Dainik Bhaskar
Oct 02, 2019, 07:48 PM IST
रेटिंग | 3.5/5 |
स्टारकास्ट | ऋतिक रोशन, टाइगर श्रॉफ, वाणी कपूर |
निर्देशक | सिद्धार्थ आनंद |
निर्माता |
आदित्य चोपड़ा |
म्यूजिक | विशाल शेखर, संचित बल्हारा |
जॉनर | एक्शन थ्रिलर |
अवधि | 156 मिनट |
बॉलीवुड डेस्क. ‘बैंग बैंग’ जैसी एक्शन फिल्म बना चुके सिद्धार्थ आनंद ने इस फिल्म में भी अपनी यूएसपी बरकरार रखी है। फिल्म एक्शन के घोड़ों पर नहीं तेज रफ्तार से भागते चीतों पर सवार हैं। ऋतिक रोशन और टाइगर श्रॉफ के डोले शोले, सिक्स पैक एब्स, दुनिया के चार महशूर एक्शन कोरियोग्राफर की मेहनत, एग्जॉटिक लोकेशन और हीरो-विलेन की चूहे बिल्ली की दौड़ फिल्म को टॉम क्रूज की एक्शन फिल्मों के समकक्ष लाने की कोशिश करती है। यह यूनिवर्सल अपील की बन सके, उसके लिए सजावट में कोई कसर बाकी नहीं है। पुर्तगाल, फिनलैंड, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों के खूबसूरत लोकेशनों पर इसे शूट किया गया है।
ऋतिक-टाइगर का फेस ऑफ
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ऋतिक रोशन ने धूम-2 और बैंग-बैंग में जो स्वैग वाला एक्शन किया था, वॉर उन दोनों का एक्सटेंशन है। हवा, पानी, जमीन समेत बर्फ पर टाइगर श्रॉफ संग दोनों के एक्शन सीक्वेंस रॉ और रियल लगे हैं। मुक्काें और लातों की बरसातें तो कभी-कभी सुरों की संरचना सी कर गई है। बतौर एक्शन स्टार दोनों की ऑनस्क्रीन जोड़ी अतुलनीय बनी है, जब वे दोनों एक्शन नहीं कर रहे होते तो डांस में भी दोनों ने एक दूजे को कॉम्पिलमेंट किया है। एक टिपिकल एक्शन फिल्म के लिए जरूरी सारे एलिमेंट फिल्म में हैं। बेन जैसपर ने खूबसूरत लोकेशन्स को बखूबी कैमरे में कैप्चर किया है। बेन इससे पहले बैंग-बैंग के भी सिनेमेटोग्राफर थे। विशाल शेखर ने म्यूजिक और डेनियल बी जॉर्ज ने असरदार बैकग्राउंड स्कोर दिया है। अब्बास टायरवाला के वनलाइनर डायलॉग सधे हुए हैं।
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जरा सी दिक्कत कहानी के मोर्चे पर हो गई है। उसे सिद्धार्थ आनंद और आदित्य चोपड़ा ने लिखा है। फिल्म में ट्विस्ट एंड टर्न लाने के लिए श्रीधर राघवन का साथ लिया गया है। तीनों अपने क्राफ्ट में माहिर रहे हैं, पर यहां स्टोरी लाइन प्रीडिक्टबल कर गए हैं। फिल्म का वन लाइनर है कि स्पेशल फोर्स का सबसे जांबाज अफसर कबीर गद्दार निकल गया है, जिसे पकड़ने के लिए उसी के शागिर्द खालिद को भेजा जाता है। उस खालिद को, जिसके पिता पर देशद्रोह का आरोप है।
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फिल्म ओपन सही नोट पर होती है। बिना वक्त गवाए सीधे मुद्दे पर आती है। कबीर को मारना आतंकी को है, मगर मार हैंडलर को देता है। लिहाजा इंटेलिजेंस एजेंसी के अफसर खालिद को भेजते हैं कबीर को पकड़ने। इसके साथ ही साथ देश के दुश्मन रिजवान इलियासी को भी पकड़ना है, जो भारत की सीमा पर बड़ा हमला प्लान कर रहा है। उसे पकड़ने के लिए अलग-अलग मुल्कों की खाक छानी जाती है। आखिरकार क्या होता है, फिल्म उस बारे में ही है। सब कुछ ठीक चल रहा होता है। मगर आगे चलकर मगर फिल्म की आत्मा यानी कहानी के साथ खिलवाड़ सा हो जाता है। जो मोड़ लाए जाते हैं, वे सब प्रीडिक्टबल हो जाते हैं। एक साथ कई मसलों को हैंडल करने के चक्कर में कहानी अपना फोकस खो बैठती है। मध्य क्रम में वह सुस्त होती है। ट्विस्ट एंड टर्न फिल्मी कम सीरियलनुमा ज्यादा हो जाते हैं। कहानी दो लोगों के इर्द गिर्द घूमती है। दोनों ने अपने किरदारों को जस्टिफाइ किया है। एक्शन और डांंस दोनों की यूएसपी हैं। अपने टिपिकल फैंस के लिए उन्होंने ट्रीट तो दी है।
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