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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

धावक हिमा और दुती बोलीं- क्रिकेट वर्ल्ड कप के शोर में हमारी उपलब्धियां दफन हो गईं

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  • भारतीय धावक हिमा दास ने 19 दिन में पांच गोल्ड मेडल जीते
  • धावक दुती चंद ने वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में स्वर्ण पदक जीता
  • उन्होंने कहा- सिर्फ 11 सेकंड दौड़ने के लिए रोज 8-8 घंटे मेहनत करते हैं

Dainik Bhaskar

Jul 22, 2019, 09:40 AM IST

नई दिल्ली. 19 दिन में पांच गोल्ड जीतने वाली 19 साल की हिमा दास और वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में गोल्ड जीतकर आईं 23 साल की दुती चंद दोनों फर्राटा धावक हैं। असम की हिमा दास क्रिकेटर्स के मुकाबले अपनी ऐतिहासिक उपलब्धियों को बेहद कम तवज्जो मिलने से दुखी हैं। ओडिशा की दुती चंद को भी यही मलाल है। दुती के मुताबिक, ‘‘11 सेकंड दौड़ने के लिए वर्षों एड़ियां घिसी हैं। धावक रोज सुबह 4 बजे उठकर 8-8 घंटे प्रैक्टिस करता है। ऐसे में अगर देश उसकी उपलब्धियों को नजरअंदाज कर दे, तो उसे कैसा लगेगा। आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं। प्लीज हमें भी क्रिकेटर्स जैसा प्यार दें।’’ हिमा ने पांचवां गोल्ड मेडल शनिवार को जीता।

<img alt="Hima Das" data-caption="हिमा दास ने कहा- इन चैंपियनशिप को सिर्फ अभ्यास की तरह देखती हूं।” data-entity-type=”file” data-entity-uuid=”096601a7-d9de-459d-a4cb-8bbc51342dc9″ src=”https://visuals.dbnewshub.com/bhaskar/cms-assets/richtext-editor/images/hima-1200.jpg”>

सवाल: आपने लगातार 5 गोल्ड जीते। अपने प्रदर्शन को कैसे देखती हैं?
हिमा: मैं इन्हें प्रतियोगिता नहीं मान रही, बल्कि अभ्यास मान रही हूं। मैं बस अपना बेस्ट देने की कोशिश कर रही हूं। ताकि, वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए क्वालिफाई कर सकूं। हालांकि, इसको लेकर मैं अभी कुछ नहीं कहना चाहती हूं।

सवाल: ऐसा क्यों कह रही हैं कि आपकी सफलता को जितना सम्मान मिलना चाहिए, उतना अभी नहीं मिल रहा है?
हिमा: लोगों का प्यार और सम्मान तो मिल रहा है। उसी वजह से मैं यहां तक पहुंच पाई हूं। हां, क्रिकेट भी खेल है। मीडिया की देन है कि क्रिकेट को पूरा सम्मान मिल पाया है। ऐसे में मीडिया की ये भी तो जिम्मेदारी है कि ऐसा ही सम्मान बाकी खेलों को भी मिले। लोग एथलेटिक्स की प्रतियोगिताओं के बारे में जितना जानेंगे, उतना ज्यादा प्यार करेंगे।

सवाल: यह आपका अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। लगातार गोल्ड मेडल जीतने के लिए क्या स्ट्रेटेजी अपना रही हैं?
हिमा: जिस दिन इवेंट नहीं होता है उस दिन सुबह शेड्यूल के मुताबिक अभ्यास करती हूं। शाम को भी 2 से 3 घंटे मैदान में पसीना बहाती हूं। हालांकि, अभी लगातार इवेंट के लिए एक देश से दूसरे देश जाने में ट्रैवलिंग ज्यादा हो रही है। बीच-बीच में परिवार से बात करती हूं। असम में बाढ़ से मेरे पैरेंट्स परेशान हैं। लेकिन, जब भी उनसे बात होती है तो वो यही कहते हैं कि घर की चिंता छोड़कर सिर्फ गेम पर ध्यान दूं।

सवाल: जब आप गोल्ड जीत रहीं थीं, तब आपका घर बाढ़ से डूब रहा था। गेम पर फोकस कैसे किया?

हिमा: मैंने बस शेड्यूल फॉलो किया। साथ ही ट्विटर पर लोगों से अपील की है कि असम में बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए लोग आगे आएं। बाढ़ ने जनजीवन तबाह कर दिया है। मेरी अपील बड़े खिलाड़ियों से भी है।

<img alt="Dutee Chand" data-caption="दुती चंद बोलीं- जूते नहीं थे, नंगे पैर दौड़ते-दौड़ते छालों से दोस्ती हो गई।” data-entity-type=”file” data-entity-uuid=”52c95d7f-5907-4690-84cc-15e509e50661″ src=”https://visuals.dbnewshub.com/bhaskar/cms-assets/richtext-editor/images/dutee-chand.jpg”>

सवाल: आपने क्रिकेट वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल वाले दिन गोल्ड मेडल जीता। इस सफलता को आप कैसे देखती हैं?
दुती: 11.32 सेकंड में 100 मीटर रेस जीतने जैसी ऐतिहासिक सफलता क्रिकेट वर्ल्ड कप के बीच दब गई। जबकि, मैं इस टूर्नामेंट में गोल्ड मेडल जीतने वाली भारत की एकमात्र लड़की हूं। ज्यादा पैसों के चलते ज्यादातर मीडिया क्रिकेट की उपलब्धियों को ही तवज्जो देते हैं। क्रिकेट तो 8-10 देश ही खेलते हैं। लेकिन, एथलेटिक्स में 200 देशों के खिलाड़ी भाग लेते हैं। यह जीत ज्यादा बड़ी है।

सवाल: ओलिंपिक के बाद दूसरे सबसे बड़े टूर्नामेंट में गोल्ड जीतने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ा?
दुती: बीपीएल परिवार से निकली हूं। खाने को नहीं होता था। जब दौड़ती थी, पैर में जूते नहीं होते थे। नंगे पैर दौड़ते-दौड़ते छालों से दोस्ती हो गई। जब जो-जैसा मिला, बस खा लिया। ओडिशा सरकार से जूते तक के लिए मिन्नतें करनी पड़ती थीं। लेकिन, कभी मेहनत करना नहीं छोड़ा। इटली में मिला गोल्ड मेडल इसी मेहनत का नतीजा है।

सवाल: टूर्नामेंट से पहले आपके समलैंगिक रिश्ते को तूल दिया गया। इस दबाव को कैसे झेला?
दुती: वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स से पहले रिलेशनशिप को ज्यादा तूल दिया गया, ताकि मैं डिस्टर्ब हो जाऊं। परिवार भी नाराज था। इस दौरान मैं कोच से बातचीत करती रही। ध्यान सिर्फ प्रैक्टिस में लगाने के लिए योग का सहारा लिया। इससे फायदा हुआ।