विकसित भारत@2047 के राष्ट्र कल्याण के लक्ष्य को साकार करने में युवा अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं।
श्री बंडारू दत्तात्रेय
माननीय राज्यपाल, हरियाणा
19वीं सदी के भारतीय दार्शनिक, आध्यात्मिक नेता, महान विचारक, वक्ता, कवि और युवाओं के महान संरक्षक स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को भारत और दुनिया के उत्थान के पीछे प्रेरक शक्ति के रूप में जाना है। उनका मानना था कि युवाओं के भीतर छिपी शक्ति का यदि उपयोग किया जाए और उसे महान आदर्शों की ओर निर्देशित किया जाए, तो समाज में गहरा परिवर्तन आ सकता है। स्वामी जी ने युवाओं में चरित्र निर्माण, नैतिक अखंडता और आत्मविश्वास की मजबूत भावना के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने उन्हें आधुनिक शिक्षा और आध्यात्मिक ज्ञान का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया, एक ऐसी शिक्षा प्रणाली की वकालत की, जो न केवल ज्ञान प्रदान करे बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी के साथ कर्तव्य और आत्मनिर्भरता की भावना को भी बढ़ावा दे।
स्वामी विवेकानन्द जी एक महान हिंदू संत थे जिनकी जयंती हम हर साल 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाते हैं उन्होंने युवाओं की एक ऐसी पीढ़ी की कल्पना की थी जो निडर, निस्वार्थ और मानवता की सेवा के लिए प्रतिबद्ध होगी। उनके लिए बेसहारा लोगों की सेवा ही ईश्वर की सच्ची सेवा थी। वह चाहते थे कि देश के युवाओं में मातृभूमि और जनता की सेवा करने की दृढ़ इच्छा शक्ति हो। उन्होंने देश की सेवा करने के उद्देश्य से उस समय युवाओं से एक बार कहा था कि तुम सब जाओ, जहां कहीं भी प्लेग या अकाल का प्रकोप हो या जहां भी लोग संकट में हों उनके कष्टों को कम करने में मदद करो।
स्वामी जी विवेकानन्द के ओजस्वी भाषण ने 11 सितंबर, 1893 को विश्व धर्म संसद, शिकागो में दुनिया भर से विभिन्न धर्मों के धार्मिक और आध्यात्मिक बु़ि़द्धजीवियों की सभा पर एक अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत पूरे दिल से सभा को अमेरिका की बहनों और भाइयों कहकर संबोधित करते हुए की, जिससे वे लोग बेहद प्रभावित हुए और उन्होंने जोरदार तालियां बजाकर उनका अभिनंदन किया।
उन्होंने कहा कि आपने हमारा जो गर्मजोशी और सौहार्दपूर्ण स्वागत किया है, उससे मेरा दिल अवर्णनीय बेहद खुशी से भर गया है और मैं खड़े होकर आप सबका हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। मैं दुनिया में भिक्षुओं के सबसे प्राचीन संप्रदाय की ओर से आपको धन्यवाद देता हूं। मैं सभी वर्गों और संप्रदायों के लाखों-करोड़ों हिंदू लोगों और धर्मों की जननी की ओर से आपको धन्यवाद देता हूं। उन्होंने श्रोतागण को आगे बताया कि मुझे ऐसे धर्म से होने पर गर्व है जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति दोनों सिखाई है। हम न केवल सार्वभौमिक सहिष्णुता में विश्वास करते हैं बल्कि हम सभी धर्मों को सच्चा मानते हैं। मैं एक ऐसे राष्ट्र से संबंध रखता हूं जिसने पृथ्वी पर सभी धर्मों और सभी राष्ट्रों के सताए हुए और शरणार्थियों को आश्रय दिया है। मुझे अपने राष्ट्र पर गर्व है।
उनका युवाओं के लिए सुप्रसिद्ध आह्वान था कि उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए और तुम्हें अंदर से बाहर तक आगे बढ़ना है। कोई तुम्हें सिखा नहीं सकता, कोई तुम्हें आध्यात्मिक नहीं बना सकता। आपकी अपनी आत्मा के अलावा कोई अन्य शिक्षक नहीं है। साथ ही इस तथ्य पर जोर दिया गया कि किसी राष्ट्र की ताकत और जीवन शक्ति उसके युवाओं के हाथों में होती है। उनके लिए, युवा सकारात्मक परिवर्तन के अग्रदूत हैं, उनमें बेहतर भविष्य को आकार देने के लिए आवश्यक ऊर्जा, उत्साह और रचनात्मकता होती है और उन्हें अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानने और उसका उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए, उनमें आत्मविश्वास और निडरता विकसित करने का आग्रह किया जाता है। उन्होंने कहा कि “सबसे बड़ा पाप यह सोचना है कि आप कमज़ोर हैं। ब्रह्मांड की सभी शक्तियाँ पहले से ही हमारी हैं। ये हम ही हैं जो अपनी आंखों पर हाथ रखकर रोते हैं कि अंधेरा है। अपनी जिंदगी में जोखिम उठाओ। यदि आप जीतते हैं, तो आप नेतृत्व कर सकते हैं, यदि आप हारते हैं, तो आप मार्गदर्शन कर सकते हैं।
