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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

हाई टेक एंडोवैस्कुलर सर्जरी से महिला को मिला नया जीवनदान

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चंडीगढ़, सुनीता शास्त्री। गंभीर तौर पर प्रॉक्सीमल डीप वेनोस थ्रोम्बोसिस (डीवीटी) और पल्मोनरी एम्बोलिज्म (पीई) से प्रभावित एक महिला मरीज (46) को आईवी हॉस्पिटल, मोहाली में उपचार के बाद एक नई जिंदगी मिली है। डीवीटी समस्या की से पीडित शालिनी (बदला हुआ नाम) के बाएं पैर में काफी समय से सोजिश थी। इस दौरान उनकी एमआर एंजियोग्राम की गई, जिससे पता चला कि उनको जानलेवा पल्मोनरी एम्बोलिज्म भी था। उनकी मेन पल्मोनरी आर्टिरी में एक बड़ा क्लॉट भी बन गया था। वीरवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान डॉ.हरिंदर सिंह बेदी, डायरेक्टर, कार्डियो वैस्कुलर एंडोवैस्कुलर एंड थोरैसिस साइंसेज, आईवी हॉस्पिटल, मोहालीे ने कहा कि एक बड़ी प्रॉक्सीमल डीवीटी के साथ ही एक बड़ी पल्मोनरी एम्बोलिज्म का होना काफी कम होता है और ये किसी भी मरीज के लिए जानलेवा हालात पैदा कर सकती है। उनके बेहतर और सफल इलाज के लिए कैथेटर डायरेक्ट्ड थ्रोम्बोलिसिस (सीडीटी) नामक एक बहुत ही संवेदनशील प्रोसीजर को अमल में लाने की योजना बना कर उस पर काम शुरू किया गया। डीवीटी के लिए एक कैथेटर को सीधे घुटने के माध्यम से क्लॉट में स्थापित किया गया। पल्मोनरी एम्बोलिज्म के लिए एक अन्य कैथेटर को एक अलग साइट से फेफड़ों की धमनी (लंग-आर्टिरी) में रखा गया था। इसके बाद एक और प्रभावशाली क्लॉट बस्टर (खून पतलाकरने वाला) को सीधे ब्लड क्लॉट में डालने का प्रोसेस शुरू किया गया। क्लॉट में सटीक डोज देने के लिए एक स्पेशल कम्प्यूटराइज मशीनों द्वारा इस प्रोसेस को पूरा किया गया। डॉ.बेदी ने बताया कि पल्मोनरी एम्बोलिज्म, कार्डियोवैस्कुलर मौतों के मामले में तीसरा प्रमुख कारक है। इससे प्रभावित होने वाले अधिकांश रोगियों में पीई सामने आने के कुछ ही घंटों में मौत का सामना करना पड़ता है। ऐसे में ऐसे मरीजों में पीई का जल्द पता लगा और उसका समय पर इलाज शुरू कर उनकी जान को बचाया जा सकता है। डीवीटी के लक्षणों में दर्द या टेंडरनेस शामिल है जो कि अक्सर कॉल्फ में शुरू होता है और फिर एड़ी या पैरों में सूजन हो जाती है, चेहरे पर लाली बढ़ जाती है और चेहरे का रंग बदलता है और शरीर का तापमान बढ़ जाता है। पीई के लिए प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं: सांस उखडऩा, तेज-तेज सांस लेना, छाती में दर्द दिल की धडकन तेज होना और सिर भारी होना आदि। इससे बचने के लिए नियमित पैदल चले अधिक देर एक स्थिति में न बैठे।