ऐसे समय, जब आम लोगों के मन में सवाल उठने लगा था कि- देश में लोकतंत्र की वापसी हो भी पाएगी या नहीं?- प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी खत्म करने और चुनाव कराने की घोषणा कर दी। घोषणा 18 जनवरी 1977 को रेडियाे पर हुई। इंदिरा ने कहा -करीब 18 महीने पहले हमारा प्यारा देश बर्बादी की कगार पर पहुंच गया था। राष्ट्र में स्थितियां सामान्य नहीं थीं।
अब हालात स्वस्थ हो चुके हैं, इसलिए चुनाव करवाए जा सकते हैं।
इतिहासकार रामचंद्र गुहा की किताब ‘भारत नेहरू के बाद’ के अनुसार इधर इंदिरा गांधी रेडियो पर भाषणदे रहीं थी, उधर उनके विरोधियों को जेलों से रिहा किया जा रहा था। इंदिरा की घोषणा के अगले ही दिन 19 जनवरी को मोरारजी देसाई के दिल्ली स्थित आवास पर चारों बड़े विरोधी दलों के नेताओं की मुलाकात हुई। इन्होंने तय किया कि जनसंघ, भारतीय लोक दल, सोशलिस्ट पार्टी और मोरारजी देसाई की कांग्रेस (ओ) एक ही चुनाव चिह्न (हलधर किसान) और झंडे तले चुनाव लड़ेंगे।
इसके तीन महीने के अंदर चुनाव हुए और देश में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार देखने को मिली। अब तकजीत के रिकाॅर्ड बना रही कांग्रेस 154 सीटें ही ला सकी। 1971 में हुए चुनाव की तुलना में उसे करीब 200 सीटें कम मिलीं। इंदिरा और उनके बेटे संजय गांधी समेत कांग्रेस के कई दिग्गज नेता चुनाव हार गए।
जय प्रकाश नारायण (जेपी) की अगुवाई में जनता पार्टी ने विशाल जीत दर्ज की। विशेष रूप से उत्तर भारत में जनता पार्टी को भारी सफलता मिली। गुहा लिखते हैं कि मार्च के अंत में चुनाव होने थे, इसी दौरान छह मार्च को रविवार के दिन विपक्षी पार्टियों ने रामलीला मैदान में विशाल जनसभा की। सरकार ने इसे नाकाम बनाने के लिए रैली के वक्त टेलीविजन पर रोमांटिक हिट फिल्म बॉबी का प्रसारण करवाया। फिर भी रैली में जेपी को सुनने 10 लाख लोग आए।
जनता पार्टी उत्तर भारत में तो कांग्रेस दक्षिण भारत में हुई सफल
- इस चुनाव के बाद पहली बार देश में दो उपप्रधानमंत्री देखने को मिले, जगजीवन राम और चौधरी चरण सिंह। चुनावों में चूंकि विपक्ष एकजुट था इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर पांच ही पार्टियों ने चुनाव लड़ा। जनता पार्टी के सभी उम्मीदवार भारतीय लोकदल के चुनाव चिह्न पर लड़े। वहीं 15 क्षेत्रीय पार्टियों, 14 रजिस्टर्ड पार्टियों ने हिस्सा लिया।
- इमरजेंसी के समय कांग्रेस में रहे दलित नेता जगजीवन राम ने कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी नाम से पार्टी बना ली। उनके साथ हेमवती नंदन बहुगुणा और नंदिनी सत्पथी ने भी कांग्रेस छोड़ी।
- दक्षिण में आपातकाल के बाद भी कांग्रेस को नुकसान नहीं हुआ। आंध्र में उसने 42 में से 41 सीटें जीतीं। कर्नाटक में 28 में से 26, केरल में 20 में से 11 और तमिलनाडु में 39 में से 14 सीटें मिलीं।
- कई युवा नेताओं को जीत मिली। बिहार की हाजीपुर सुरक्षित सीट से रामविलास पासवान ने करीब सवा चार लाख वोटों के अंतर से जीतकर रिकॉर्ड बनाया।
- अापातकाल के बाद नई दिल्ली में जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी का एक जनसभा में सुनाया यह शेर तब काफी चर्चा में रहा-
- बाद मुद्दत के मिले हैं दीवाने, कहने-सुनने को बहुत हैं अफसाने। खुली हवा में जरा सांस तो ले लें, कब तक रहेगी आजादी कौन जाने।
- 1977 के चुनाव के बारे में रामबहादुर राय लिखते हैं कि जॉर्ज फर्नांडीस जेल से चुनाव लड़ रहे थे। मुजफ्फरपुर में उनके पोस्टर में हथकड़ी और बेड़ी लगाकर लोगों को दिखाया जाता था। वर्तमान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और उनके पति स्वराज कौशल ने जाॅर्ज के प्रचार में बढ़-चढ़कर भाग लिया था।
- परिणाम के बाद प्रधानमंत्री बनने के लिए तीन प्रबल दावेदार थे- मोरारजी देसाई, जगजीवन राम और चरण सिंह। लेकिन जेपी की राय मोरारजी देसाई के पक्ष में गई और वे ही प्रधानमंत्री बने।
1977 में कुललोकसभा सीटें- 542
- कुल मतदाता- 32 करोड़
- मतदान – 60.49%
किसे कितनी सीटें?
- भारतीय लोक दल(जनता पार्टी)- 295
- कांग्रेस-154
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