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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

साहित्य के शब्द इतिहास में साक्षी रहेंगे ; कमलकिशोर गोयनका

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चंडीगढ़। केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा और साहित्य संगम ट्राईसिटी (रजि.) जीरकपुर के संयुक्त प्रयासों से चंडीगढ़ में एक अखिल भारतीय सेमिनार का आयोजन किया गया। डॉ. कमलकिशोर गोयनका की अध्यक्षता में प्रो. मनमोहन सहगल यहां मुख्य अतिथि की भूमिका में रहे। साहित्यिक पत्रकारिता: कल, आज और कल विषय पर संगोष्ठी निदेशक प्रो. फूलचंद मानव ने देश के आठ प्रांतों से आए साहित्यकारों, विद्वानों का स्वागत करते हुए बताया कि इस अवसर पर 235 विभिन्न लघु पत्रिकाओं की प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है। कोई 35 साल पहले बठिंडा में 204 लघु पत्रिकाओं की प्रदर्शनी भी साहित्य संगम ट्राईसिटी ने आयोजित की थी।डॉ. कमलकिशोर गोयनका और प्रो. मनमोहन सहगल का पुष्पगुच्छों के साथ स्वागत करते हुए करतल ध्वनि में पीपल कन्वेंशन सेंटर, सेक्टर 36बी चंडीगढ़ के सभागार में दर्शक और श्रोता एक आत्मीयता और ऊष्णता का एहसास लिए सजग बैठे थे। मंच संचालन करते हुए फूलचंद मानव ने सबसे पहले श्रीमती डॉ. कमल कुमार को ‘साहित्यिक पत्रकारिता में नारी’ विषय पर बोलने के लिए आमंत्रित किया। दिल्ली से आई डॉ. कमल कुमार ने शोध और सर्वेक्षण के आधार पर अतीत और आज साहित्यिक पत्रकारिता में नारी के योगदान का उल्लेख करते हुए उनके महत्व को रेखांकित किया। पटियाला से आए प्रो. सतीश कुमार वर्मा पंजाबी की साहित्यिक पत्रकारिता पर मुखर वक्तव्य देकर वातावरण पर छाए रहे। इनकी स्थापनाएं तथा खोज को करतल ध्वनि के साथ सहर्ष स्वीकार किया गया। मुंबई से आए संजीव निगम साहित्यिक पत्रकारिता की चुनौतियों पर बात करते हुए विषय के विभिन्न पहलुओं को छू रहे थे। आज के संदर्भ में पत्रकारिता की कठिनाइयां और उसकी संभावनाएं यहां उजागर हो पाईं। फूलचंद मानव के आलेख में केंद्रीय हिंदी संस्थान से छह साहित्यिक पत्रिकाएं रेखांकित होकर सामने आईं, जिनकी जानकारी हिंदी जगत में बहुत कम लोगों को थी। इन्होंने गवेषणा, संवाद पथ, प्रवासी जगत, समन्वय पश्चिम, समन्वय दक्षिण, और शैक्षिक उन्मेष जैसी छह पत्रिकाओं का मर्म और महत्व बताते हुए श्रोताओं को विस्तृत जानकारी दी। अमृतसर से आए और पंजाबी लघु पत्रिका ‘मिनी’ का पिछले 32 साल से संपादन कर रहे डॉ. प्रो. श्याम सुंदर द्वीप्ति ने साहित्यिक पत्रकारिता की ओर सार्थक कदमों का वर्णन करते हुए पंजाबी में आज की पत्रकारिता को साहित्य का अभिन्न अंग बताया और कहा कि कुशल हाथों में अच्छी पत्रिका हर वर्ग के पाठक को संतुष्ट करती है। मीडिया विशेषज्ञ डॉ. गौरी शंकर रैणा, नाटककार, कहानीकार और अनुवादक हैं। इनके आलेख इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में साहित्यिक पत्रकारिता पर पूरी गंभीरता से गौर किया गया और श्रोताओं ने बार-बार तालियां बजाकर इनके कथन का समर्थन करते हुए इस नए विषय को जानने में अपनी दिलचस्पी दिखाई। गाजियाबाद से आए विष्णु सक्सेना ने अपने आलेख में लघु पत्रिका के