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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

हाईकोर्ट के फैसले के बाद बीबी जागीर कौर दोआबा में होंगी मजबूत

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कपूरथला.मंगलवार को पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट से एसजीपीसी की पूर्व प्रधान व शिअद की पूर्व कैबिनेट मंत्री बीबी जागीर कौर के पक्ष में आए फैसले के बाद से दोआबा में अब तक उनको अपना नेता न मानने वाले पार्टी नेताओं को एक बड़ा झटका लगा है। चाहे मौजूदा समय में बीबी जगीर कौर शिअद महिला विंग की राष्ट्रीय प्रधान के पद पर भी हैं लेकिन उन पर चुनाव लड़ने की रोक लगने से यहां के अधिकतर नेता उनको अंदर ही अंदर दोआबा की दिग्गज मानने से कतराते थे।

अब अदालत ने उनकी सजा माफ कर यह रास्ता भी साफ कर दिया है। बता दें कि अजीत सिंह कोहाड़ को दोआबा का जरनैल माना जाता था लेकिन उनके निधन के बाद यह पद खाली हो गया है। अब यह पद किसे मिलता है यह तो समय ही बताएगा।

बता दें कि माझा और मालवा में पार्टी के खिलाफ कुछ टकसाली नेताओं के कारण पार्टी को नुकसान हो रहा था लेकिन दोआबा में ऐसे हालात तो नहीं बने लेकिन कुछ नेता अंदर ही अंदर बगावत के सुर अलापते रहे हैं। लेकिन बीबी जगीर कौर के बरी होने के बाद पार्टी को मजबूती मिलने की संभावना है।

एसजीपीसी की प्रधानगी दौड़ में भी हुईं शामिल :
बीबी जगीर कौर भुलत्थ से तीन चुनाव जीत चुकी हैं। साल 2012 में वह कैबिनेट मंत्री भी बनी थी। अदालत से पांच साल की सजा सुनाने पर उनको 13 दिन बाद यह पद छोड़ना पड़ा था। बात एसजीपीसी की प्रधानगी दौड़ की करें तो अब बीबी जागीर कौर इस पद की दौड़ में शामिल हो गईं हैं।

इससे पहले वह पंजाब की पहली महिला एसजीपीसी प्रधान भी रह चुकी हैं। वह पहली बार 1999 और दूसरी बार 2004 प्रधान बनी थीं। चूंकि सजा मिलने के कारण उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लग गई थी तो वह इस पद के लिए दावेदारी नहीं कर पा रही थी। अब जब वह बरी हो गई हैं तो वे इस पद की भी दावेदारी पेश कर सकती है।

खैहरा के लिए भी बनेंगी चुनौती :

हर चुनाव में सजा का मुद्दा बनाकर बीबी जगीर कौर पर कटाक्ष करने वाले ‘आप’ नेता सुखपाल सिंह खैहरा के लिए भी एक बड़ी चुनौती बनेगी। खैहरा का यह मुद्दा खत्म हो गया है और बीबी जागीर कौर पर चुनाव लड़ने की रोक भी हट गई है। ऐसे में आगामी चुनावों में खैहरा को खूब पसीना बहाना पड़ सकता है।

बेटी की हत्या मामले में बरी होने के बाद मंगलवार को श्री दरबार साहिब में शुक्राना अदा करने पहुंची जगीर कौर ने कहा कि उनका वाहेगुरु पर अटूट भरोसा था और यह भरोसा इस फैसले के बाद और मजबूत हुआ है। उनका कहना है कि सच्चे मन से की गई अरदास परमात्मा के घर में जरूर कबूल होती है।

उन्होंने कहा कि उन्हें लगभग 18 साल में आर्थिक, मानसिक तथा सामाजिक तौर पर काफी कुछ झेलना पड़ा है। उन्होंने कहा कि इस फैसले से कानून और न्याय व्यवस्था पर भी उनका विश्वास मजबूत हुआ है। इससे साबित हुआ है कि भले ही देरी हो लेकिन न्याय जरूर मिलता है।

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