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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

सत्याग्रह का युग था छायावाद छायावादी कविता में थी क्रांतिकारी चेतना हिंदी विभाग द्वारा हिंदी आलोचना और छायावाद पर वेब – संवाद

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चंडीगढ़, 18 सितंबर। पंजाब विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के कही अनकही विचार मंच की ओर से आज वेब – संवाद का आयोजन किया गया। इस वेब – संवाद में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, बनारस से डॉ. प्रभाकर सिंह मुख्य वक्ता के रूप में शामिल हुए। उन्होंने ‘हिंदी आलोचना और छायावाद’ पर बोलते हुए कहा कि यूं तो छायावाद पर कई प्रतिष्ठित आलोचकों ने लिखा है। उदाहरण के लिए नामवर सिंह की पुस्तक ‘छायावाद’ भी एक मील के पत्थर की तरह है लेकिन वे आज मुख्य रूप से तीन आलोचकों शिवदान सिंह चौहान, विजयदेव नारायण साही और रमेशचंद्र शाह के प्रसंग से छायावाद पर चर्चा करना चाहेंगे। शिवदान सिंह चौहान द्वारा लिखे एक निबंध के हवाले से बताया कि छायावाद के कवियों में क्रांतिकारी चेतना और सामंतवाद के प्रति विरोध था। उन्होंने बताया कि छायावाद के दौर में ही हिंदी कविता के साथ हिंदी आलोचना की व्यापक जमीन का विस्तार होता है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल की आलोचना में छायावाद को शैली पद्धति विशेष की कविता कहते हुए उसे रोमांटिसिजम से जोड़ा गया जबकि उसी युग के कवि आलोचक प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी वर्मा छायावादी कविता की भारतीय जमीन की तलाश करते हैं। इस कविता की आलोचना में मार्क्सवादी आलोचकों रामविलास शर्मा और नामवर सिंह का विशेष योगदान रहा लेकिन इसी परंपरा के आलोचक शिवदान सिंह चौहान की आलोचना को प्रायः भुला दिया गया जिसकी तरफ डॉ. सिंह ने विस्तार से विचार किया।छायावादी कवियों को समझने के लिए विजयदेव नारायण साही की आलोचना दृष्टि का भी बहुत महत्व है। लघु मानव के बहाने हिंदी कविता पर एक बहस उनके निबंध में छायावाद को उन्होंने सत्याग्रह युग कहा है और इसके लिए यूरोप की रोमांटिक कविता की जगह भारतीय चेतना की कविता को समझने की पक्षधरता की। बाद के दिनों में रमेश चंद्र शाह, विजय बहादुर सिंह, गोपाल प्रधान, सूर्य प्रसाद दीक्षित, शीतांशु और अन्य कई आलोचकों ने छायावाद पर गुणवत्तापूर्ण लेखन किया है जिसे हमें देखना और परखना चाहिए। छायावादी कविता के कवि अपने कवि दृष्टि के विस्तार के चलते कई बार उस कैनवस से बाहर भी दिखाई देते हैं। जिसमें प्रसाद और निराला की कविताएँ बड़े फलक रचती हैं।
व्याख्यान के बाद प्रश्न – उत्तर का सत्र भी हुआ जिसमें एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हमें तुलनात्मक आलोचना के फेर में नहीं पड़ना चाहिए।
विभागाध्यक्ष डॉ. गुरमीत सिंह ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए बताया कि कही अनकही विचार मंच के कार्यक्रमों की श्रृंखला में अगले शुक्रवार 25 सितंबर को पुर्तगाल के लिस्बन विश्वविद्यालय के प्रो. शिव कुमार सिंह का ‘भाषाओं में शब्दों की आवाजाही’ विषय पर विशेष व्याख्यान होगा।
आज के कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों से शोधार्थी एवं प्राध्यापकों सहित 40 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया जिनमें विभाग के प्रो. सत्यपाल सहगल, तिरुपति से प्रो. राम प्रकाश, राजकीय महाविद्यालय सेक्टर – 42 से डॉ. हरप्रीत कौर, प्रयागराज से डॉ. ज्ञानेन्द्र शुक्ल और श्री प्रशांत मिश्रा शामिल रहे।