शिवराज द्रुपद\अनुज शर्मा, अमृतसर.प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली समेत देश भर में भड़के सिख विरोधी दंगों से बचने के लिए 30 हजार सिख परिवार पलायन करके पंजाब के विभिन्न हिस्सों में पहुंचे थे। यह वह लोग रहे हैं, जो नौकरी, कारोबार तथा खेती आदि के जरिए विभिन्न राज्यों व शहरों में स्थापित थे। दंगे भड़के तो दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, एमपी और यूपी, राउरकेला और देश के अन्य शहरों में दिनदहाड़े 15,000 सिखों की हत्या कर दी गई थी। हिंसा की इस आग से 8,000 से भी अधिक परिवार प्रभावित हुए थे।
सिख कत्लेआम पीड़ित वेलफेयर सोसायटी के प्रधान सुरजीत सिंह का कहना है कि हालात उतने बुरे थे कि लोगों को घरों से खींच-खींच कर मारा जा रहा था। उनकी संपत्तियां-घर जलाए और लूटे जा रहे थे। लोगों ने जान बचाने के लिए दंगाइयोें के समक्ष बड़ी मिन्नतें कीं लेकिन उन पर कोई असर नहीं हुआ।
उनका कहना है कि यह भयावह त्रासदी 1947 में हुए देश के बंटवारे की कत्लोगारत से कम नहीं थी। प्रधान की मानें तो जान बचाने के लिए उस दौरान 3000 से अधिक परिवार पंजाब में दाखिल हुए थे। रिश्तेदारों-दोस्तों के अलावा लोगों ने सालों तक का वक्त सड़क पर गुजारा।
जांच प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि उसने दोषियों को खुल कर बचाया। उनका कहना है कि दिल्ली दंगों को लेकर 650 से ज्यादा केस दर्ज। इसमें से 268 मामलों की फाइलें गायब कर दी गई, जबकि 241 केसों को ही बंद कर दिया।
उनका कहना है कि सिख विरोधी दंगों की जांच के लिए अब तक गठित 3 आयोग, 7 कमीशन और 2 एसआईटी टीमें ऐसा भी नहीं कर सकीं कि किसी दोषी को सलाखों के पीछे कुछ दिन तक रखा जा सके। अब तक सिर्फ 60 केस फिर से खोले गए। उनका कहना है कि हालात सुधरने के बाद काफी लोग अपने-अपने शहरों को चले गए लेकिन 16,000 परिवारों का इतना नुकसान हुआ कि वह वापस नहीं जा सके।
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