
पश्चिम बंगाल में जूनियर डॉक्टरों के साथ हुई मारपीट को लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) में रोष थमने का नाम नहीं ले रहा है। सोमवार को जिले भर में आईएमए के 240 डाॅक्टरों ने अपने करीब 70 से अधिक क्लिनिकों में डाॅक्टरी सेवाएं ठप रखी। सोमवार सुबह 6 बजे से लेकर मंगलवार 6 बजे तक किसी मरीज को चेक नहीं किया गया। उधर, सिविल अस्पतालों में सरकारी छुट्टी होने के कारण सिर्फ इमरजेंसी में ही मरीजों को उपचार मिल सका, जबकि निजी अस्पतालों में इमरजेंसी भी अटैंड नहीं की गई। इस कारण जिले भर में मरीजों को काफी परेशानी उठानी पड़ी। 24 घंटे तक मरीज उपचार के लिए भटकते रहे। ऐसे में मरीजों की सिविल अस्पताल की इमरजेंसी और दवा की दुकानों पर अधिक भीड़ देखी गई। सिविल अस्पताल में अकेले डॉक्टर बलजीत सिंह ने 190 मरीजों का इलाज किया।
आईएमए की एक्शन कमेटी कम लीगल सेल के चेयरमैन डॉ. अमनदीप अग्रवाल ने बताया कि आईएमए की सहमति से ही फैसला लिया गया था कि सोमवार को 24 घंटे के लिए डाॅक्टरी सेवाओं को बंद किया जाएगा। उनका कहना है कि पश्चिम बंगाल में जूनियर डाॅक्टरों पर मरीज के परिजनों की ओर से किए गए हमले से देश भर में डाॅक्टर खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे हैं। ऐसे में डाॅक्टर गंभीर केस को अपने हाथ में लेने से डरने लगे हैं। यही हाल रहा तो डाॅक्टर गंभीर मरीज को देखना तक बंद कर देंगे, जिससे नुकसान मरीज का होगा। उन्होंने कहा कि कोई भी डाॅक्टर जानबूझ कर मरीज को मौत के मुंह में नहीं डालता। इसके बावजूद मरीज की मौत के बाद डाॅक्टर को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है। डाॅक्टरों के साथ मारपीट किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं की जाएगी। केंद्र सरकार को डाॅक्टरों को हर हाल में सुरक्षित माहौल मुहैया करवाना होगा।
डॉक्टर बोले
संगरूर के सिविल अस्पताल में दर्द के कारण बेंच पर लेटा बुजुर्ग मरीज।
आगे क्या
आईएमए ने चेतावनी दी है कि यदि डॉक्टर से हुई मारपीट मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई तो एसोसिएशन के अगले फैसले के अनुसार कड़ा संघर्ष शुरू किया जाएगा, जिसके चलते डाॅक्टरों की हड़ताल कई दिनों तक चल सकती है।
हड़ताल का असर
गांव चोटियां निवासी कुलदीप कौर ने बताया कि एक माह पहले उसने बेटे को जन्म दिया है। जोकि कई दिनों से बीमार चल रहा है। सोमवार को अपने बेटे को दिखाने संगरूर आई थी, परंतु सभी डाॅक्टर हड़ताल पर हैं। ऐसे में सिविल अस्पताल में इमरजेंसी में बेटे को लेकर पहुंची, लेकिन इमरजेंसी में बच्चों के माहिर डाॅक्टर की ड्यूटी नहीं है। डाॅक्टर ने एक बार दवा देकर सोमवार का दिन निकालने को बोला है।
गांव उगराहां निवासी तेजा सिंह ने बताया कि उसे कई दिनों से तेज बुखार हो रहा है। ऐसे में गांव के डाॅक्टर से दवा लेते रहे हैं। सोमवार को तबीयत अधिक खराब होने के कारण संगरूर डाॅक्टर को दिखाने पहुंचे तो सभी निजी क्लीनिक बंद थे। अस्पताल में भी छुट्टी है। ऐसे में उपचार के बगैर ही लौटना पड़ रहा है।
गांव संगतपुरा के गुरजंट सिंह ने बताया कि पेट में पथरी के कारण दर्द रहता है। सोमवार को उसके डाॅक्टर ने बुलाया था, परंतु हड़ताल के कारण डाॅक्टर क्लीनिक ही नहीं पहुंचे, जिस कारण दर्द में ही गांव लौटना पड़ रहा है।
आईएमए संगरूर के उपप्रधान डॉ. अमित सिंगला ने कहा कि देश भर में राज्य सरकारों ने डाक्टरों के लिए कानून तो बनाए हैं, परंतु इसे कहीं लागू किया जा रहा है तो कहीं नजरअंदाज हो रहा है। ऐसे में केंद्र सरकार डाॅक्टरों की सुरक्षा के लिए कानून लेकर आए। डाॅक्टरों से मारपीट जैसी घटनाओं में गैर जमानती धारा होनी चाहिए।मरीजों को आने वाली परेशानी को लेकर आईएमए की ओर से तर्क दिया गया है कि डाॅक्टर किसी मरीज को परेशान नहीं देखना चाहते हैं, परंतु मामला पूरे देश के डाक्टरों की सुरक्षा से जुड़ा है, जिसे हर व्यक्ति को समझना होगा। मरीज और उनके रिश्तेदारों को भी डाॅक्टरों की भावनाओं को समझना चाहिए। आईएमए की ओर से दावा किया गया कि आईएमए को लेबोरेटरी टेक्नीशियन एसोसिएशन, एमआर एसोसिएशन और इंडियन डेंटल एसोसिएशन का समर्थन मिला।