गांव भगवानपुरा में 6 जून को बोरवेल में गिरा 2 वर्षीय फतेहवीर 6 दिनों के बाद मंगलवार सुबह साढ़े पांच बजे के करीब निकाला गया। जिला प्रशासन का दावा है कि अधिक गहराई होने के कारण इतना समय लग गया। प्रशासन की मानें तो एक फीट की खुदाई को एक घंटा लगता है। फतेहवीर 125 फीट की गहराई तक फंसा था, जिसके कारण उसे निकालने में 108 घंटे लग गए। वीरवार की शाम 4.15 बजे गांव भगवानपुरा में करीब 125 फीट गहरे बोरवेल में गिर गया था। शाम 4.26 पर इसकी जानकारी मिलते ही एनडीआरएफ टीम को 15 मिनट में सूचित कर दिया था, जो शाम 7 बजे तक मौके पर पहुंच गई थी व तुरंत बचाव कार्य शुरू कर दिया था। कैमरे की मदद से दो-तीन बार बच्चे की हिलजुल भी देखी गई। एनडीआरएफ ने अपनी आमद के तीन घंटों बाद ही बच्चे की एक कलाई पर रस्सी बांधने में कामयाब हो गई थी, जबकि आमद के 10 घंटों के भीतर 115 कोशिशों के बाद बच्चे की दोनों कलाइयों पर रस्सी बांध दी गई थी, परंतु पाइप का डायामीटर काफी कम होने के कारण बच्चा पाइप के अंदरुनी हिस्से में काफी बुरी तरह फंस चुका था और बच्चे को बाहर खींचने के बचाव कार्य सफल नहीं हो पा रहे थे। इसी प्रक्रिया के दौरान 7 जेसीबी मशीन व 3 पोकलेन मशीनों का प्रयोग मिट्टी की खुदाई के लिए किया गया। 125 फीट की गहराई व धरती के हालातों संबंधी एनडीआरएफ कमांडेंट द्वारा देश भर के अन्य कमांडेंट्स के साथ बातचीत की गई और पुष्टि की कि यह अब तक का सबसे मुश्किल ऑपरेशन है, जिसका सामना एनडीआरएफ या ऐसे किसी राहत दल द्वारा किया गया हो। डीसी घनश्याम थोरी ने बताया कि खुदाई कार्य के दौरान फौजी इंजीनियरों ने बताया कि ऐसे ऑपरेशनों के लिए एनडीआरएफ ही सर्वोत्तम यूनिट है। आर्मी के पास न ही ऐसी समस्या के साथ जूझने के लिए कोई विशेष मशीनरी है और न ही ऐसी चुनौती के लिए विशेष हुनर। हाथों से खुदाई होने के कारण ही इतना समय लग गया।
रिटायर्ड चीफ इंजी. गिल बोले-
माइनिंग इंजीनियर यहां था ही नहीं
विक्की कुमार| अमृतसर
30 साल पहले, 1989 में बंगाल के रानीगंज शहर में 104 फीट गहरी कोयले की खदान में फंसे 65 मजदूरों काे सकुशल बाहर निकालने वाले चीफ इंजीनियर जसवंत सिंह गिल का कहना है कि सुनाम के भगवानपुरा गांव में रेस्क्यू के दौरान जिला प्रशासन, प्रदेश सरकार औैर एनडीआरएफ ने एक के बाद एक ब्लंडर किए, जिसके कारण बोरवेल में फंसे मासूम फतेहवीर सिंह काे बचाया नहीं जा सका। चीफ इंजीनियर के पद से रिटायर्ड जसवंत सिंह गिल 1998 में पश्चिम बंगाल की महाबीर कोल माइन में तैनात थे। खुदाई के दौरान माइन में पानी भर गया और 65 मजदूर अंदर फंस गए। माइन इतनी गहरी थी कि मजदूरों काे निकालना मुश्किल था। 19 नवंबर को हुई इस घटना से सरकार तक हिल गई मगर गिल ने सूझबूझ दिखाते हुए तत्काल लोहे का एक कैप्सूल तैयार किया और जमीन में छेद कर उसके जरिए खुद माइन में उतरे औैर बारी-बारी से सबकाे सुरक्षित निकाल लिया। उन्होंने सिर्फ 6 घंटे में 65 जान बचा ली थीं।
गिल ने कहा कि छह दिन बाद, मंगलवार सुबह फतेहवीर काे बोरवेल से निकालने के लिए जाे तकनीक अपनाई गई, रेस्क्यू में उसे सबसे क्रूर और अमानवीय तरीका माना जाता है। अगर कुंडी डालकर ही बच्चे को निकालना था तो यह पहले ही दिन कर लेना चाहिए था। गिल ने कहा कि वह भगवानपुरा जाने काे तैयार थे, मगर सरकार ने उनकी मदद लेने की जरूरत ही नहीं समझी। वहां कोई माइनिंग इंजीनियर भी नहीं था जाे बता पाता कि 100 फीट से ज्यादा गहरी खुदाई में किस तरह की एहतियात बरतनी चाहिए। जिस बाेर में बच्चा गिरा, उसके चारों तरफ 20 फीट तक का सारा हिस्सा खोद दिया गया, जबकि इसकी जरूरत ही नहीं थी। ऐसा करके सिर्फ समय बर्बाद किया गया। इसके अलावा बचाव कार्याें में लगी टीम के पास नेतृत्व औैर विल पावर की कमी थी। वहां काेई एेसा शख्स नहीं था जाे पूरे ऑपरेशन काे लीड करता।