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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

“उसकी हुकूमत में मदमस्त हुआ जब से ,सल्तनत उसी की रग रग में थिरकनेलगी तब से “

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“उसकी हुकूमत में मदमस्त हुआ जब से ,सल्तनत उसी की रग रग में थिरकनेलगी तब से “
आप और हमइस जीवन में क्यों आए हैं ? मनुष्य का जन्म 84 लाख योनियों के बाद मिलता है…लेकिन यह मनुष्य का दुर्भाग्य है. कि वह स्वयं को पहचान नहीं पाता…वह जीवन भर व्यर्थ की बातों में उलझा रहता है…वह कभी नहीं सोचता…कि वो क्या करने आया है इस दुनिया में । अपने जीवन के परम लक्ष्य के बारे में सोचता ही नहीं ।मेरा मानना है कि सभी ग्रंथों में लिखा है और मैं भी यही मानतीहूँ कि
हम सभी इस मानव जीवन में कुछ अच्छा करने के लिए आए हैं…लेकिन क्या हमने अभी तक कोई अच्छा कार्य किया इस धरती पर आ कर ?
पर अच्छा कार्य है क्या ? ये सवाल सब कि मन में आना अनिवार्य है!
अच्छा कार्य यानि धर्म का पालन करते हुए अपने कर्तव्य का पालन करना ही अच्छा कार्य है। वर्तमान कर्तव्य को एक ड्यूटी समझ के करना ही सबसे अच्छा काम है…
भगवान की इच्छा के विरुद्ध कुछ भी नहीं होता ।एक भी काम नहीं हो सकता… उसकी इच्छा के बिना… फिर मनुष्य ये कैसे सोच लेता है कि वह कुछ कर रहा है… यह गोपनीय बात है…
यह मनुष्य की समझ है… जो जीवन को उलझा हुआ समझती है… जिसमें उसने खुद को उलझा लिया है… मेरी समझ में जीवन एक बहता हुआ पानी है… जो बहता ही रहता है ।यह मेरी समझ भी किसी किताब में पढ़ के बनी है ।पर इस पर मेरा विश्वास प्रगाढ़ होता जा रहा है… अगर हम इस जीवन के प्रवाह को जल की भाँति समझें… तो हमें कुछ समझ में आएगा… जैसे ‘श्रीमद्भागवत गीता’ में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं कि “मैं तुम्हें सिर्फ़ एक निमित्त मात्र बनाना चाहता हूँ… तुम सिर्फ अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पित हो जाओ… यानि पूरी लगन से, पूरी निष्ठा से, पूरी चेतना से… तुम अपने कर्तव्यों का पालन करो… परिणाम की चिंता किए बिना”… क्योंकि परिणाम कोई नहीं जानता… यानि परिणाम क्या होगा। भगवान के अलावा कोई नहीं जानता…

जैसे जल अपने ही वेग से बहता जा रहा है ,जैसे-गंगा…तुम धर्म पर चलते हुए ,जो वर्तमान में दिया गया कर्तव्य है उसे निष्ठा से करो….यही तुम्हारा कर्तव्य है…यही और सिर्फ यही…

जैसे जल बहता है… वैसे ही हमारा जीवन…हमारा जीवन जो हर पल नष्ट हो रहा है…या बह रहा है… इक प्रवाह से…उसी प्रवाह में हमनेफूल बिखेरने हैं या पत्थर समेटने हैं…यही हमारे कर्म हैं। इसी से हमारे कर्म लिखे जाएँगे।इसी प्रवाह की गति में जो बाधक बनता है…वह प्रवाह को अपनी समझ के अनुसार चलाने की कोशिश करता है…जो नहीं हो सकता…यह संभव ही नहीं है…
यही मनुष्य के दुख का कारण बनता है…क्योंकि जो वह चाहता है वह नहीं हो रहा है…वह कई उपाय करता है…कि वह प्रवाह की गति रोक सके या उसकी दिशा बदल सके…अपनी समझ के अनुसार…लेकिन उस वेग को रोकना संभव ही नहीं है…अगर हम अपने जीवन की यात्रा को इस प्रवाह के साथ जोड़ दें…तो जीवन आनंदमय हो जाएगा…

Jai Shree Krishna🙏

Shikha Krishna Sharma
Motivational Writer ( Speaker)