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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

केन्द्रीय एवं राज्यीय फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं के निदेशकों की चंडीगढ़ में बैठक, नए आपराधिक कानूनों के अनुरूप फॉरेंसिक विज्ञान सेवाओं को सुदृढ़ करने पर हुआ मंथन

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केन्द्रीय एवं राज्यीय फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं के निदेशकों की चंडीगढ़ में बैठक, नए आपराधिक कानूनों के अनुरूप फॉरेंसिक विज्ञान सेवाओं को सुदृढ़ करने पर हुआ मंथन

 

चंडीगढ़, 23 मई, 2025: केंद्रीय फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं (CFSL) और राज्यीय फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं (FSL) के निदेशकों की दो दिवसीय राष्ट्रीय बैठक आज सीएफएसएल, चंडीगढ़ में आरंभ हुई। बैठक का विषय है – “नए आपराधिक कानूनों के अनुसार फॉरेंसिक विज्ञान सेवाओं को सुदृढ़ करना।”

इस बैठक के उद्घाटन सत्र में उत्तर प्रदेश राज्य फॉरेंसिक विज्ञान संस्थान (UPSIFS), लखनऊ के संस्थापक निदेशक एवं एडीजीपी डॉ. जी.के. गोस्वामी मुख्य अतिथि रहे। उनके साथ सीडीटीआइ की निदेशक श्रीमती रानी बिंदु शर्मा, एसपी (ऑपरेशंस) श्रीमती गीतांजलि खंडेलवाल, और गृह मंत्रालय के डीएफएसएस के प्रमुख फॉरेंसिक वैज्ञानिक डॉ. एस.के. जैन भी उपस्थित रहे। देश भर से केंद्रीय और राज्यीय फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं के निदेशकगण भी इस अवसर पर मौजूद थे।

“यह समय है ‘विकास से क्रांति’ की ओर बढ़ने का”
सम्बोधित करते हुए डॉ. जी.के. गोस्वामी, आईपीएस ने कहा कि यह फॉरेंसिक विज्ञान का युग है। पहले फॉरेंसिक साक्ष्य एक विकल्प था, लेकिन अब यह अनिवार्यता बन गया है। उन्होंने विशेष रूप से बीएनएसएस की धारा 176(3) का उल्लेख करते हुए बताया कि अब थाना प्रभारी को अनिवार्य रूप से फॉरेंसिक विशेषज्ञ को अपराध स्थल पर बुलाना होगा जिससे साक्ष्य से छेड़छाड़ या गलत व्याख्या की संभावना न रहे। उन्होंने इसे एक क्रांतिकारी कदम बताते हुए कहा कि इसके लिए सरकार द्वारा पर्याप्त बजट भी प्रदान किया गया है।
“सरकार ने अपना कार्य कर दिया है, अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस अवसर को सफलता में बदलें,” उन्होंने कहा।

उन्होंने जॉन स्टुअर्ट मिल का उदाहरण देते हुए कहा कि समाज का अंतिम लक्ष्य ‘सबसे अधिक संख्या के लोगों की सबसे अधिक खुशी’ है और इसके लिए न्याय प्रदान करना सबसे महत्वपूर्ण साधन है। न्याय प्राप्त करने के लिए एकीकृत, अंतरविषयी दृष्टिकोण और ईमानदारी आवश्यक है।

“फॉरेंसिक वैज्ञानिकों को पुलिस की भूमिका को समझना चाहिए और पुलिस को वैज्ञानिक जांच की”

सीडीटीआई की निदेशक श्रीमती रानी बिंदु शर्मा ने पुलिस और वैज्ञानिक जांचकर्ताओं के बीच समन्वय की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि नए आपराधिक कानूनों में फॉरेंसिक विज्ञान को महत्वपूर्ण भूमिका दी गई है।

“यदि हम मिलकर कार्य करें, तो हम वांछित परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। सभी प्रयोगशालाओं में आवश्यक व्यवस्था की जाएगी,” उन्होंने कहा।

“फॉरेंसिक विज्ञान अपराधों की परतें खोलने में प्रमुख स्तंभ बन चुका है”
गृह मंत्रालय के डीएफएसएस के प्रमुख फॉरेंसिक वैज्ञानिक डॉ. एस.के. जैन ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि यह बैठक ऐसे समय पर हो रही है जब भारत सरकार ने तीन नए आपराधिक कानूनों को लागू किया है, जिससे आपराधिक न्याय प्रणाली में व्यापक परिवर्तन आ रहा है। उन्होंने बताया कि बीएनएसएस की धारा 176(3) के तहत अब अपराध स्थलों पर फॉरेंसिक विशेषज्ञ की उपस्थिति अनिवार्य हो गई है, खासकर वे अपराध जिनमें सात वर्ष या उससे अधिक की सजा का प्रावधान है।
“यह बैठक एक व्यवस्थित और समन्वित कार्य योजना विकसित करने की दिशा में कदम है,” उन्होंने कहा।

“तीनों नए आपराधिक कानूनों के सफल कार्यान्वयन हेतु एक मंच”
एसपी (ऑपरेशंस) श्रीमती गीतांजलि खंडेलवाल ने कहा कि यह आयोजन सफल साबित होगा क्योंकि यह हमें तीन नए आपराधिक कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु रूपरेखा तय करने का अवसर प्रदान करता है।

यह दो दिवसीय सम्मेलन भारत की नवपरिवर्तित आपराधिक न्याय प्रणाली के तहत न्याय सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक फॉरेंसिक ढांचे की नींव रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।