चंडीगढ़। दुनियाभर में तिरंगे की शान बढ़ाने वाली 102 वर्षीय एथलीट मान कौर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी अपनी गोद में खिला चुकी हैं। मान कौर ने विशेष बातचीत में बताया कि वह कैप्टन के दादा भूपेंदर सिंह के रसोईघर में काम करती थी। उस समय पटियाला शाही राजघराने के अपने ही ठाठ-बाठ थे। महाराजा भूपेंदर सिंह की कई रानियां थीं। महल में हर समय शादी जैसा उत्सव रहता था। महारानी और रानी साहिबा इतनी मिलनसार थीं कि महल में कभी दिन-रात का अहसास ही नहीं होता था।
उस जमाने में राजा जनता को समझते थे अपना परिवार
चंडीगढ़ में मास्टर एथलीट मीट में मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचीं पटियाला की मान कौर ने बताया कि महाराजा भूपेंदर सिंह इतने अच्छे राजा थे कि रोजाना सैनिकों को पटियाला व अन्य नजदीकी इलाकों में भेजकर पता करवाते थे कि कोई भूखा या ठंड में तो नहीं सो रहा है। अगर कोई ऐसा मिलता तो उसके खाने आदि की व्यवस्था तुरंत कर दी जाती। उन्होंने बताया कि राजा जनता को अपना परिवार समझते थे। आज लोकतंत्र होने के बावजूद देश में अब इतनी जिम्मेदारी से काम नहीं होता है।
सुबह दो गिलास गर्म पानी से शुरू होती है दिनचर्या
मान कौर ने बताया कि वह सुबह उठकर दो गिलास गर्म पानी पीती हैं। इसके बाद अंकुरित गेहंू और अंकुरित चने से बनाई गई स्पेशल दो रोटी खाती हैं तथा एक गिलास दूध पीती हैं। दोपहर के खाने में पतली खिचड़ी और दही लेती हैं। शाम को बीट ग्र्रास का जूस पीती हैं और रात को एक रोटी, कुछ फ्रूट स्लाद और सोया मिल्क लेती हैं।
फिटनेस के लिए रोजाना जाती हूं ग्राउंड
मान कौर ने बताया कि वह रोज रनिंग नहीं करती हैं। एक दिन छोड़कर 50 से 100 मीटर दौड़ लगाती हैं। इसके अलावा अन्य एथलीट गेम्स जेवलिन थ्रो और जिम जाकर खुद को फिट रखती हैं। उन्होंने बताया कि कई लोग उन्हें ऐसा करते देख मजाक भी करते हैं, लेकिन मुझे यह सब करना अच्छा लगता है। हमें उम्र बढऩे के साथ खेलों से किनारा नहीं करना चाहिए।
जब तक सांस है, तब तक दौड़ती रहूंगी
मान कौर ने बताया कि जब तक सांस चलती रहेगी, तब तक दौड़ती रहूंगी। लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना ही उनके जीवन का मकसद है। लोग मेरी लंबी उम्र के बारे में पूछते हैं तो मैं उन्हें यही कहती हूं कि खुश रहिए, दिमाग पर ज्यादा बोझ मत डालिए। जीवन को चलते रहने दीजिए।
गुरुओं की कुर्बानी भूले इसलिए बिगड़े हैं पंजाब के हालात
पंजाब में बढ़ते नशे पर मान कौर ने बताया कि सिखी का पालन करने वाले लोग अपने गुरुओं की कुर्बानी को भूल गए। इसलिए यह हालात बने हुए हैं। जब युवा इस सिखी के मायने और अपने गुरुओं के बलिदान को समझेंगे, तो यकीन यह कौम आगे ही बढ़ेगी।