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- Gandhi Jayanti: Annu Kapoor, Rajit Kapoor And Darshan Jariwala Shared Experience Of Bapu’s Role
Dainik Bhaskar
Oct 02, 2019, 09:25 AM IST
बॉलीवुड डेस्क. महात्मा गांधी और सिनेमा का गहरा नाता है। उनकी जिंदगी पर अब तक कई फ़िल्में बन चुकी हैं, जिनके जरिए उनके विचारों को दर्शकों तक पहुंचाने की कोशिश की गई। बापू की 150वीं जयंती पर फिल्मों में उनका किरदार निभा चुके तीन एक्टर्स ने दैनिक भास्कर के साथ अपने अनुभव शेयर किए।
पर्दे पर गांधी बनकर सीखे निष्ठा-निडरता के गुण
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बापू के तकिए पर ही सिर टिका दिया: अन्नू कपूर (फिल्म: सरदार)
जब कई लोग मुझे एक छोटा-मोटा कॉमेडियन मानते थे, तब फिल्म निर्माता, केतन मेहता ने मुझे गांधी का किरदार निभाने के लिए चुना। मैंने अपनी योग्यता साबित की और उन्हें कभी निराश नहीं किया। राष्ट्रपति भवन में शूटिंग, नालंदा सुइट (जहां इंग्लैंड के राजकुमार चार्ल्स और राजकुमारी डायना रुके थे) में मेरा मेकअप करना। मेरे सिर को उसी तकिए पर टिका दिया था, जिसे बापू इस्तेमाल करते थे। कम से कम 10,000 लोग और 10 कैमरों के बीच शूटिंग करना आसान नहीं था। इस फिल्म की शूटिंग का अनुभव बड़ा ही रोमांचक और ज्ञानवर्धक था।
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मैंने कभी किसी अन्य अभिनेता को गांधी की भूमिका निभाते हुए नहीं देखा। गांधीजी प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, जिन्हें साहित्य, तस्वीरों और ऑडियो-विजुअल फिल्मों में बहुत अच्छी तरह से प्रस्तुत किया गया है। मैंने उसी अध्ययन के आधार पर पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ इस किरदार को निभाया था। हर भूमिका एक कलाकार के लिए बहुत स्पेशल होती है। मैं उन पलों के लिए शुद्धिकरण से गुज़रा हूं, लेकिन अब महसूस करता हूं कि किसी भी राजनीतिक व्यक्ति पर अंधा विश्वास एक बड़ा दोष हो सकता है।
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मैंने उनकी मुद्राओं, इशारों, और चाल पर ध्यान केंद्रित किया था। सबसे ज्यादा मेहनत की थी भाषा पर, क्योंकि मुझे हिंदी और कुछ गुजराती एक्सेंट में बोलना था। उनके भाषण सुने। ‘श’ और ‘स’ के बीच ध्वनि उत्पन्न करने के लिए मेहनत की है। अंग्रेजी डबिंग के दौरान, मैंने उसी पैटर्न का उपयोग किया। हालांकि निर्देशक की पत्नी मुझसे उचित अंग्रेजी बुलवाना चाहती थीं, इसलिए मैंने दोनों सैम्पल्स को डब किया। अंत में वे आश्वस्त थे और मुझे अपने तरीके से डब करने की अनुमति दे दी गई।
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अहिंसा, करुणा और शांति के असली प्रेषक बुद्ध व महावीर थे। गांधी इन प्रबुद्ध आत्माओं से प्रेरित थे। आम लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए हमेशा किसी न किसी की आवश्यकता होती है। गांधीजी अच्छे थे, लेकिन अच्छे व्यक्ति की हर बात देश की प्रगति के लिए कल्याणकारी हो यह जरूरी नहीं।
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गांधी की आत्मा मुझमें समा गई: रजित कपूर (फिल्म: द मेकिंग ऑफ द महात्मा)
