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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

माननीय विपक्ष के नेता श्री मल्लिकार्जुन खरगे द्वारा दिनांक 13 मार्च, 2023 को उठाए गए औचित्य के प्रश्न के निर्धारण के संबंध में

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माननीय विपक्ष के नेता श्री मल्लिकार्जुन खरगे द्वारा दिनांक 13 मार्च, 2023 को उठाए गए औचित्य के प्रश्न के निर्धारण के संबंध में

1. 13 मार्च, 2023 को माननीय विपक्ष के नेता श्री मल्लिकार्जुन खरगे ने, सभा के नेता श्री पीयूष गोयल के “विपक्ष के एक वरिष्ठ नेता द्वारा विदेश में जिस असभ्य तरीके से भारत के लोकतंत्र पर हमला किया गया और भारत की संसद का अपमान किया गया” के लिए माफी मांगने के अभिकथन का उत्तर देते हुए एक औचित्य का प्रश्न उठाया कि राज्य सभा में किसी लोक सभा सदस्य या ऐसे किसी व्यक्ति जो राज्य सभा का सदस्य न हो, पर या के संबंध में कोई चर्चा/विचार-विमर्श नहीं हो सकता।

2. जबकि सभा के नेता श्री पीयूष गोयल ने किसी का नाम नहीं लिया, उन्होंने विपक्ष के एक वरिष्ठ नेता द्वारा हमारी संसद को अपमानित और कलंकित करते हुए, उनके शब्दों में, विदेश में की गई अपमानजनक टिप्पणियों का गम्भीर आरोप लगाया।

3. संसद, जो हमारी लोकतांत्रिक राजव्यवस्था का सबसे प्रामाणिक प्रतिनिधि और पवित्र मंच है, के सामर्थ्य पर वाद-विवाद/चर्चा से संबंधित औचित्य के प्रश्न से महत्वपूर्ण कुछ नहीं हो सकता। इस पर विचार करने में मुझे संज्ञात है कि हम सबसे बड़ा लोकतंत्र हैं जो सब लोकतंत्रों की जननी है तथा संपूर्ण मानव समाज के लगभग छठे भाग का घर हैं। हमारी संसद लोकतंत्र का गर्भगृह है।

4. संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार संसद ‘राष्ट्रपति और दो सदनों से मिलकर बनेगी जिनके नाम राज्य सभा और लोक सभा होंगे’। ‘संसद’ के संबंध में विचार-विमर्श अथवा अभिकथनों पर भी इस तथ्यात्मक स्थिति को ध्यान में रखते हुए विचार करना होगा।

5. संविधान का अनुच्छेद 105 जो ‘संसद के सदनों की तथा उनके सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार आदि’ का भंडार है, में संसद के सदस्यों को छूट देने के साथ ‘संसद में वाक-स्वातंत्र्य ‘ की सुविधा प्रदान की गई है और कहा गया है कि “संसद् मे या उसकी किसी समिति में संसद् के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिए गए किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध किसी न्यायालय में कोई कायर्वाही नहीं की जाएगी।”

6. संविधान के अनुच्छेद 121 में उच्चतम न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश के, अपने कर्तव्य के निर्वहन में किए गए आचरण के विषय में संसद में किसी चर्चा के विनियमन के संबंध में कहा गया है कि ऐसी चर्चा उस न्यायाधीश को हटाने की प्रार्थना करने वाले समावेदन को राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करने के प्रस्ताव पर ही होगी ।

7. इस प्रकार संवैधानिक व्यवस्था में संसद में संसद सदस्य की वाक्-स्वातंत्र्य पर कोई रोक या नियंत्रण नहीं हैं । वास्तव में, सिविल या आपराधिक कार्रवाई से उन्मुक्ति के कारण और अधिक सुदृढ़ तथा महत्वपूर्ण हो गया है।

8 संविधान के अनुच्छेद 118(1) में ‘राज्य सभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन के विनियमन’ के लिए बनाए गए नियम 238 और 238क भी इस संदर्भ में संगत हैं। वस्तुतः, नियम 238क में राज्य सभा में किसी लोक सभा सदस्य के विरुद्ध चर्चा का उपबंध किया गया है जोकि किसी सदस्य द्वारा किसी अन्य सदस्य या किसी लोक सभा सदस्य के विरुद्ध ‘मानहानिकारक या अपराध में फंसाने वाले स्वरूप के आरोप’ लगाने के विषय में सभापति को इसकी पूर्व सूचना दिए जाने की अपेक्षा के अध्यधीन है। इसी प्रकार नियम 238(v) कोई सदस्य किसी ‘उच्च प्राधिकार वाले व्यक्ति’ के आचरण पर तब तक आक्षेप नहीं करेगा जब तक कि चर्चा उचित शब्दों में रखे गए मूल प्रस्ताव पर आधारित न हो।

9. इस प्रकार इन नियमों में किए गए प्रावधान सभापति को पूर्वसूचना दिया जाना तभी अपेक्षित करते हैं जब किसी सदस्य द्वारा किसी अन्य सदस्य अथवा किसी लोक सभा सदस्य के विरुद्ध ‘मानहानिकारक या अपराध में फंसाने वाले स्वरूप के आरोप’ लगाए जाते हों अन्यथा नहीं।

