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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

हड्डियों की चिकित्सा में एक बड़ी उपलब्धि – फास्ट ट्रैक ज्वॉइंट रिप्लेसमेंट तकनीक का अनावरण

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‘फास्ट ट्रैक नी रिसर्फेसिंग से रोगी इलाज के तीन घंटे बाद हीं चल-फिर सकता है,’ डॉ. तरनदीप सिंह गिल

चंडीगढ़,सुनीताशास्त्री : पारंपरिक ज्वाइंट सर्जरी अब बीते दिनों की बात हो सकती है, क्योंकि ट्राईसिटी में सेक्टर 34 स्थित हीलिंग मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल के परिसर में फास्ट ट्रैक नी रिसर्फेसिंग तकनीक का अनावरण किया गया है।इस अवसर पर, हड्डियों के जोड़ के पुरस्कार विजेता सर्जन, डॉ. तरनदीप सिंह गिल इस अस्पताल के हड्डी रोग, ज्वाइंट रिप्लेसमेंट एवं खेल चिकित्सा विभाग मे वरिष्ठ सलाहकार के रूप में शामिल हो गये। डॉ. गिल को ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी में व्यापक अनुभव है और वे देशविदेश के प्रमुख चिकित्सा संस्थानों का हिस्सा रहे हैं। उन्हें जर्मनी के दो संस्थानों सेंट जोसेफ हॉस्पिटल तथा आर्कस स्पोर्ट्स हॉस्पिटल की ओर से आर्थोप्लास्टी, रिकंस्ट्रक्टिव ऑर्थोपीडिक सर्जरी तथा स्पोर्ट्स मेडिसिन में प्रतिष्ठित फैलोशिप से सम्मानित किया जा चुका है।हीलिंग हॉस्पिटल के मैनेजिंग पार्टनर, साहिबजत सिंह संधू ने डॉ. गिल का स्वागत करते हुए कहा,’हमें हीलिंग हॉस्पिटल में डॉ. गिल के आने की खुशी है और दृढ़ विश्वास है कि उनका विशाल अनुभव हड्डियों की चिकित्सा को एक नया आयाम देगा। हम हीलिंग हॉस्पिटल में नैतिक और पारदर्शी चिकित्सा पद्धति अपनाते हुए रोगियों को किफायती स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। अस्पताल के लिए यह वास्तव में गर्व का क्षण है, क्योंकि हमारे ऑर्थोपीडिकचिकित्सा विभाग में फास्ट ट्रैक ज्वॉइंट रिप्लेसमेंट नामक अद्वित्तीय तकनीक शामिल हुई है।’फास्ट ट्रैक ज्वॉइंट रिप्लेसमेंट के तहत, घुटने की सर्जरी की एक उन्नत, बिना टांकों की नी रिसर्फेसिंग तकनीक भी पेश की गयी है, क्योंकि छोटी व मध्यम आयु वर्ग के लोगों में भी घुटने की समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं।

नई सर्जिकल तकनीक के बारे में जानकारी देते हुए, डॉ. गिल ने कहा, ‘फास्ट ट्रैक नी रिसर्फेसिंग घुटने की मरम्मत की एक विधि है, जो घुटने के जोड़ में मौजूद (संयुक्त सतह अस्तर) दोषों को संबोधित करती है और दर्द और कार्य में सुधार करती है। यह एक उन्नत प्रक्रिया है जिसके लिए त्वचा के स्टेपल की आवश्यकता नहीं होती है और यह प्रक्रिया 3 घंटे बाद रोगियों को चलने में मदद कर सकती है। सर्जरी से पहले पीठ में एपिड्यूरल इंजेक्शन देने की आवश्यकता नहीं है। पारंपरिक घुटने की सर्जरी से तुलना करने पर मरीज वॉकर या स्टिक का इस्तेमाल करना जल्दी बंद कर देते हैं। सीढ़ी चढऩे की क्षमता भी बहुत तेज होती है। इसके अलावा अस्पताल में रहना कम है। चूंकि मरीजों की रिकवरी तेजी से होती है, इसलिए इस प्रोसीजर को फास्ट ट्रैक ज्वॉइंट रिप्लेसमेंट कहा जाता है।”घुटने बदलने और घुटने की रिसर्फेसिंग में मूल अंतर यह है कि बाद वाली विधि में घुटनों की क्षतिग्रस्त मुलायम हड्डी यानी कार्टिलेज की धातु की इम्प्लांट कैप्स से मरम्मत कर दी जाती है। कार्टिलेज अक्सर गठिया रोग के चलते क्षतिग्रस्त हो जाती है। इस विधि में 2 से 8 मिमी आकार के कट से ही काम चल जाता है। यह शारीरिक रूप से सक्रिय, युवा अथवा मध्यम आयु वर्ग के ऐसे रोगियों के लिए उपचार का एक पसंदीदा सर्जिकल तरीका है, जिनके घुटने में गंभीर गठिया बीमारी नहीं है।’घुटने के दर्द से पीडि़त कम आयु और मध्यम आयु वर्ग के रोगियों के लिए यह तकनीक वरदान साबित हो सकती है, क्योंकि रिसर्फेसिंग के बाद वे शारीरिक रूप से सक्रिय जीवन जी सकते हैं। इसमें पूरे घुटने को नहीं बदला जाता है जैसा कि घुटने की पारंपरिक सर्जरी में आवश्यक रूप से किया जाता है।फास्ट ट्रैक नी रिसर्फेसिंग के अलावा, अस्पताल अपने आर्थोपीडिक्स विभाग में कई अन्य सेवाएं भी प्रदान करता है, जैसे कि, घुटने का संपूर्ण रिप्लेसमेंट, आंशिक रिप्लेसमेंट, हिप का संपूर्ण व आंशिक रिप्लेसमेंट, कंधे व कोहनी का रिप्लेसमेंट, एसीएल/ पीसीएल रिकंस्ट्रक्शन, आर्थोस्कोपिक रोटेटर कफ की मरम्मत और रिवीजन ज्वॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी आदि।

1-सिर्फ भूख लगने पर ही खाना चाहिए व बढ़ती उम्र के साथ कम मात्रा में खाएं -डॉ खादर