पटना (प्रणय प्रियंवद).आप जिनके करीब होते हैं, वो बड़े ही खुशनसीब होते हैं,इश्क में यार कुछ नहीं मिलता, सैकड़ों गम नसीब होते हैं… इस गजल से पद्मश्री पंकज उधास ने भास्कर उत्सव में गुरुवार की शाम की शुरुआत की। ऐसा नहीं है कि पंकज उधास की गजलों को लोगों ने पहले नहीं सुन रखा है, सुन रखा है, लेकिन उनके गाए शब्द आज भी जवान थे। इठलाते, बलखाते और हर किसी के दिलों में मखमली अंदाज में उतरते। पंकज की यह शाम इस साल की आखिरी लाइव परफार्मेंस थी। उन्होंने बताया भी कि कनाडा, आस्ट्रेलिया से घूमते हुए वे साल के अंत में पटनाइट्स के बीच कार्यक्रम करने पहुंचे हैं और यह साल का अंतिम फिनाले है।
पटनाइट्स पर चला आवाज का जादू
भास्कर उत्सव में पंकज उधास को सुनने जब लोग पहुंचे तो इसलिए पहुंचे कि वे उन दिनोें में लौट जाना चाहते थे जिसमें उनकी यादों के साथ पंकज के ग़ज़ल शामिल रहे हैं। उन्होंने गायिकी की ऐसी मंदाकिनी बहाई जिसमें श्रोता बहते रहे।ढाई घंटे तक ऐसा लगा जैसे पूरा एसकेएम संगीत की गैलेक्सी में तब्दील हो गया था। हर चेहरे पर चमक साफ पढ़ी जा सकती थी। यह चांदी जैसी चमक थी। हॉल खचाखच भरा तो भरा लोग खड़े रहकर भी उनको सुनने को आतुर रहे। उन्होंने लोगों को अपनी उन सभी ग़ज़लों को सुनाया जिसकी दीवानगी सिर पर चढ़ कर बोलती रही है। ढलान वाली उमर से लेकर चढ़ान वाली उमर तक में उनकी आवाज का जादू बोलता रहा। जहां कजरे की धार नहीं भी थी वहां भी पंकज की आवाज आंखों को खूबसूरत बनाती रहीं। लोगों ने संग-संग गुनगुनाया- लगता नहीं दिल कहीं बिन आपके…।
इससे पहले 1985 में आए थे पटना
भास्कर के पांच साल होने पर पटना उत्सव की इस शाम को उन्होंने वह आवाज दी कि उनके शब्दों की लय में लोग तालियां बजाते रहे। शाम ढलती रही और आंखों में चमक के साथ दिलों की धड़कनें, शब्दों की धार पर बढ़ती-घटती रही। पटना में अंतिम बार 1985 में उन्होंने गांधी मैदान में जो गाया था, वह इस बार पटना के एसकेएम में गाया। जैसे…निकलो ना बेनकाब जमाना खराब है, उसपे ये शबाब जमाना खराब है, उन्होंने गाना शुरू किया कि ठंड में गर्माहट आ गई। लेकिन यह भी खास रहा कि जब भी कोई गजल खत्म होती थी लोग …चिट्ठी आई है गाने की मांग करने लगते। पंकज ने कहा, ई मेल के जमाने में आप सब लोग हैं। ऐसे में चिट्ठी को पहुंचने में थोड़ी देर लगती ही है, मैंने लिख रखी है, जरूर पहुंच जाएगी। पंकज की चिट्ठी सबसे बाद में पहुंची और जब पहुंची तो लोगों ने तालियों की गर्माहट से उसका स्वागत किया।
हर पीढ़ी ने पंकज के साथ गुनगुनाई गजल
