आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में लोगों ने कांग्रेस के खिलाफ जमकर मतदान किया। इस तरह देश में पहली गैरकांग्रेसी सरकार देखने को मिली और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। मगर, कुछ माह के अंदर ही मतभेद गहराए और सत्ता पर काबिज जनता पार्टी में फूट पड़ गई। तब कांग्रेस की मदद से चौधरीचरण सिंह ने सरकार बनाई, लेकिन बाद में कांग्रेस ने उनसे समर्थन वापस ले लिया।
समर्थन वापसी के बादजनवरी 1980 में मध्यावधि चुनाव कराने का फैसला लिया गया। वैसे इंदिरा गांधी को बड़ा मुद्दा 1977 के चुनाव के कुछ महीनों बाद ही मिल चुका था। बिहार के बेलछी में दलितों की हत्या हुई। वे बेलछी तक कार, जीप, ट्रैक्टर, फिर हाथी पर सवार होकर पहुंचीं और दलितों में लोकप्रिय होने लगीं। हालांकि, चुनाव में महंगाई मुद्दा बनी। खासकर प्याज की बढ़ती कीमतें।
प्याज का मुद्दा वॉशिंगटन पोस्ट में छपा
कांग्रेस के प्रचार अभियानों में प्याज की कीमतों का मुद्दा इतना हावी रहा कि अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने चुनाव के बाद लिखा- भारत में कोई भी चीज बिना प्याज के नहीं पक सकती। इसी मुद्दे की बदौलत कांग्रेस ने वापसी भी की। इंदिरा फिर प्रधानमंत्री बनीं। चुनाव से पहले इंदिरा गांधी ने पार्टी का नाम बदलकर कांग्रेस (आई) कर दिया था।
1980 में संजय गांधी के कई समर्थक जीते
पार्टी का चुनावी नारा था- काम करने वाली सरकार को चुनिए। ये नारा इसलिए दिया गया, क्योंकि जनता पार्टी की सरकार काम में कम; सत्ता संघर्ष और इंदिरा गांधी से बदला लेने के प्रयासों में ज्यादा लगी रही। 1980 में संजय गांधी के प्रभाव के कारण बड़ी संख्या में युवा नेता पहली बार संसद पहुंचे। आपातकाल में नसबंदी कार्यक्रम की वजह से छिटककर दूर चले गए मुसलमानों से संजय गांधी ने माफी मांगी और उनका समर्थन हासिल किया।
स्थिर सरकार के कांग्रेस के नारों ने डाला लोगों पर असर
- 1980 के चुनाव में छह राष्ट्रीय पार्टियाें, 19 राज्य स्तरीय दल और 11 रजिस्टर्ड पार्टियों ने चुनाव लड़ा।
- निर्दलीय सहित कुल 4629 उम्मीदवार खड़े हुए थे चुनाव में। तब देश में कुल 35.62 करोड़ मतदाता थे।
- संघ से जुड़े जनता पार्टी के धड़े ने अलग होने का निर्णय लिया, लेकिन चुनाव जनता पार्टी (जेएनपी) से ही लड़ा। अटल बिहारी वाजपेयी जनता पार्टी के टिकट पर दिल्ली से लड़े।
- 1980 में सबसे चर्चित मुकाबला रायबरेली में हुआ। इंदिरा गांधी और जनता पार्टी की उम्मीदवार विजयाराजे सिंधिया के बीच। मुकाबले में इंदिरा गांधी को 2.23 लाख वोट मिले, जबकि विजयाराजे को महज 50,249 वोट ही मिल सके।
- कांग्रेस के नारे- चुनिए उन्हें जो सरकार चला सकें- ने लोगों पर असर छोड़ा। इस नारे के शिल्पकार साहित्यकार श्रीकांत वर्मा थे। इसके साथ ही कांग्रेस ने एक और नारा दिया- जनता पार्टी हो गई फेल, खा गई चीनी पी गई तेल। इसने भी मतदाताओं पर असर डाला।
- उस समय जनता पार्टी के महासचिव रहे समाजवादी नेता रघु ठाकुर कहते हैं कि चुनाव में प्याज के साथ शकर और तेल के दाम भी मुद्दा बने थे। जनता पार्टी आने के बाद शकर की कीमतें 1977 में डी-कंट्रोल कर दी गई थीं, जिससे दाम घटे। 1979 में इसे फिर कंट्रोल किया तो दाम बढ़ गए और कीमतें मुद्दा बनीं।
- कांग्रेस ने महंगाई के तुलनात्मक आंकड़े तक पेश किए। इसमें प्याज, तेल और शकर के रेट बताए गए थे।
1980 में लोकसभा सीटें |
529 |
कांग्रेस ने जीतीं |
353 |
कांग्रेस का वोट % | 42.69 |
जनता पार्टीको मिलीं | 31 सीटें |
जनता पार्टी सेक्युलर को मिलीं | 41 सीटें |
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