न्यूज डेस्क। मप्र की राजधानी भोपाल में बीते नौ माह में प्रॉपर्टी संबंधी धोखाधड़ी के 50 मामले दर्ज हो चुके हैं। कई मामले तो 10 से लेकर 15 साल तक पुराने हैं। कभी बातों में आकर तो कभी परिचित होने के कारण लोगों ने रुपए तो दे दिए, लेकिन कागजातों पर ध्यान नहीं दिया या फिर उसकी रजिस्ट्री तो करा ली लेकिन जमीन के कागजातों की जांच नहीं कराई। प्रॉपर्टी संबंधी मामला होने के कारण एक शिकायत पर ही पुलिस को एफआईआर दर्ज करने में औसतन तीन महीने का समय लग गया। यह इसलिए क्योंकि पुलिस को प्रॉपर्टी से जुड़े दस्तावेज अलग-अलग विभाग से जुटाना पड़ते हैं। ऐसे में आज हम बता रहे हैं, वे बातें जो आपको प्रॉपर्टी खरीदने से पहले ध्यान रखना ही चाहिए ताकि आप इस तरह की दिक्कतों में न पड़ें।
प्रॉपर्टी खरीदने से पहले क्या देखें…
– जहां संपत्ति खरीदने जा रहे हैं, वहां के नियम-कानून के बारे में जानकारी लें। कई राज्यों के कानून अलग होते हैं। हाउसिंग सोसायटियों के अपने नियम होते हैं।
– सोसायटियों के मकानों में उनके बाइलॉज की कॉपी जरूर देखनी चाहिए। एनओसी लेना चाहिए।
– हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और गोवा कुछ ऐसे राज्य हैं, जहां बाहर वालों के लिए जमीन खरीदने पर कई तरह के प्रतिबंध हैं। इसी तरह झारखंड में आदिवासियों की जमीन खरीदने पर रोक है।
ऐसा हो तो समझ जाएं…ठगी हो सकती है
1. अगर विक्रेता पूरा का पूरा पैसा नकद मांग रहा हो।
2. संपत्ति के मूल दस्तावेज न हों। दस्तावेजों में किए गए साइन में फर्क नजर आए।
3. संपत्ति के दस्तावेज सादे कागज पर हों। सौदे के वक्त विक्रेता मौजूद न हो।
4. संपत्ति गिरवी हो या उस पर कोई मुकदमा चल रहा हो।
5. संपत्ति कर, बिजली का बिल, पानी का बिल जैसी चीजों का भुगतान रुका हो।
6. संपत्ति पर विक्रेता के अलावा किसी और का कब्जा हो।
प्रॉपर्टी खरीदने से पहले एनओसी देखना अहम
– सोसाइटी शेयर सर्टिफिकेट देता है। इससे प्रॉपर्टी बेचने वाले की मेंबरशिप का भी पता चल जाता है। सर्टिफिकेट नहीं होने पर प्रॉपर्टी खरीदना सही नहीं होगा।
– प्रॉपर्टी खरीदने में एनओसी काफी अहम होती है। इससे पता चलता है कि ट्रांसफर में कोई समस्या हो नहीं है। एनओसी सर्टिफिकेट यह भी बताता है कि प्रॉपर्टी सेलर किसी तरह का डिफॉल्टर तो नहीं है।
– कई बार कृषि जमीन का यूज बदलकर उसे गैर कृषि इस्तेमाल के लिए कर दिया जाता है। अगर जमीन इस तरह की है तो तहसीलदार या अन्य संबंधित अधिकारी के यहां फीस के साथ आवेदन कर एडोंर्समेंट ऑर्डर हासिल करें।
– खेती की जमीन हो या फिर कमर्शियल प्लॉट। खरीदने से पहले दस्तावेजों को जांच लें। खेती की जमीन के दस्तावेजों की जानकारी राज्य सरकार के राजस्व विभाग से मिल जाएगी। जमीन के वर्तमान खसरा नंबर से जमीन के पुराने से लेकर आज तक के रिकॉर्ड की फोटोकॉपी तहसील ऑफिस और जिला रिकॉर्ड रूम से प्राप्त की जा सकती है। वहीं कमर्शियल प्लॉट के पेपरों की जानकारी लोकल अथॉरिटी से मिल जाएगी।
– शहरी इलाकों में जमीन का रेगुलेशन जोनवार किया जाता है। लोकल विकास प्राधिकरण में जाकर उसके जोनल सर्टिफिकेट के लिए आवेदन करें। यह सुनिश्चित करें कि जिस प्रॉपर्टी को आप खरीदने जा रहे हैं, वह रिहायशी जोन में है तो उसमें निवेश बिल्कुल न करें क्योंकि ऐसे इलाकों में रेसिडेंसियल इमारत बनान अवैध है।
इन बातों का भी रखें ध्यान
– यदि जमीन किसी चैरिटेबल ट्रस्ट, सरकारी संस्था या एजेंसी के नाम पर है तो बिल्डर को किसी भी निर्माण के लिए अनुमति लेनी पड़ती है। ध्यान रखें कि बिल्डर ने इसके लिए नियम एवं शर्तें पूरी की हैं या नहीं।
– किसी भी निर्माण से पहले नगर निगम या पालिक से अनुमति लेना जरूरी है। बिल्डर या डेवलपर को निर्माण के समय बिल्डिंग की ऊंचाई और बेचते समय अनुमति लेना अनिवार्य होता है। निगम या पालिका द्वारा अनुमानित पत्र प्रदान किया जाता है।
– अगर आप अपार्टमेंट या फ्लैट खरीद रहें हैं तो नगर निगम या पालिका द्वारा दी गई बिल्डिंग परमिशन की मंजूरी की जानकारी होना आवश्यक है। अप्रूव्ड प्लान सर्टिफिकेट में सही तरीके से बिल्डिंग का निर्माण किया गया है या नहीं, इसकी जानकारी होती है।
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