स्वामी जी ने युवाओं को खेल के मैदान में रहने की सलाह दी। वह लोहे जैसी मांसपेशियों, फौलाद जैसी नसों और विशाल हृदय वाला युवा चाहते थे। उनका दृढ़ मत था कि युवाओं को शारीरिक रूप से मजबूत और मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए। इसीलिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने फिट इंडिया मूवमेंट की शुरुआत की है। मैं सभी स्कूलों और कॉलेजों के प्राचार्यों और विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से विनम्र अपील करता हूं कि वे सुनिश्चित करें कि हमारे छात्र खेल के मैदानों पर कम से कम एक घंटा अपनी रूचि अनुसार खेल खेलने में व्यतीत करें।
जब युवा उच्च आदर्शों, उद्देश्य की भावना और व्यापक ज्ञान से परिपूर्ण होते हैं, तो वे भलाई के लिए एक अजेय शक्ति बन जाते हैं। चूंकि आज भारत ओजस्वी एवं यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के दूरदर्शी, सशक्त एवं कुशल नेतृत्व में अपने इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है, इसलिए युवाओं को एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। 21वीं सदी भारत की सदी होगी क्योंकि देश अपनी क्षमताओं के प्रति आश्वस्त होकर भविष्य की ओर तीव्रता से अग्रसर है। यह आज दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी, क्योंकि आईएमएफ के अनुमान के मुताबिक इसकी जीडीपी 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर जाएगी। वर्ष 2047 तक, भारत एक विकसित राष्ट्र की सभी विशेषताओं के साथ 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। यह एक विकसित भारत होगा, जिसके लिए हमारे युवाओं को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में, भारत ने चंद्रयान जैसे मिशनों के माध्यम से अंतरिक्ष अन्वेषण में अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। भारत के डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) ने आधार,UPI, AA स्टैक, COWIN प्लेटफ़ॉर्म और GeM जैसी पहलों के साथ प्रधानमंत्री श्री मोदी जी की अनुकरणीय राजनीति के तहत वैश्विक मान्यता प्राप्त की है, जो डिजिटल नवाचार के लिए देश की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। भारत एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने की दिशा में प्रगति कर रहा है, और इसके सेवा क्षेत्र, विशेष रूप से आईटी और गैर-आईटी डोमेन में वैश्विक प्रमुखता प्राप्त की है। राष्ट्र एक संपन्न स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र का दावा करता है, जो 340 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के संयुक्त मूल्यांकन के साथ 100 से अधिक यूनिकॉर्न की मेजबानी करता है, जो खुद को दुनिया के तीसरे सबसे बड़े स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में स्थापित करता है।
आइए, अमृत काल के दौरान आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाओं और सिद्धांतों का अधिकतम लाभ उठाएँ। हम सब 12 जनवरी को स्वामी विवेकानन्द की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में इसलिए मनाते हैं कि ताकि हम स्वामी जी के आदर्शों और उनके दर्शन के लिए, जिनके लिए वे जिए और काम किए, वे भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत बन सकें। स्वामी जी के बताये रास्ते पर चलकर एक भारत, सर्वश्रेष्ठ भारत और भारत को विश्व गुरु बनाने का सपना साकार किया जा सके। उनका दृढ़ विश्वास था कि सभी रास्ते एक ही सच्चे ईश्वर तक जाते हैं, जैसा कि ऋग्वेद में भी उल्लेख किया गया है कि एकम् सत विप्रा बहुदा वदन्ति (सत्य एक है, बुद्धिमान इसे विभिन्न नामों से बुलाते हैं।) आइए, आज हम सब संकल्प लें कि स्वामी जी की शिक्षाओं और सिद्धांतों के सार को राष्ट्रीय भावना, देशभक्ति, विविधता में एकता, समावेशिता और पवित्रता को आत्मसात करें। यही स्वामी विवेकानन्द जी को हम सबकी तरफ से सच्ची श्रद्धांजलि होगी और 2047 तक विकसित भारत के निर्माण की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।