सेक्टर 17 के नरेश शास्त्री संस्कृत अध्यापक है। फर्कपुर के सरकारी स्कूल में बच्चों को भी नियमित रूप से संस्कृत भाषा का महत्व बता रहे हैं। भाषा को बचाने के लिए गांवों में जाते हैं। वहां मिलन कार्यक्रम कर भाषा का महत्व बताने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। इसी प्रेम के चलते उन्हाेंने अपनी बेटी निधि के विवाह कार्ड संस्कृत भाषा में छपवाए हैं।
यहां तक विवाह समारोह में खाद्य व्यंजन के बाहर भी इसी भाषा में नाम लिखकर लगाए गए। ये अनोखी शादी शहर में चर्चा का विषय बनी है। देहरादून के प्रदीप के साथ निधि परिणय सूत्र में बंधी है। प्रदीप बैंक में पीओ है। बाराती भी हैरान थे कि संस्कृत भाषा पहली बार देखने को मिली है। जिले में अब तक पहली ऐसी शादी है जिसमें संस्कृत का प्रयोग किया गया। नरेश बताते हैं कि 1990 से अध्यापन क्षेत्र में हैं। उनको संस्कृत से बहुत प्यार है। सभी भाषाओं की जननी कहलाने का दर्जा प्राप्त है। देवों की भाषा यही है। फिर अपने ही देश में पिछड़ी हुई है। लोग हिंदी तक बोलना पसंद नहीं करते, ऐसे में उनका संस्कृत प्रेम कई लोगों को रास नहीं आता। अपनी संस्कृति को सहेजने के लिए संस्कृत में कार्ड छपवाए हैं।
वैसे तो हम सब यही मानते हैं कि संस्कृत को देव भाषा कहा जाता है। संस्कृति का अहम हिस्सा रही इस भाषा का उपयोग कम होता जा रहा है। उनकी इच्छा थी कि संस्कृत भाषा का प्रयोग को दैनिक जीवन में किया जाए। संस्कृत का ज्ञान रखने वाले लोगों की संख्या बेहद कम है, लेकिन उनका प्रयास है कि हर जन इसको जाने। हमारे देवता इस भाषा को जानते हैं। उनके यहां जितने भी मेहमान आए, वे सब हैरान थे। सोचने पर मजबूर हुए कि कोई तो है तो संस्कृत को जानता है। नरेश की बेटी निधि एमएससी फिजिक्स किए हैं। इनके दामाद बीटेक है। फिर भी इन दिनों को संस्कृत का अच्छा ज्ञान है। निधि का भाई अभिषित बी-टेक कर रहा है। इनकी भी भाषा पर अच्छी पकड़ है।
10 दिन में संस्कृत बाेलना सिखा देता है संगठन
संस्कृत भाषा के लिए अखिल भारती संगठन से जुड़े हैं। इनके मित्र गिरीश चंद शास्त्री भी इस भाषा को बचाने में लगे हैं। दोनों शहरी एरिया के साथ गांवों जाते हैं। गिरीश संगठन में जिला संयोजक की भूमिका में है। संगठन की विशेषता ये है कि मात्र दस दिन में निशुल्क संस्कृत सिखाता है।
यमुनानगर | शादी में व्यंजनों के नाम संस्कृत में लिखे गए।