गांधीजी का किरदार निभाना मुझ पर बड़ी जिम्मेदारी थी। लेकिन उसे बोझ मानकर चलता तब सही तरह से किरदार निभा ही नहीं पाता। श्याम बेनेगल जी ने भी मुझसे कहा कि यह सब सोचना ही मत। लोग तो हर स्थिति में तुलना करेंगे। तब मैंने सभी बातों को अपने मन से निकाल दिया और पूरा फोकस किरदार पर कर दिया।
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गांधीजी का किरदार निभाने से पहले श्याम बेनेगल जी ने मुझे पढ़ने के लिए ‘माय एक्सपेरिमेंट विद ट्रुथ’ किताब दी, जो गांधी जी ने लिखी है। यह किताब मेरे लिए एक तरह से गीता बन गई। बेनेगल ने कहा कि इसे पढ़ो और समझो। मैंने इसी किताब से अभ्यास किया। इसमें गांधीजी के जीवन की कई निजी बातें लिखी गई हैं। कुछ फिल्म में हैं, कुछ नहीं है। लेकिन इससे उनके संकल्प और जीवन को जानना मेरे लिए बड़ी बात रही।
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गांधीजी का किरदार निभाने के बाद मुझे लगता है कि मेरी संकल्प शक्ति बढ़ गई। चीजों की तरफ मेरी जो दृढ़ता है, वह और ज्यादा हो गई है। मनोवृत्ति की मजबूती अब ज्यादा अटल होने लगी है। शायद किरदार को निभाने के साथ-साथ उसकी कुछ चीजें आप ले जाते हैं।
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फिल्म में मेरे कॉस्ट्यूम, बाल आदि को लेकर पांच गेटअप थे। लेकिन अंत में जब मुझे अपना सिर मुंडवाना पड़ा, तो रोल यादगार बन गया। जब धोती-कुर्ता पहन वैनिटी से निकलकर कैमरे के सामने आया तो एक बारगी सेट पर मौजूद सभी लोग खड़े हो गए। उनको लगा कि गांधीजी की आत्मा मेरे अंदर आ गई है। दो मिनट के लिए एकदम सन्नाटा छा गया। यह अनुभव यादगार रहा।
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ट्रांसफॉर्मेशन बड़ा चैलेंजिंग रहा: दर्शन जरीवाला (गांधी माय फादर)
पहले स्टेज पर ‘महात्मा वर्सेस गांधी’ में गांधीजी का रोल निभा चुका था। उसके दो-तीन साल बाद फिल्म ‘गांधी माय फादर’ में गांधीजी का रोल निभाने का अवसर मिला। यह रोल मिला तो अच्छा लगा। इतनी बड़ी हस्ती का किरदार जब निभाते हैं, तब एक इंसान होने के नाते बहुत कुछ सोचने पर मजबूर हो जाते हैं। ऐसे में खुद के जीवन पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। गांधीजी का किरदार निभाने के बाद मेरी कोशिश यही रहती है कि जो कुछ करूं पूरी निष्ठा और निडरता के साथ करूं।
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गांधीजी बहुत दुबले-पतले थे तो मुझे इसके लिए डाइटिंग करनी पड़ी। एक दिन शूटिंग के दौरान मैंने सुबह से कुछ खाया नहीं था। साउंड रिकॉर्ड करने के लिए मेरे पेट के पास ही माइक लगा था। पेट में से आ रही गुड़-गुड़ की आवाज उसमें जा रही थी। यह सुनकर ऑस्कर विनिंग साउंड रिकॉर्डिस्ट रसूल पुकुट्टी परेशान हो उठे कि आखिर यह आवाज कहां से आ रही है। खैर जब उन्हें पता चला कि आवाज मेरे पेट से आ रही है तो शूटिंग रोक कर मुझे एक सेव खिलाया गया।
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मुझे गांधी जी के गेटअप में आने के लिए 3 घंटे लगते थे। प्रोस्थेटिक्स से लेकर बाल्ड बिग आदि लगाना पड़ता था। स्क्रीन पर उनकी तरह हाव-भाव लाने का बहुत प्रयास किया। योग एक्सरसाइज़ आदि भी किया। उनकी हाइट कुछ 5.5 इंच रही होगी मेरी हाइट 5.1 इंच है, इसका भी ध्यान रखना पड़ा।
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