो डाइऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें ही पैदा करेंगे और ऑक्सीजन बहुत कम कर देंगे।

डॉ खरबंदा ने बताया की पुणे स्थित चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन और इंटरडिसिप्लिनरी स्कूल ऑफ हेल्थ साइंस के अध्ययन के हवाले से खुलासा हुआ है कि 1000 पटाखों वाली लड़ 277 सिगरेट के बराबर जहरीला धुआं उगलती है।इसी तरह एक फुलझड़ी से 74 सिगरेट, चकरी से 68 सिगरेट और अनार से 34 सिगरेट के बराबर धुआं निकलता है ।इसके अलावा सांप की एक गोली से निकला जहरीला धुआं 464 सिगरेट के बराबर नुकसान पहुंचाता है । दरअसल छह सबसे ज्यादा खतरनाक पटाखों में सांप की गोली के अलावा, 1000 पटाखों वाली लड़, फुलझड़ी, अनार और चकरी शामिल हैं।पर्यावरण में इससे ऑक्सीजन का लेबल कम हो जाता है।

उन्दोने आगे बताया की डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार विश्व में हर साल प्रदूषण से 70 लाख लोगों की मौत होती है। इससे आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि पटाखे कितने खतरनाक हैं।कोरोना के साथ काॅर्डियक, अस्थमा, ब्लड प्रेशर और सांस के रोगी, गर्भवती महिलाओं व बच्चों को जोखिम है। तेज धमाकों से सुनने की शक्ति कम हो जाती है। लोगों की आंखों में जलन, ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। अस्थमा जैसी बीमारी हो जाती है। भारी पार्टिकल्स जैसे लैड, सल्फर, कोबाल्ट, मरकरी, मैग्नीशियम, बेरियम, स्क्रोल सीएम आदि निकलते हैं। ये फेफड़ों पर बुरा प्रभाव डालते हैं।

डॉ खरबंदा ने बताया की पटाखों में इस्तेमाल रसायन बेहद खतरनाक है। कॉपर, कैडियम, लेड, मैग्नेशियम, सोडियम, जिंक, नाइट्रेट और नाइट्राइट जैसे रसायन का मिश्रण पटाखों को घातक बना देते हैं। इससे 125 डेसिबल से ज्यादा ध्वनि होती है। इसका धुआं हवा खराब करता है। लोगों की श्वास नली में रुकावट, गुर्दे में खराबी और त्वचा संबंधी बीमारियां हो जाती हैं।इसके अलावा हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक का भी खतरा रहता है। मानसिक अशांति और घबराहट के साथ उल्टी होना आम बात है। कई बार नर्वस सिस्टम भी गड़बड़ा जाता है।

पटाखों के धुएं में जहरीली गैसें. ये हैं खतरेसल्फर डाइ आक्साइड और नाइड्रोजन डाइ आक्साइड: आंखों में जलन, श्वांस में तकलीफ, खांसी। कार्बन मोनाअास्काइड: ब्लड कोशिकाअों द्वारा अाक्सीजन लेने जाने की क्षमता को कम करना। हेवी मेटल्स सल्फर, लेड, क्रोमियम, कोबाल्ट, मरकरी मैग्निशियम से स्वस्थ्य व्यक्ति को तुरंत बीमार कर सकता है।

डॉ. खरबंदा का कहना है कोविड के कारण लंग्स पहले ही कमजोर हो जाते हैं। पटाखों से निकले धुएं से लंग्स इंफेक्शन का खतरा है। रिकवर होने वालों को भी दिक्कत हो सकती है। पटाखों से नुकसान के अलावा कोई फायदा नहीं है।सांस सम्बंधित मरीज घर से बाहर न निकलें पटाखों का धुआं कोविड मरीजों के लिए तो खतरनाक है, साथ ही अस्थमा, टीबी, सीओपीडी के मरीजों लिए भी नुकसान दायक है। इन बीमारियों के मरीज अपनी दिनचर्या बनाकर रखें। नियमित व्यायाम करें और अपनी दवाएं लें। पटाखे चलने के समय घर से बाहर नहीं निकलें। गर्भवती महिलाएं, बुजुर्ग और किसी भी गंभीर बीमारी से ग्रसित लोग विशेष सावधानी बरतें।

वातावरण में ऑक्सीजन का स्तर कम करते हैं पटाखे : आतिशबाजी और पटाखों से निकलने वाला धुंआ, हैवी मेटल, जहरीली गैसें वायुमंडल में ऑक्सीजन का स्तर कम कर देती हैं। ये गैस और पार्टिकल एलर्जी व अस्थमा वाले बच्चे के लिए नुकसान दायक तो हैं ही, स्वस्थ बच्चों की भी परेशानी बढ़ा देते हैं। धुआं व हैवी मेटल्स पेड़-पौधों की पत्तियों पर जमा हो जाते हैं। इससे पत्तियों के रंध्र बंद हो जाते हैं और फोटोसिंथेसिस रुक जाता है। इससे पौधों से ऑक्सीजन नहीं बनती है। वातावरण में ऑक्सीजन का लेबल कम हाे जाता है। इस समय यह कोरोना मरीजों के लिए बेहद खतरनाक है।