गोगा नवमी
सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल, कोलकाता
चौहानो में पृथ्वीराज चौहान को कौन नहीं जानते। एतिहासकारो ने पृथ्वीराज चौहान और सयियोगीता हरण के किस्से को मानव जीवन में उतार रख्खा है। इस किस्से पर कई फिल्मे भी बन गयी है। नव जवान प्रेमी प्रेमिकाए इन किस्सों से प्रोत्साहित हो कर प्रेम विवाह तक कर लेते है।
खेर पृथ्वीराज चौहान सिर्फ प्रेम क लिए बल्कि अपने शौर्य, बाहुबल और सशक्त राजा होने के लिए भी मशहूर है। चौहानो के वंश में पृथ्वीराज चौहान के बाद एक और चौहान ऐसे हुए जिन्हे आज भी लोग याद करते है और पूजते भी है। गोगाजी चौहान ही है जाहरवीर बाबा है। गोगाजी राजस्थान के लोक देवता है।
गोगाजी का जन्म
गोगाजी की माता बाछल की शादी जेंवरसिंह से हुई थ। कई वर्षों तक कोई भी संतान नहीं हुई ! कई देवी-देवताओं की शरण में जाने के बाद उनके परिवार के इष्ट देव गुरु गोरखनाथजी के आशिर्वाद व खाने को दिए हुए सुगंधित पदार्थ गुगल से गोगा जी का जन्म विक्रम संवत 1003 में राजस्थान के चुरू के ददरेवा गाँव में हुआ था। इनका नाम गोगा गुरु गोरखनाथ के आशिर्वाद होने के कारण और गो तथा गाय माता का प्रथम अक्षर गा को सम्मिलित कर गोगा रखा गया था। गोगाजी के जन्म से ज़ुरा एक और प्रसंग है की गोगाजी के जन्म से पहले बाछल की ननद को भाभी पर शंका थी ननद ने अपने भाई के कान गलत गलत बातों से भर दिए थे और जेवरजी ने अपनी पत्नी की भर्त्सना की और अपनी निर्दोष पत्नी को मायके बैलगाड़ी में बिठाकर पहुँचा देने की आज्ञा दी। रास्ते में गोगा जी ने माँ के उदर में प्रार्थना की कि उनका जन्म पितृगृह में ही हो। नही तो वे नाडिया कहलायेंगे। इसी बीच बैलगाड़ी के एक बैल को साँप ने काट लिया। बाछलजी को वापस चुरू लौटना पड़ा और वीर गोगा जी का जन्म चूरू में हुआ। गोगाजी के जन्म के बाद गुरु गोरखनाथजी ने जाहरवीर बाबा को अपना शिष्य बना लिया।
गोगाजी का वाहन
नीलवर्ण का घोरा गोगाजी का वाहन था।
गोगाजी की पूजा सामग्री
लॉन्ग, जायफल, कपूर, गुगलु और गौ घी। प्रसाद सामग्री में हरी दुब, चने की दाल विशेस रूप से आवसक है। चन्दन चुरा बाबा की समाधि पर मलने की प्रथा है।
गोगाजी की मृत्यु
गुरु गोरखनाथ के योग, मंत्र, प्रभाव और प्रेरणा से प्रेरित होकर श्रीजाहरवीर गोगाजी ने नीले घोड़े सहित धरती में जीवित समाधी लेकर अमर बलिदान का धर्मध्वजा फहराया।
गोगाजी को प्रकटवीर कहने के पीछे का सत्य
गोगाजी के समाधी लेने के पश्चात वीर गोगाजी ने प्रकट होकर कितनी ही बार अपनी भक्तो की मनोकामना पूरी की है और आज भी भक्तो की मान्यताओं को पूर्ण करते है। इसी कारन गोगाजी को प्रकटवीर कहा गया है।
गोगा नवमी
जन्मास्टमी अष्टमी को मनाई जाती है और इसके अगले ही दिन नन्द महोत्सव मनाया जाता है और इसी दिन ही गोगा नवमी भी मनाई जाती है।