चिट्ठी पहुंचने से पहले उन्होंने गाया- दीवारों से मिलकर रोना अच्छालगता है, हम भी पागल हो जाएंगे, ऐसा लगता है। हर उम्र के लोगों ने उनकी गजलों का खूब लुत्फ उठाया। बुजुर्गों के सिर भी हिलते रहे और युवतियों के चेहरे पर भी खूब चमक दिखती रही। मतलब साफ था इश्क में रूठने-मनाने के दरम्यान पंकज की गजल हर पीढ़ी के लोग गुनगुनाते रहे हैं। पंकज की एक के बाद एक गजल रात को हर किसी को उसकी उन यादों में ले जा रहा था जो मजेदार रही है। ऐसे में ये हमेशा याद रखने वाली खुशनुमा शाम बन गई। उन्होंने गाया- जीएं तो जीएं कैसे बिन आपके, लगता नहीं दिल कहीं बिन आपके….कैसे कहें बिना तेरे जिंदगी अब क्या होगी, जैसे कोई सजा कोई बद्दुआ होगी। यह गाते ही युवाओं का जोश दिखने लगा।
न कजरे की धार… से बांधा समां
युवाओं के जोश को तब और धार मिल गई जब उन्होंने गाया- ना कजरे की धार, नमोतियों के हार… न कोई किया शृंगार, तुम कितनी सुंदर हो…. तेरे होंठ हैं मधुशाला, तू रूप की है ज्योति, तेरी सूरज जैसी मूरत मैं देखूं बार-बार। उनकी आवाज और गजलों का जादू थमने का नाम नहीं ले रहा था और हर गजल के बाद वही …चिट्ठी आई है गाने की ख्वाहिश दर्शक करते रहे। पंकज सब सुनते रहे सब्र से। इसी बीच उन्होंने वह गाया जिसकी दीवानगी खूब दिखती रही है और जिस चांदी जैसे रंग और सोने जैसे बाल की चमक हजारों-लाखों बार गाने के बावजूद जरा भी फीकी नहीं पड़ी है। गोरी का वह बखान जब पंकज की आवाज में हुआ तो हॉल में बैठे हर आशिक की दीवानगी आह कर उठी। उन्होंने गाया- चांदी जैसा रंग है तेरा, सोने जैसे बाल, एक तू ही धनवान है गोरी बांकी सब कंगाल… जो पत्थर छू दे गोरी वो सोना बन जाए, तू जिसको मिल जाए वो हो जाए मालामाल….एक तू ही धनवान है गोरी बाकी सब कंगाल।
आखिर में गाया- चिट्ठी आई है… झूम उठे लोग
चिट्ठी को कब तक पंकज आने से रोकते। लोग भी अंत तक जमे रहे। एसके के एम की सारी कुर्सियों भरी रहीं और सैकड़ों लोग खड़े होकर चिट्ठी के आने का इंतजार करते रहे। आखिर में जब उन्होंने चिट्ठी आई है…..गाया तो पटनाइट्स उनके शब्दों की लय के साथ तालियां दर तालियां बजाने को बाध्य हो गए। …बड़े दिनों के बाद, हम बेवतनों को याद, वतन की मिट्टी लाने वाली चिट्ठी जब आई तो हर किसी का भावुक होना स्वाभाविक था। इसमें पीपल सूना, पनघट सूना के साथ मां का हाल भी बुरा जैसे ही उन्होंने बताया तो लोगों की आंखें नम हो उठीं। पंछी पिंजरा तोड़ के आ जा, देश पराया छोड़ के आ जा…. आ जा उम्र बहुत है छोटी, अपने घर में भी है रोटी.. जैसे ही उन्होंने गाया तो चारों ओर से तालियों ने बताया कि युवाओं के अंदर पलायन की बड़ी टीस है। उन्होंने इसके बाद आइए बारिशों का मौसम है… इन दिनों चाहतों का मौसम है, आज फिर तुमपे प्यार आया है और मोहे आई न जग से लाज मैं इतना जोर से नाची आज की घुंघरु टूट गए… गाए। उन्होंने नए साल की शुभकामनाएं सभी को दीं और जल्द ही फिर से मिलने का वायदा किया। उनके साथ विभिन्न वाद्य यंत्रों पर निर्मल पवार, तेजस, नासिर हुसैन, राशिक मुस्तफा और विशाल ने संगत दिया। कार्यक्रम के बाद जब लोग निकल रहे थे तो कई गजलें लोगों के अंदर लय के साथ शामिल रहीं और लोग पंकज उधास को गुनगुनाते हुए घर लौटे।
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