10. संसद के सदस्यों को प्राप्त ‘वाक्-स्वातंत्र्य’ और किसी सिविल या आपराधिक कार्रवाई से ‘छूट देने’ के संवैधानिक ‘विशेषाधिकार’ के मद्देनज़र अत्यन्त ध्यान, सावधानी और जवाबदेही की आवश्यकता होती है। यह विशिष्ट स्वतंत्रता का विशेषाधिकार बहुत ज्यादा दायित्वों के साथ प्राप्त होता है। इस विशेषाधिकार का हनन करते हुए लापरवाहीपूर्वक आरोप-प्रत्यारोप में संलिप्त होने या अप्रामाणिक सूचना, अपशब्दों तथा व्यंग्योक्तियों की भरमार करने या हानिकारक कहानियां गढ़ने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

11. लोकतंत्र के मंदिर की पवित्रता को भंग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि यह विशेषाधिकार संसद का अपमान करने, संवैधानिक संस्थानों की प्रतिष्ठा को धूमिल करने वाली अपमानजनक समुक्तियां करने या अपुष्ट तथ्यों के आधार पर लापरवाहीपूर्वक लगाए गए आरोपों के आधार पर कहानी गढ़ने के लिए नहीं है।

12. सभा के नेता, श्री पीयूष गोयल ने यथानिदेशित रूप से दिनांक 13 मार्च, 2023 को राज्य सभा में उनके द्वारा किए गए अभिकथनों को प्रमाणित किया है जिससे विपक्ष के नेता श्री मल्लिकार्जुन खरगे ने औचित्य का प्रश्न उठाया। दस्तावेज़ जिसमें इलेक्ट्रानिक दस्तावेज़ भी शामिल है, प्रस्तुत करने का निदेश दिया गया, क्योंकि यह माननीय विपक्ष के नेता के औचित्य के प्रश्न के निर्धारण के लिए संगत था।

13. राज्य सभा में संसद सदस्य के वाक् स्वातंत्र्य के संवैधानिक विशेषाधिकार को कम करने या परिवर्तित करने के किसी भी प्रयास से लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रस्फुटन गंभीर रुप से प्रभावित और बाधित होगा।

14. लोकतांत्रिक लोकाचार तथा भलीभांति संजोए और पोषित किए गए लोकतांत्रिक मूल्य मुझे किसी संसद सदस्य के “वाक् स्वातंत्र्य” के संवैधानिक अधिकार को बरकरार रखने का पक्ष लेने को बाध्य करते हैं और इसे किसी भी तरह बाधित नहीं किया जा सकता तथा यह केवल सभा तथा सभापति के विवेक के अध्यधीन है।

15. समय आ गया है कि हम डा. बी.आर. अंबेडकर द्वारा संविधान सभा में अपनी अंतिम भाषण में प्रस्तुत किए गए विचारों को अपने मन में अंकित कर लें। उन्होंने कहा था “ जो बात मुझे अत्यंत विचलित करती है वह यह है कि भारत ने न केवल पहले एक बार अपनी स्वतंत्रता खोई थी, बल्कि उसने वह कुछ अपने ही लोगों की बेवफाई और विश्वासघात की वजह से खोई थी ….. परन्तु इतना तो निश्चित है कि यदि दल पंथ को देश से ऊपर रखें, तो हमारी स्वतंत्रता दूसरी बार खतरे में पड़ जाएगी और शायद हमेशा के लिए खो जाएगी। हम सभी को अंततः इससे दृढ़तापूर्वक अपनी स्वतंत्रता को बचाए रखना होगा। हमें अपने खून के आखरी कतरे से अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए कृतसंकल्प होना होगा।”

16. इस महत्वपूर्ण पहलू पर गंभीरता से विचार करने के बाद मेरा दृढ़ मत है कि कोई मुद्दा या व्यक्ति राज्य सभा में चर्चा के दायरे से बाहर नहीं हो सकता है और यह अनन्य रूप से इस सभा और सभापति द्वारा विनियमन के अधीन है। माननीय विपक्ष के नेता ने जिन दो पूर्ववृतों का सहारा लिया है उनका यहां विचार किए जा रहे मुद्दे से कोई संबंध नहीं है।

17. इसके अतिरिक्त, सभा के नेता श्री पीयूष गोयल द्वारा उपलब्ध कराए गए प्रमाणित दस्तावेज से यह पता चलता है कि विपक्ष के एक वरिष्ठ नेता द्वारा विदेश में दिए गए वक्तव्य पर मांफी मांगने की उनकी मांग तथ्यों पर आधारित है और इसका मतलब ‘मानहानिकारक या अपराध में फंसाने वाले स्वरूप के आरोप’ लगाना नहीं होता। सभा के नेता द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज़, यथानिदेशित, से यह पता चलता है कि उनके द्वारा 13 मार्च, 2023 को दिए गए अभिकथन तथ्यात्मक स्थिति के अनुसार है।

18. स्पष्ट और दृढ़ संवैधानिक उपबंधों के मद्देनज़र, मैं स्वयं को माननीय विपक्ष के नेता श्री मल्लिकार्जुन खरगे द्वारा उठाए गए औचित्य के प्रश्न को बरकरार रखने हेतु बाध्य नहीं कर सकता और अत: उक्त को एतद्द्वारा अस्वीकृत किया जाता है।