इंटरनेशनल डेस्क. राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी परियोजना वन बेल्ट-वन रोड (ओबीओर) भारत के लिए खतरा साबित हो सकती है। इस प्रोजेक्ट के तहत रेल, सड़क और समुद्री मार्ग से एशिया, यूरोप, अफ्रीका के 70 देश जुड़ेंगे, जिनके जरिए भारत को घेरने की कोशिश है। ओबीओर पर चीन 900 अरब डॉलर (करीब 64 लाख करोड़ रुपए) का खर्च कर रहा है। यह रकम दुनिया की कुल जीडीपी की एक तिहाई है।
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दूसरी शताब्दी में चीन ने भारत, फारस (वर्तमान ईरान) और रोमन साम्राज्य को जोड़ने के लिए सिल्क रूट बनाया था। इससे चीनी कारोबारी ऊंट और घोड़ों के माध्यम से रेशम समेत कई चीजों का व्यापार करते थे। अब ओबीओआर को दो हिस्सों में बनाया जा रहा है। पहला- जमीन पर बनने वाला सिल्क रोड है, जिसे सिल्क रोडइकोनॉमिक बेल्ट (एसआरईबी) कहा जाता है। दूसरा- मैरीटाइम सिल्क रोड (एमएसआर) है, जो समुद्र से होकर गुजरेगा।
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एसआरईबी एशिया, अफ्रीका और यूरोप को जोड़ेगा। यह रूट बीजिंग को तुर्की तक जोड़ने के लिए प्रस्तावित है और रूस-ईरान-इराक को कवर करेगा। वहीं, एमएसआर दक्षिण चीन सागर से हिंद महासागर के रास्ते दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और खाड़ी देशों को जोड़ेगा।
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ओबीओआर के तहत चीन इन्फ्रास्ट्रक्चर, ट्रांसपोर्ट और एनर्जी में निवेश कर रहा है। इसके तहत पाकिस्तान में गैस पाइपलाइन, हंगरी में एक हाईवे और थाईलैंड में हाईस्पीड रेल लिंक बनाया जा रहा है। चीन से यूरोप (पोलैंड) तक 9800 किमी तक रेललाइन डाली जाएगी।
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ओबीओआर के तहत चीन के शिनजियांग से पाकिस्तान के ग्वादर तक चीन-पाक इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) बन रहा है। सीपीईसी, पाक के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) से गुजरेगा। भारत इसे संप्रभुता का उल्लंघन बताता है। भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक, कोई भी देश अपनी क्षेत्रीय अखंडता को नजरअंदाज करके इस परियोजना से नहीं जुड़ सकता।
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पिछले साल मई में चीन में ओबीओआर पर हुई समिट में 29 देश शामिल हुए थे। इसमें भारत शामिल नहीं हुआ था। तब भारत ने कहा था कि प्रोजेक्ट को अंतरराष्ट्रीय कानून, पारदर्शिता और बराबरी पर आधारित होना चाहिए। चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा था- सीपीईसी का भारत के राजनीतिक और कश्मीर सीमा विवाद से सीधे तौर कोई लेना-देना नहीं है। ये केवल आर्थिक सहयोग और विकास के लिए बनाया जा रहा है।
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हिंद महासागर के देशों में चीन बंदरगाह, नौसेना बेस और निगरानी पोस्ट बनाना चाहता है। इससे एक तरह से भारत घिर जाएगा। इसे स्ट्रिंग ऑफ पल्स नाम दिया जा रहा है। परियोजना के तहत चीन श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश में पोर्ट बना रहा है। इसके जरिए वह बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में प्रभाव बढ़ाएगा। ओबीओआर के जरिए चीन विकासशील देशों में भारी-भरकम निवेश करेगा। इससे उन देशों के साथ भारत के व्यापार पर असर पड़ सकता है।
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कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि ओबीओआर में शामिल होना भारत के लिए बेहतर साबित होगा। क्षेत्र में उसकी कनेक्टिविटी के अलावा ऊर्जा और समुद्र पर भी पकड़ मजबूत होगी। ओबीओआर के जरिए चीन भारत में पैसा लगा सकता है, जिससे यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधारने में मदद मिल सकती है।
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विदेश मामलों के जानकार रहीस सिंह बताते हैं कि चीन ओबीओआर के तहत श्रीलंका, म्यांमार, फिलीपींस, पाकिस्तान, थाईलैंड, बांग्लादेश और म्यांमार को बड़े लोन दे रहा है लेकिन ये देश उसका कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं हैं। चीन उनकी इक्विटी खरीदकर अपनी कंपनियों को बेच रहा है।
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चीनी कंपनियां इन देशों पर आर्थिक रूप से कब्जा कर रही हैं। भारत को चीन जमीन और समुद्र, दोनों तरफ से घेर रहा है। अगर भारत इसमें (ओबीओआर) भागीदार बनता है तो ग्लोबल इकोनॉमी में हिस्सेदार तो बन जाएगा, लेकिन उसकी भूमिका नेतृत्व की नहीं रहेगी।