पांडु पिंडारा (जींद).महाभारत सियासत का सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है। जींद का पांडु पिंडारा भी इसका गवाह बना था। युद्ध के बाद पांडवांे ने यहां डेरा डाला था। वे यहां 12 बरस तक सोमवती अमावस्या के इंतजार में रहे। फिर भी सोमवती अमावस्या नहीं आई। उसी धरती पांडु पिंडारा में चार फरवरी को मौनी अमावस्या पर लाखों लोग दस्तक देंगे। अमावस्या से ठीक पहले यहां सियासी मेला लगा है। महीने में यहां 30 से 40 हजार श्रद्धालु आते हैं, लेकिन पिछले 10 दिनों में 20 हजार से अधिक नेता और समर्थक यहां दस्तक दे चुके हैं। यहां आजकल वोटरों को लुभाने के लिए प्रत्याशी तरह-तरह के वादे कर रहे हैं। तीर्थ के विकास पर जोर देते हैं, ग्रामीण भी कहां पीछे रहने वाले, नेताओं को शास्त्रों की याद दिलाते हैं, वादे पाक साफ करना नेता जी, क्योंकि कहीं का पाप किया हुआ, यहीं नष्ट हो सकता है, लेकिन यहां का पाप किया हुआ दूसरे तीर्थ पर जाकर नष्ट नहीं होगा।
अल सुबह करीब छह बजे जींद के बाजार से होते हुए जब गोहाना रोड पर पहुंचे तो फिजा बदली-बदली सी थी। मंदिरों में बज रही घंटियां सुनी तो लगा, हम सियासत की राजधानी जींद से चंद मिनटों में धर्मनगरी पहुंच गए हैं। जब किरयाना शॉप पर रूके तो ग्रामीण बोले, ये पांडु पिंडारा गांव है। यहां राजा कुरू ने जहां खेत जोते, चंद्रमा ने टीबी दूर करने को तीर्थ स्थान किया। चहल-पहल का आलम ये है कि एक नेता जाते हैं तो दूसरे चले आते हैं। समर्थक ऐसे कि गलियों में सुबह से देर रात तक भीड़ नजर आती है। 50 मंदिरों में धार्मिक भेंट बजती हैं, तो गलियों में चुनावी प्रचार का खूब शोर है। भले ही पांडु पिंडारा में महज 1950 वोटर हैं, आबादी 8000 है। फिर भी राजनीतिक दृष्टि से गांव की खूब पैठ मानी जाती है।
पं. रामभगत कौशिक के अनुसार ग्रामीण पांडु पिंडारा का नाम पहले पिंडारक था। महाभारत युद्ध के बाद पांडुओं ने यहां डेरा डाला और 12 बरस तक सोमती अमावस्या नहीं आई। जाते-जाते वे अमावस्या को श्राप दे गए, अमावस्या कलयुग में बार-बार आएगी। यहां देशभर से श्रद्धालु आते हैं, सालभर की औसत निकाली जाए तो यही कोई 30-40 हजार श्रद्धालु महीने में आ रहे हैं। वे कहते हैं बाहर किया पाप, यहां स्नान करने से नष्ट हो सकता है, लेकिन यहां किया पाप कहीं नष्ट नहीं होगा।
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