धमतरी (छत्तीसगढ़). निर्दलीय प्रत्याशी धर्मेंद्र लोढ़ा बुधवार को कलेक्टोरेट में अपना नामांकन भरने के लिए पहुंचे। उनके पास नकद पैसा नहीं था। इसके बादउन्होंनेअफसरों से डेबिट कार्ड से नामांकन शुल्क लेने को कहा। सरकारी अफसरों ने बतायाकि हम ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि इसे लेकर कोई प्रावधान नहीं है।
इसके बाद लोढ़ा ने कहा कि डिजिटल इंडिया के जमाने में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? फिरउन्होंने मौजूद कर्मचारियों और अधिकारियों से ही पूछा कि जब मेरे पास कैश नहीं है तो मैं क्या करूं? क्या लोगों से उधार मांगू ? उन्होंने आसपास मौजूद लोगों से उधार मांगना भी शुरू कर दिया।कुरूद के भाजपा नेता कमलेश ठोकने से उधार मांगा तो उन्होंने कान पकड़ते हुए कहा कि मेरे पासपैसा नहीं है, माफ कीजिए। कुछ अन्य लोगों से भी उधार मांगा पर उनसे भी नहीं मिला। आखिर में उन्हें एटीएम जाना पड़ा। धर्मेंद्र वहां से कैश लेकर आए और नामांकन पत्रखरीदा।
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भीलवाड़ा. यहां के गुलाबपुरा के सांई धाम मंदिर के पुजारी राजेश गुरुजी नरेन्द्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्रीदेखना चाहते हैं। इसके लिए ये आंख बंद साईं मंत्र साधना कर रहे हैं। 15 फरवरी से आंखें नहीं खोलीं। अब तो आंख पर काली पट्टी भी बांध ली है। लोकसभा चुनावों के बाद ही खोलेंगे। ऐसा क्यों? पूछने पर कहते हैं- साईं का ही सहारा है। मोदी जीतें इसी संकल्प के साथ साईं से प्रार्थना कर रहा हूं।
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रायपुर. रायपुर ग्रामीण विधानसभा सीट पर एक निर्दलीय उम्मीदवार के समर्थक भगवानके गेटअप में कलेक्टोरेट पहुंचे। उनसे इसकी वजह पूछी गई तो उन्होंने कहा कि ऐसा करना हमारे लिए शुभ होगा।
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छुरिया. तस्वीर राजनांदगांव के खुज्जी विधानसभा की है। यहां कुमर्दा गांव का एक किसान खेत से तैयार धान की गठरी सिर पर लादे घर जा रहा था। एक तो भारी गठरी…ऊपर से नीचे तक ऐसी लटकी हुई कि कोई सामने आ जाए तो भी न दिखे। खैर किसान के लिए तो ये रोजमर्रा की जिंदगी है। इत्तफाक से यहां के भाजपा प्रत्याशी इस किसान के पास वोट मांगने पहुंचे। नेताजी किसान का चेहरा नहीं देख पा रहे थे। फिर उन्होंने कमर झुकाई और किसान को देखकर अपने दिल की बात कह दी।
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ग्वालियर. कंप्यूटर बाबा ने बुधवार को शिवराज सरकार के खिलाफ संत समागम किया था। दावा किया गया कि सभी 13 अखाड़ों से साधु-संत आए थे, लेकिन समापन के मौके पर ही इसकी पोल खुल गई।
हुआ यह कि एक स्थानीय संत जैसे ही आयोजन में पहुंचे तो कुछ साधुओं ने उनके पैर छूना शुरू कर दिए। यह देखकर संत ने गौर से साधुओं के चेहरे देखे तो वे पहचान गए। बोले- अरे, तुम लोग भी यहां आए हो? दरअसल, ये लोग महाराज बाड़े के आसपास मंदिरों के बाहर बैठे रहने वाले लोग थे जो भोजन-भंडारे का लाभ उठाने के लिए संत समागम में पहुंच गए थे।