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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

साहब! जिंदगी भर की कमाई से आशियाने बनाए हैं, इन्हें गिराने का मुआवजा तो दे दो…

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मनोज जोशी/विनीत राणा | मोहाली/जीरकपुर

एयरफोर्स एरिया की दीवार से 100 मीटर के एरिया में जो भी निर्माण हुए हैं उनको गिराने को लेकर हाईकोर्ट ने जो निर्देश दिए थे। उसके तहत उन 98 स्ट्रक्चर्स को चयनित किया है जो वर्ष 2011 के बाद बनाए गए थे। इन मकानें को गिराने के नोटिस तक जारी कर दिए हैं। इसको लेकर यहां रहने वाले लोगों में इसलिए हडकंप मच गया है कि उनको इन मकानों को गिराए जाने का कोई मुआवजा नहीं दिया जाएगा। यहां पर ज्यादातर वो लोग रहते हैं जो चंडीगढ़ में महंगे मकान होने के कारण वहां खरीद नहीं सके।

पूरी कमाई से मकान खरीदे और अब उनको गिराने की तलवार लटक रही है। लोगों ने कोर्ट से गुहार लगाते हुए कहा कि जज साहब जमीन खरीदने के लिए स्टाम्प ड्यूटी देकर रजिस्ट्री करवाई, फीस जमा करवाकर नक्शा पास करवाया, प्राॅपर्टी टैक्स दिया और फिर नगर परिषद ने उनको एरिया में रोड्स बनाई, सीवर व पीने के पानी की लाइन्स डाली, स्ट्रीट लाइट्स लगाई। तो यह अब मकान अवैध कैसे हो गए। यदि यह निर्माण अवैध हैं तो जो खर्चा किया है कम से कम उसका मुआवजा तो दिया जाए। यदि कार्रवाई करनी है तो नगर काउंसिल के उन अधिकारियों, बिल्डरों व काॅलोनी काटने वाले डीलरों पर की जाए, जिन्होंने बाहर से आए लोगों को गुमराह किया। दीवार से सटे एरिया में जाकर पता भी नहीं चलता कि यहां पर हुए निर्माण अवैध हैं, क्योंकि चौड़ी सड़कंे, स्ट्रीट लाइट्स और हर तरह लोगों की कोठियां इस किसी अप्रूवड रेजीडेंशियल एरिया की गवाही भरता है। दैनिक भास्कर ने ऐसे ही कुछ लोगों से बातचीत की, जिन्होंने अपनी जीवन की कमाई मकानों पर लगा दी और अब जीवन के आखरी पड़ाव पर लूटा सा महसूस कर रहे हैं।



एयरपोर्ट एरिया के 100 मीटर के अंदर मकानों में रहने वाले लोग मकान गिराए जाने के आदेश के खिलाफ रोष प्रकट करते हुए।


पभात एरिया में रहने वाली शशी देवी उस दिन को कोसती है, उसका कहना है कि वर्ष 2018 में उसने नगर काउंसिल से नक्शा पास करवाया और अब उसे इस मकान को गिराने का नोटिस आ गया है। यह सर्वे पूरी तरह से फर्जी है। उसने कहा कि उसको न केबल डीलर ने झूठ बोला, बल्कि सरकारी अफसरों ने भी झूठ कहा। उसने बताया कि उसका पति बीमार रहता है और 13 लाख रुपए लोन ले रखा है। तीन बच्चे हैं। वह ही अपने परिवार व पति का पालन-पोषण कर रही है। जब डीलर से 60 का प्लॉट लिया तो बाकायदा इसका नक्शा पास हुआ। कमेटी में जाकर अफसरों से पता किया तो अफसर बोले इस प्लॉट में कोई दिककत नहीं है। उनको कहा भी कि वह अपने घर में मात्र अकेली कमाने वाली है और उसने लोन लेकर घर बनाना है। लेकिन अफसरों ने उसका नक्शा पास कर कहा कि एयरपोर्ट की दीवार से दूर है और पूरी तरह से सुरक्षित है। यही नहीं जब रजिस्ट्री हुई तो उससे पहले भी तहसीलदार को पूछा तो उनका भी जवाब था कि रजिस्ट्री करवा लो चेक कर लिया है और सब सही है। यही नहीं पंचकूला के देना बैंक से लोन करवाया तो वहां से आए आॅफिसर ने भी चेक किया वो भी बोले ठीक हैं, लेकिन अब कमेटी की तरफ से दो बार नोटिस आ गए कि उनका घर 100 मीटर एयरपोर्ट एरिया में आता है। अब बच्चों और बीमार पति को लेकर कहा जाऊं।


इसी प्रकार मकान नंबर-164 में रहने वाले कंचन सिंह ने बताया कि उनको घर बनाए कई साल हो चुके हैं। सबसे पहली बात उनके घर के आगे जो एयरपोर्ट की दीवार के साथ मार्केट बनी हुई है उन किसी शॉपकीपर को नगर परिषद का नोटिस नहीं आया। जबकि वह एयरपोर्ट दीवार से मात्र 10 फुट दूरी पर हैं। वहीं उनका घर वहां से कई मीटर दूर है तो उनको नोटिस दे दिया गया। सबसे बड़ी बात उनके प्लॉट का एक ही नक्शा है। फिर उन्होंने आधा प्लाॅट दे दिया, लेकिन पूरे प्लॉट का एक नक्शा है और दोनों के घरों की एक ही छत है। लेकिन सबसे बड़ी बात उनके घर को 100 मीटर दायरे में आने के कारण नोटिस दिया गया। जबकि साथ के दूसरे घर को कोई नोटिस नहीं आया। इसका मतलब परिषद पिक एंड चूज की पॉलिसी अपना रही है।


जरनैल एन्क्लेव-2 के मकान नंबर-37 में रहने वाले सुनील कुमार अग्रवाल, जिनकी दोनों आंखों की रोशनी नहीं है। वहीं उनकी प|ी उर्मिला अग्रवाल की आंखों की रोशनी भी नहीं है। सुनील पंचकूला एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट में बतौर डिप्टी सुपरिटेंडेंट के तौर पर तैनात हंै और आज उनकी रिटायरमेंट है। जिंदगी भर की कमाई लगाकर उन्होंने किश्तों में मकान बनाया और अभी भी कुछ काम रहता है। अब मकान गिराने का नोटिस आ गया। जबकि मकान की रजिस्ट्री वर्ष 2008 में हो रखी है और जो आॅर्डर आए हैं वह वर्ष 2011 के बाद के हँ। ऐसे में उनको मकान को कैसे नोटिस भेज दिया गया।