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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

सेक्टर 38 में गंदगी का आलम स्वच्छता अभियान बना अधिकारियों के लिए औपचारिकता: युवा कांग्रेस

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सेक्टर 38 में गंदगी का आलम स्वच्छता अभियान बना अधिकारियों के लिए औपचारिकता: युवा कांग्रेस
स्वच्छता को लेकर अपनी ड्यूटी भूल चुका है। नगर निगम : युवा कांग्रेस
चंडीगढ़ :  सेक्टर 38 मोटर मार्किट की एंट्रेंस पर गंदगी का आलम बना हुआ है जिसके कारण आम नागरिकों को परेशानी से दो-चार होना पड़ रहा है
     इस पर प्रतिक्रिया देते हुए चंडीगढ़ युवा कांग्रेस के महासचिव विनायक बंगिया, सुखदेव सिंह ने कहाँ की नगर निगम के पास सफाई के लिए कर्मचारियों की पर्याप्त संख्या और संसाधन हैं इसके बाद सफाई व्यवस्था की अनदेखी की जा रही है जिसके कारण मोटर मार्किट सेक्टर 38 में काम करने वाले और अन्य कार्यों के लिए वहाँ आने वालों को गोबर की बदबू से दो चार होना पड़ रहा है
युवा नेता सुनील यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 में देशभर में ‘स्वच्छ भारत अभियान’ शुरू किया था। इसके 8 वर्ष बीतने के बाद भी चंडीगढ़ नगर निगम शहर को साफ नहीं कर पाया है। आए दिन निगम लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरुक करने के दावे कर रहा है, मगर स्वच्छता को लेकर वो अपनी ड्यूटी भूल चुका है।
   सफाई व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त करने के लिए
चंडीगढ़ नगम निगम के पास पूरी व्यवस्था है
 शहर की सफाई पर करोड़ो रूपये खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन नागरिकों को नारकीय जीवन जीने को विवश होना पड़ रहा है नगर निगम द्वारा स्वच्छता सर्वेक्षण के दौरान यहाँ से रोज कचरा इकट्ठा कराए जाने की बात कही गई थी जबकि वास्तविकता यह है कि सप्ताह में सिर्फ 2 दिन ही गाडि़यां एकत्रित कचरे के उठाव के लिए आती है।
स्वच्छता अभियान ‘ड्रामे’ से ज्यादा कुछ नहीं : जसप्रीत सिंह
युवा कांग्रेस से वार्ड नंबर 26 के प्रधान  व स्थानीय निवासी जसप्रीत सिंह के मुताबिक, निगम का स्वच्छता अभियान एक ‘ड्रामा’ से ज्यादा कुछ नहीं हैं। कुछ समय पहले 3 करोड़ रुपए की लागत से शुरू किया गया बायो माइनिंग प्रोजेक्ट दबे कचरे को निकालने से जहरीली बदबू फैला रहा है। इसकी बदबू प्रशासन द्वारा बनाई गई अपनी मंडी तक जा रही है।  कूड़े के पहाड़ को कम करने के लिए प्रशासन ने केंद्र से जनवरी में 77 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता की मांग की थी। इससे पहले भी करोड़ों रुपए इस समस्या से निजात पाने में खर्च हो चुके हैं। इसमें शहरवासियों की गाढ़ी कमाई का पैसा भी शामिल है।