चंडीगढ़, सुनीता शास्त्री। महर्षि दयानंद ने वेद की ज्योति से अज्ञान के अंधकार को दूर किया। वह वेद की मशाल लेकर अज्ञान की आंधी से लड़ते रहेऔर अपना जीवन लोक हित के लिए समर्पित कर दिया।महर्षि दयानंद सरस्वती कोई व्यक्तिगत विचारधारा नहीं थी। उनकी विचारधारा वैदिक थी उसी को लेकर उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की थी। यह विचार स्वामी संपूर्णानंद सरस्वती जी ने आज आर्यसमाज सेक्टर -7 चंडीगढ़ के61वें वार्षिक उत्सव के समापन समारोह के अवसर पर अपने भाषण में व्यकत किये। उन्होंने कहा कि मूर्ति पूजा उन्न्ति की सीढ़ी नहीं,पतन की खाई है। स्वामी दयानंद सरस्वती के पास ज्ञान, वैराग्य और तर्क था। मनुष्य वेद के विरुद्ध कार्य करने की पर ही पतन की ओर गया है। आज समाज अपनी संस्कृति और संस्कारो पर खेद व्यक्त करते हुए कहा कि आज यज्ञोपवीत की जगह टाई ने लेली है। यह सब माता विता का दोष है जैसे संस्कार बच्चों को देंगे वह वैसे ही बनेंगे। पानी से शरीर शुद्ध होता है परंतु ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है। हमें इंद्रियों के स्वामी बनना चाहिए। इंद्रिया हमारी बात माने। ईश्वर हमारी बुद्धि सद कार्यों में प्रेरित करें। उपरोक्त शब्द आर्य समाज के वार्षिक उत्सव के समापन समारोह के दौरान दिल्ली से पधारे विदुषी आयुषी ने कहे। उन्होंने कहा कि विद्या धर्म का लक्षण है इसके द्वारा पदार्थ को यथावत जान सकते हैं। जैसे शरीर से शरीर के लिए सिर की आवश्यकता है वैसे ही सन्यासी की समाज के लिए जरूरत है। यही समाज को दिशा दे सकते हैं। स्वामी दयानंद सरस्वती पथ प्रदर्शक थे। उन्होंने अपना सर्वस्व त्याग दिया। उन्होंने हमेशा सत्य भाषण किया। पंजाब विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के पूर्व अध्यक्ष विक्रम विवेकी ने कहा कि मनुष्य को सुख और दुख में समान भाव से रहना चाहिए। यदि मनुष्य सत्य विद्या से जुड़ा है तो वह परमात्मा से जुड़ा होता है। नाक, कान और मुँह बंद होने पर भी मनुष्य की बुद्धि भटकती रहती है। इस पर लगाम लगाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि बुद्धि हमें धारण करती है। जीवात्मा का कर्ता-धर्ता ही बुद्धि है जिससे हम नियंत्रित नियंत्रित होते हैं। उन्होंने कहा कि पारसमणि तो विद्वान होता है। शब्दों को ढालने वाला पारखी ही विद्वान है। इन विचारों को अपने जीवन में डालने पर जीवन निखरेगा। उन्होंने कहा कि कल्प वृक्ष का अर्थ वेदों का संदेश ही है। हमें वेद की बताई गई बातों पर आचरण करना चाहिए। यदि हम वेदों के अनुकूल आचरण करते हैं तो हम जो चाहेंगे वही हमें मिलेगा। कामधेनु अर्थात वेद का ज्ञान जब सब जगह बिखरता है तो काम अर्थात समग्र इच्छाएं पूर्ण होती है। यज कामधेनु है। जो कर्म के बदले हमें मिले उसे सबके साथ बांटना चाहिए । कार्यक्रम के दौरान आचार्य दीवान चंद शास्त्री और केबीडीएवी स्कूल के छात्रों ने मधुर भजन प्रस्तुत किए।आर्यसमाज वार्षिक समारोह के समापन में सचिव प्रकाश चंद्र शर्मा ने वार्षिक रिपोर्ट पढ़ी और खजांची आनंदशील शर्मा ने पिछले वर्ष का लेखा-जोखा रखा प्रस्तुत किया।अंत में आर्य समाज के प्रधान रविन्द्र तलवाड़ ने उपस्थित विद्वानों और लोगों का धन्यवाद किया।
Mirror 365 - NEWS THAT MATTERSDear Friends, Mirror365 launches new logo animation for its web identity. Please view, LIKE and share. Best Regards www.mirror365.com
Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020