गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन गैस सिलेंडरों की कमी से अस्पताल में हुई बच्चों की मौत ने पूरे देश को हिला दिया है. हर कोई परिवारों के दुख में शामिल है और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहा है. घटना के बाद मेडिकल कॉलेज के डॉ. कफील खान का नाम सामने आया जिसमें कहा गया कि उन्होंने मुश्किल समय में ऑक्सीजन सिलेंडर मंगवाए और मदद की. लेकिन अब कफील से जुड़ी कई नई बातें सामने आ रही हैं. जो कि बिल्कुल अलग कहानी दर्शाती हैं.
मेडिकल कॉलेज से जुड़े कई लोगों ने उन मीडिया रिपोर्ट्स पर हैरानी जताई है, जिनमें कफील को किसी फरिश्ते की तरह दिखाया गया है. जबकि सच्चाई बिल्कुल अलग है. डॉ कफील बीआरडी मेडिकल कॉलेज के इन्सेफेलाइटिस डिपार्टमेंट के चीफ नोडल ऑफिसर हैं लेकिन वो मेडिकल कॉलेज से ज्यादा अपनी प्राइवेट प्रैक्टिस के लिए जाने जाते हैं.
उनपर आरोप है कि वो अस्पताल से ऑक्सीजन सिलेंडर चुराकर अपने निजी क्लीनिक पर इस्तेमाल किया करता थे, जानकारी के मुताबिक कफील और प्रिंसिपल राजीव मिश्रा के बीच गहरी साठगांठ थी और दोनों इस हादसे के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं. लेकिन हादसे के बाद से ही उन्हें फरिश्ते की तरह दिखाया गया था, कहा जा रहा है कि इसमें उन्होंने अपने पत्रकार दोस्तों की मदद ली.
डॉ. कफील मेडिकल कॉलेज की खरीद कमेटी का मेंबर हैं, उन्हें भी ऑक्सीजन सप्लाई की स्थिति के बारे में पूरी जानकारी थी. 2 दिन पहले जब सीएम योगी आदित्यनाथ मेडिकल कॉलेज के दौरे पर आए थे वो भी उनके इर्द-गिर्द घूम रहे थे. लेकिन उसने भी उन्हें ऑक्सीजन की बकाया रकम के बारे में कुछ नहीं बताया.
मेडिकल कॉलेज के कई कर्मचारियों और डॉक्टरों ने इस बात की पुष्टि की है कि डॉक्टर कफील वहां होने वाली हर खरीद में कमीशन लेता था और उसका एक तय हिस्सा प्रिंसिपल राजीव मिश्रा तक पहुंचाता था. ऑक्सीजन कंपनी पुष्पा सेल्स के साथ चल रहे विवाद में भी राजीव मिश्रा के साथ कफील का बड़ा हाथ था. हमने जितने लोगों से भी बात की उनमें से ज्यादातर का यही कहना था कि डॉक्टर राजीव मिश्रा, उनकी पत्नी पूर्णिमा शुक्ला और डॉ. कफील अहमद सारे हादसे के असली दोषी हैं.
कफील की भूमिका की जांच जरूरी
मेडिकल कॉलेज के कई कर्मचारियों ने हमें बताया कि शुक्रवार को जब बच्चों की मौत की खबर पर हंगामा मचा तो कफील अपने प्राइवेट अस्पताल में थे. वहां से उन्होंने कुछ सिलेंडरों को अस्पताल भिजवा दिया. क्योंकि ये वो सिलेंडर थे जो वो खुद मेडिकल कॉलेज से चोरी करके ले गए थे. उन्होंने मीडिया को बताया कि इन सिलेंडरों का इंतजाम उन्होंने अपनी जेब से किया है जबकि ऐसा कुछ नहीं था.
एक डॉक्टर जो खुद परचेज कमेटी का मेंबर हो वो ऐसा करने के बजाय सरकारी तरीके से पहले ही सिलेंडर खरीद सकता था. दिन में भी जब मीडिया पहुंची तो बार-बार कफील ही बाहर आकर मीडिया से बात करने लगे, जबकि वो इसके लिए अधिकृत नहीं हैं. बाकी डॉक्टरों का ध्यान बच्चों की देखभाल में था, लेकिन कफील का ध्यान मीडिया पर था.