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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

2013 दंगों में टूटे अखाड़े को जमीन गिरवी रखकर शुरू किया, अब यहां का खिलाड़ी वर्ल्ड चैंपियनशिप खेलेगा

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  • कुश्ती की ट्रेनिंग दे रहे निर्दोष बालियान ने 5 एकड़ जमीन गिरवी रखकर 60 लाख रुपए का लोन लिया था
  • मुजफ्फरनगर के अखाड़े में ट्रेनिंग ले रहे गौरव बालियान ने नेशनल में गोल्ड जीता, अब वर्ल्ड चैंपियनशिप में उतरेंगे

Dainik Bhaskar

Oct 07, 2019, 08:35 AM IST

खेल डेस्क. छह साल पहले मुजफ्फरनगर दंगे में शाहपुर गांव सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। इन दंगों में 72 से ज्यादा लोग मारे गए थे और सैकड़ों विस्थापित हुए थे। निर्दोष बालियान अपने गांव गोयला में घर पर थे। उन्होंने सुना कि दंगे में कई घरों और स्कूलों को भी नुकसान पहुंचा है, तो वे शाहपुर के सरकारी कॉलेज, जहां वे अपना कुश्ती का अखाड़ा चलाते थे, वहां पहुंचे। उन्होंने देखा कि दंगाइयों ने कॉलेज को भी तोड़ दिया है। कुश्ती का मैट तक नहीं बचा था। हर चीज क्षतिग्रस्त थी। शाहपुर के इस इंटर कॉलेज में कुश्ती का छोटा से ट्रेनिंग हॉल था। वहां लगभग 60 पहलवान निर्दोष बालियान से ट्रेनिंग लेते थे। लेकिन दंगे में यह अखाड़ा भी नहीं बचा। इसके बाद कुछ पहलवान घर चले गए थे। कुछ तो कभी वापस ही नहीं लौटे।

इन पहलवानों में गौरव बालियान भी थे, जो पास के ही गांव शाेरोन के थे। दंगों के बाद गौरव भी अखाड़ा छोड़कर घर चले गए थे। हालांकि, उन्होंने कुश्ती नहीं छोड़ी और अपने गांव में ही ट्रेनिंग करते थे। अखाड़े के कोच निर्दोष बालियान निराश होकर घर लौट गए और पिता के साथ खेती में हाथ बंटाने लगे। लेकिन सात महीने बाद उन्होंने फैसला किया कि ट्रेनिंग सेंटर दोबारा शुरू करना चाहिए। उन्होंने पिता से सलाह की और घर की जमीन बैंक में गारंटी के रूप में रखकर लोन ले लिया।

‘घर पर बैठना मंजूर नहीं था’

निर्दोष बताते हैं, ‘मैंने घर की 5 एकड़ जमीन गिरवी रखकर 60 लाख रुपए का लोन लिया। घर पर बैठना और बच्चों को कुश्ती से दूर होते देखना मुझे मंजूर नहीं था। खुशी है कि मैंने वह रिस्क लिया। हमारे अखाड़े के 18 साल के गौरव बालियान ने महाराष्ट्र में अंडर-23 नेशनल चैम्पियनशिप में 74 किग्रा वेट कैटेगरी में गोल्ड मेडल जीता।’ गौरव ने बुडापेस्ट (हंगरी) में अंडर-23 वर्ल्ड चैम्पियनशिप के लिए क्वालिफाई किया। यह चैम्पियनशिप 28 अक्टूबर से 3 नवंबर तक होगी।

‘हमने अभी कुछ खास हासिल नहीं किया’

निर्दोष कहते हैं, ‘हमने अभी कुछ खास हासिल नहीं किया है। गौरव अभी भी बच्चा है। मुझे उम्मीद है कि वह अगले तीन ओलिंपिक खेल सकता है। यह सिर्फ उस दिशा में एक छोटा सा कदम है। उसमें खेल को लेकर एक अलग तरह का ही जुनून है, जो उसे दूसरों से अलग बनाता है। वह हमारे अखाड़े के अन्य पहलवानों से ज्यादा मेहनत करता है। गौरव कुश्ती की टेक्नीक और स्किल जानता है। उसे सिर्फ इतना बताना पड़ता है कि कब किस टेक्नीक का इस्तेमाल करना है। हालांकि, हमारे पास ज्यादा सुविधाएं नहीं हैं। मैं हमेशा खिलाड़ियों से कहता हूं कि कुश्ती को अपना जुनून बनाओ। कुश्ती सिर्फ इसलिए मत लड़ो कि आपको नौकरी चाहिए। गौरव का यह तीसरा इंटरनेशनल इवेंट है। वह वहां मेडल जीते या नहीं, इससे फर्क नहीं पड़ता। लेकिन यह उसके लिए सीखने और खुद को साबित करने का बहुत अच्छा मौका है।’

लोकल दंगल के पैसों से घर चलाते थे गौरव
गौरव के पिता की 2007 में कैंसर से मौत हो चुकी है। तब उसकी उम्र सिर्फ 6 साल थी। मां ने तीन बेटों के पालन-पोषण के लिए 2000 रुपए प्रतिमाह में आंगनवाड़ी में काम करना शुरू किया। कुश्ती में अच्छी डाइट की जरूरत होती है। इसलिए कोच निर्दोष बालियान ने गौरव की आर्थिक रूप से मदद भी की। कुछ साल ट्रेनिंग के बाद गौरव लोकल दंगल में भी हिस्सा लेने लगा, ताकि वहां से जीती प्राइज मनी से मां की मदद कर सके। गौरव कहते हैं, ‘मेरे दोनों भाइयों के पास फिलहाल कोई काम नहीं है। मां अभी भी आंगनवाड़ी में काम करती हैं। मैं कुश्ती के जरिए ही उनकी हरसंभव मदद की कोशिश करता हूं।’

दो बार कैडेट नेशनल खिताब जीत चुके गौरव

गौरव दो बार कैडेट नेशनल और एक बार जूनियर नेशनल चैम्पियन बन चुके हैं। वे अपने से ज्यादा अनुभव वाले खिलाड़ियों को हरा चुके हैं। गौरव ने नेशनल चैम्पियनशिप के क्वार्टर फाइनल में विकास को 14-4, सेमीफाइनल में जूनियर एशियन चैम्पियन और नेशनल टीम के सदस्य सचिन राठी को 3-1 और फाइनल में प्रीतम को 5-1 से मात दी थी। गौरव कहते हैं, ‘कोच मुझसे जो कहते हैं, मैं सिर्फ उन बातों पर टिका रहता हूं। मैं अपने गांव में 8 साल की उम्र से कुश्ती सीख रहा हूं। मेरे चाचा मुझे ट्रेनिंग देते थे। उसके बाद मैं शाहपुर शिफ्ट हो गया और निर्दोष सर मेरे गुरू बन गए। वे मुझे 2011 से ट्रेनिंग दे रहे हैं। वे मेरे जैसे युवा खिलाड़ियों के लिए पिता के समान हैं।’

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