- पांच प्रतिशत मजदूर ही बचे हैं, जिनसे कारोबारियों का काम नहीं चल पा रहा
- पंजाब सरकार ने दी श्रमिकों को वापस लाने की इजाजत
दैनिक भास्कर
Jun 09, 2020, 08:14 AM IST
जालंधर. कोरोना महामारी के बाद लगे लॉकडाउन में उद्योग धंधे बंद पड़ गए थे। मजदूरों के सामने रोजी-रोजी का संकट खड़ा हो गया था, लिहाजा बिहार, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों से आकर पंजाब में काम करने वाले मजदूर भी वापस चले गए।
लॉकडाउन खुलने के बाद अब उद्योग चालू हो रहे हैं, लेकिन उनमें काम करने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं। इसलिए पंजाब के व्यापारियों ने मजदूरों को लाने के लिए लग्जरी गाड़ियां तक भेजने की इच्छा प्रशासन के सामने जाहिर की है।
पंजाब के जालंधर जिले की बात करें तो यहां 96640 मजदूरों ने जाने के लिए अपना रजिस्ट्रेशन करवाया था, जिसमें से करीब 95 हजार, यानी करीब 95 प्रतिशत मजदूरों को प्रशासन ट्रेनों से भेज चुका है।
मजदूरों के जाने से इंडस्ट्री, कृषि से लेकर बाजार तक काम-धंधे ठप हैं। सरकार ने इंडस्ट्री चलाने के साथ ही सभी प्रकार के निर्माण कार्य शुरू कर दिए हैं, लेकिन अब कामगारों की कमी के चलते उद्योग धंधे चलाना मुश्किल हो गया है।
इंडस्ट्री चलने, बाजार खुलने और निर्माण कार्य आदि शुरू होने से बढ़ी श्रमिकों की डिमांड
जालंधर में 1.25 लाख कुशल और अकुशल श्रमिक हैं। इनमें 15 से 16 हजार ऐसे श्रमिक हैं, जो साइकिल पैदल या फिर किराये के वाहनों से अपने घरों को जा चुके हैं। इन श्रमिकों ने जिला प्रशासन या फिर सरकार के ऑनलाइन पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन नहीं कराया था। सरकार ने कहा है कि जो लोग श्रमिकों को वापस लाना चाहते हैं, उन्हें इजाजत दी जाएगी। इसके लिए सरकार की ओर से ई-पास देने के अलावा जिला प्रशासन से सीधे अनुमति लिए जाने की छूट है।
मशीनें चलाने को 50% कामगारों की जरूरत
जिले में 2.36710 हेक्टेयर क्षेत्रफल खेती होती है। एक एकड़ एग्रीकल्चर लैंड पर 4 से 5 श्रमिकों की जरूरत होती है। यदि इसी जमीन पर मशीन से काम कराया जाता है, तब भी 2 श्रमिकों की जरूरत रहती है। बिना मजदूरों के खेती संभव नहीं है। मशीनें लगा दी जाएं, तब भी 50% श्रमिकों की जरूरत पड़ती है।
जिले में 18200 औद्योगिक इकाइयां हैं। श्रमिकों की कमी के चलते 17% इंडस्ट्री में काम शुरू हो गया है। फैक्ट्री मालिकों ने 60 हजार से अधिक श्रमिकों के नाम पर कर्फ्यू बनवाए थे, जो जिला इंडस्ट्री केंद्र में दिए थे। इनमें से करीब 80 फीसदी अपने राज्यों को वापस जा चुके हैं।