प्रकाशन को एक जुनून बताते हुए भारतीय और हिंदी की लघु पत्रिकाओं के योगदान को पाठकों के सामने स्पष्ट करके वाहवाही ले गए। रायपुर, छत्तीसगढ़ से आई जीतेश्वरी ‘साहित्यिक पत्रकारिता: कल और आज’ में अपनी शोध और खोज के आधार पर इसके इतिहास को कुरेदती हुई आज के वातावरण में पत्रकारिता की जरूरत और साहित्य के महत्व को भी स्पष्ट किया। नया ज्ञानोदय के संपादन सहायक और भारतीय ज्ञानपीठ के प्रकाशन अधिकारी डॉ. महेश्वर ने साहित्यिक पत्रकारिता के सरोकारों को इस तरह से उजागर किया कि महत्वपूर्ण लगभग सभी पत्रिकाएं दर्शकों-श्रोताओं के सामने साकार हो उठीं। डॉ. महेश्वर का कथन वजऩदार था कि आत्म-प्रचार से बचकर उद्देश्य विशेष के लिए संपादक को काम करना होगा, तभी साहित्य और साहित्यिक पत्रकारिता भविष्य में सुरक्षित-संकलित हो पाएगी। वर्धा के राकेश मिश्र अपने वक्तव्य में कुछ और पत्रिकाओं को काबिले-तारीफ मानते हुए उन पर चर्चा कर गए कि आज लघु पत्रिकाएं पठनीय इसलिए भी हैं कि उन पर श्रम और लगन हावी है। साहित्य अकादेमी के पुरस्कृत पंजाबी उपन्यासकार और कवि डॉ. मनमोहन आईपीएस ने विश्व पत्रकारिता और राष्ट्रीय पत्रकारिता को समझाते हुए पंजाबी की दैनिक पत्रों की मासिक, त्रैमासिक और अद्र्धवार्षिक या वार्षिक संकलनों की चर्चा करते हुए इस विषय के महत्व को सलक्ष्य श्रोताओं के सामने रखा। व्यग्य यात्रा के संपादक और सुपरिचित लेखक डॉ. प्रेम जनमेजय अपने पेपर में श्रम और लगन के साथ बहुत कुछ समेट कर लाए। ‘सार्थकता के लिए अर्थ से मुठभेड़’ शीर्षक आलेख में इन्होंने पत्रिका के लिए पैसा, साधन ही नहीं, लगन और लक्ष्य का प्रतीक भी बताया। सरकारी नीतियां, विज्ञापन की कार्यप्रणाली और छोटी-बड़ी पत्रिकाओं का अंतर विस्तार से समझाते हुए प्रेम जनमेजय ने कान खोलने वाली कुछ बातें श्रोताओं के सम्मुख प्रस्तुत कीं। डॉ. कमलकिशोर गोयनका राष्ट्रीय उपध्यक्ष, केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा, ने भारत सरकार मंत्रालय और संस्थान के कार्यक्रमों, नीतियों और कार्य-विस्तार की खुलकर चर्चा करते हुए चंडीगढ़ की इस गोष्ठी के बारे में बताया कि वे देश में अपने संस्थान की गोष्ठियों के लिए प्राय: स्वयं कहीं नहीं जाते। लेकिन चंडीगढ़ के इस आयोजन में आकर उनको आनंद की अनुभूति इस तरह से हुई है कि साहित्य संगम ट्राईसिटी, जीरकपुर ने संस्थान के सहयोग से अनुदान पाकर बड़े सही और सार्थक व्यक्तव्य प्रस्तुक करवाते हुए मुख्य मुद्दों को खोला है। और यहां बहुत कुछ अनबोला भी बोला गया है, जिस पर ध्यान देने की जरूरत है। डॉ. प्रो. मनमोहन सहगल और डॉ. कमलकिशोर गोयनका का सम्मान करते हुए साहित्य संगम के संस्थापक और अध्यक्ष प्रो. फूलचंद मानव ने एक-एक स्मृति चिह्न और शाल भेंट करके अपना कर्तव्य निभाया। श्री टेकचंद अत्री, प्रो. योगेश्वर कौर, नीना दीप, मक्खन सक्सेना व अन्य साहित्य संगम के अनेक सक्रिय सदस्यों का धन्यवाद करते हुए दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया गया। दूसरे सत्र में श्री नरेश कौशल की अध्यक्षता में एक कवि गोष्ठी का आयोजन भी इसी अवसर पर हुआ, जिसमें बाहर से पधारे और स्थानीय अठारह कवियों ने अपनी रचनाएं सुनाकर वातावरण को ऊष्णता प्रदान की।