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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

हरियाणा में शिक्षा ढांचे का भी बंटाधार: कुमारी सैलजा

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हरियाणा में शिक्षा ढांचे का भी बंटाधार: कुमारी सैलजा

–लाखों छात्रों का सरकारी स्कूल छोड़ना शिक्षा विभाग के मुंह पर तमाचा

–पूछा, कब थमेगा बेतुकी नीतियों और तुगलकी फरमानों का सिलसिला

चंडीगढ़, 17 जून

हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी सैलजा ने कहा है कि भाजपा-जजपा सरकार की अकुशल- अतार्किक नीतियों, असंगत-अव्यावहारिक दृष्टिकोण के कारण हरियाणा में शिक्षा ढांचे का भी बंटाधार हो रहा है। छात्रों-अभिभावकों का सरकारी स्कूलों से भरोसा टूट चुका। सरकार के लिए इससे शर्मनाक बात और क्या हो सकती है कि छात्र लाखों की संख्या में सरकारी स्कूल छोड़ रहे हैं।

यहां जारी बयान में कुमारी सैलजा ने सरकार को लताड़ते हुए कहा कि जीता-जागता प्रमाण सामने है कि नए शिक्षा सत्र में सरकारी स्कूलों के छात्रों की संख्या चार लाख 33 हजार घट गई। बड़ी- बड़ी डीन्ग हांकने वाले शिक्षा विभाग के मुंह पर यह करारा तमाचा है। इतने भारी भरकम ‘ड्रापआउट’ का साफ संदेश है कि प्रदेश के शिक्षा तंत्र का भविष्य अंधकारमय है। सीएम सिटी करनाल में एक सत्र में 23 हजार बच्चे सरकारी स्कूलों को ‘गुड बाय’ कह गए। शिक्षा मंत्री के जिले का बुरा हाल है। जिस शहर में हरियाणा का शिक्षा बोर्ड है, वहां भी 24 हजार से ज्यादा छात्रों ने सरकारी स्कूलों से मुंह मोड़ लिया।

ऐसे ही फरमानों के कारण उद्योग, चिकित्सा, आधारभूत ढांचा क्षेत्र की दुर्गति हो रही है। हैरानी की बात है कि जमीन खोखली हो चुकी पर सरकार की नजर हमेशा आसमान की ओर रहती है। बेरोजगारी हाहाकारी स्तर तक बढ़ चुकी परंतु सरकार यह नहीं समझ पा रही कि इसे दुरुस्त कैसे किया जाए। बस अंधेरे में तीर चला रही है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने सवाल किया है कि बेतुकी नीतियों और तुगलकी फरमानों का सिलसिला आखिर कब खत्म होगा?
छात्रों को सरकारी स्कूलों से जोड़े रखने के लिए कितने प्रयास हुए?

सरकारी स्कूल किस आधार पर निजी स्कूलों से मुकाबला करेंगे?

बताया जाए कि कितने सरकारी स्कूलों में एजुसेट सिस्टम चालू हालत में हैं?

शिक्षक- छात्र अनुपात ठीक करने का ढिन्ढोरा लगातार पीटा जा रहा है लेकिन क्या इसमें सुधार हुआ?

कन्या शिक्षा में क्या कोई प्रगति हुई?

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सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा देने के दावों की पोल खुली

वहीं कुमारी सैलजा ने कहा कि सरकार को या तो आमजन की समस्याओं की जानकारी नहीं, या फिर वह जानना ही नहीं चाहती। ये दोनों ही स्थितियां दुर्भाग्यपूर्ण हैं। लगभग 17 हजार लाडली पेंशनभोगियों की पेंशन छह महीने से बंद है।लेकिन सरकार के कान पर जूं तक न रेंगना शर्मनाक के साथ दुर्भाग्यपूर्ण है।

एकाएक जन्म प्रमाण पत्र की अनिवार्यता सामने रख कर गरीबों की सांस रोकने जैसी हरकत की गई है। उन्होंने कहा कि विभिन्न विभागों की अव्यवस्थाओं व कार्यशैली को देखकर लगता है, मानो राज्य में सपनों के सौदागरों की सरकार है।