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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

प्रेरणा के पुंज थे परम श्रद्धेय श्री बलराम जी दास टंडन : कैलाश चन्द जैन

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पसीने की स्याही से जो लिखते हैं इरादों को, उसके मुकद्दर के पन्ने भी कभी कोरे नहीं होते ।
चंडीगढ़,सुनीता शास्त्री।परम पूज्य श्री बलरामजी दास टंडन के व्यक्तित्व और कृतित्व पर जब हम दृष्टिपात करते हैं तो उनके जीवनकाल , संघर्ष, सेवा और उपलब्धियों को उक्त पंक्तियों में गागर में सागर की भाँति समेटा जा सकता । वह दिव्य आत्मा आज हमारे बीच शारीरिक रूप से भले ही विद्यमान नहीं है परंतु उनकी वट वृक्ष की छाया का आभास आज भी हमें बराबर होता है। 90 वर्ष की आयु में से सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में लगभग 80 वर्ष तक निभाई गई उनकी भूमिका संघर्ष और निस्वार्थ सेवा का वर्णन करने लगे तो हजारों पन्ने भी कम पड़ जाएंगे। गुरु की नगरी अमृतसर में 1 नवंबर 1927 को जन्मे आदरणीय श्री बलरामजी दास टंडन ने ग्राम पंचायत और नगर परिषद जैसे स्थानीय निकायों से अपनी सेवा यात्रा शुरू कर के धरातल से गहरे जुड़े रहने का पहला परिचय दिया। स्वर्गीय श्री बलराम जी दास टंडन को वर्ष 1951 में स्थापित जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक होने का गौरव प्राप्त है। वर्ष 1953 में 26 वर्ष की अवस्था में वह अमृतसर नगर निगम के पार्षद बने और तत्पश्चात 6 बार पंजाब विधानसभा के विधायक निर्वाचित हुए। पंजाब सरकार में उपमुख्यमंत्री और पंजाब विधानसभा के विपक्ष के नेता पद पर भी रहे । 25 जुलाई 2014 में छत्तीसगढ़ के राज्यपाल के प्रतिष्ठित पद तक की ऊंचाइयां छूने वाले आदरणीय टंडन साहब को ऐसा सौभाग्य किसी चांदी के चम्मच से सुलभ नहीं हुआ बल्कि देश के बंटवारे के खट्टे मीठे अनुभव और पंजाब के आतंकवाद के दंश भी उन्होंने अनुभव किये है। देश के विभाजन के दौर में उन्होंने पाकिस्तान से पलायन कर आने वाले हजारों शरणार्थियों को बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने और उन्हें विभाजन की पीड़ा से मुक्ति दिलाने के लिए व्यक्तिगत और संगठित तौर पर व्यापक प्रयास किए । आज हम जिस लोकतंत्र की ठंडी बयार का सुख पा रहे हैं वह 1975 से 77 के बीच में दूसरी आजादी के संघर्ष का परिणाम है । लोकतंत्र के सच्चे सिपाही के नाते आपातकाल के काले दौर में 19 माह जेल की सलाखों के पीछे रहे । पार्टी के सिद्धांतों और मूल्यों की कीमत पर उन्होंने कभी भी कोई समझौता नहीं किया। जम्मू कश्मीर को धारा 370 की जंजीरों से मुक्ति का जो जश्न आज सारा देश मना रहा है , वास्तव में इस काली धारा को हटाने की नींव रखने वालों में भी श्री टंडन जी प्रमुख थे । वर्ष 1953 में भारतीय जन संघ के अध्यक्ष डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में कश्मीर में इस धारा का विरोध करने का समर्थन करने के कारण टंडन साहब को भी गिरफ्तार कर धर्मशाला की कालकोठरी में नजरबंद रखा गया था । परम आदरणीय श्री बलरामजी दास टंडन 14 अगस्त 2018 को राज्यपाल के पद पर रहते हुए ही स्वर्ग धाम की ओर गमन कर गए । लेकिन उनकी यात्रा को यही विराम नहीं लग जाता उनकी विरासत उनके आदर्शों की मशाल उनके संघर्षशील और निष्ठावान सपुत्र श्री संजय टंडन ने बड़ी कुशलता पूर्वक संभाली। महान व्यक्ति की यही पहचान होती है कि उनके व्यक्तित्व का अनुसरण कर हम जीवन को और बेहतर बना सकते है। अपने पिता के पद चिन्हों पर दृढ़ता से चल रहे श्रीमान संजय टंडन जी की उपलब्धियों और उनके त्याग समर्पण भाव देखते हुए उनके आदर में कहना चाहूंगा जब हौसला बना लिया ऊंची उड़ान का , फिर देखना फिजूल है कद आसमान का आदरणीय भ्राता श्री संजय टंडन जी चंडीगढ़ भाजपा को कुशल नेतृत्व प्रदान करने के उपरांत अब पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सुशोभित है । वह एक दृढ़ संकल्पी राजनीतिज्ञ के अलावा परोपकारी समाजसेवी और संवेदनशील लेखक भी है। उन्होंने अपने आदर्श पिता के जीवन चरित्र को लेकर एक पुस्तक लिखी थी एक प्रेरक चरित्र जिसका विमोचन पूर्व उपप्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी ने अपने कर कमलों से किया था । श्री संजय टंडन ने अपनी धर्मपत्नी प्रिया टंडन के साथ मिलकर प्रेरक कहानियों के संकलन सनरेजॉर मंडे से संडे तक की सात पुस्तकों प्रकाशन करवाया । बलरामजी दास टंडन फाउंडेशन के माध्यम से टंडन दंपत्ति जरूरतमंद लोगों, विधवाओं और रोगियों को राशन दवाइयों जैसी सेवाएं निरंतर दे रहे हैं। श्रीमती प्रिया टण्डन जहां झुग्गी झोपडय़िों की बस्तियों में बच्चों की शिक्षा पर ध्यान देती है वही श्री टंडन अपने सपुत्रो, परिजनों और पार्टी सहयोगियों के साथ मिलकर हर छह माह बाद रक्तदान शिविर का आयोजन भी करते हैं ।