चंडीगढ़ । सूबे की सियासत में नए साल में सभी राजनीतिक दलों ने अपनी साख बचाने की कवायद अभी से शुरू कर दी है। 10 साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस के सामने लुधियाना में होने वाले नगर निगम चुनाव में विधानसभा की धमाकेदार जीत की साख को बचाने की चुनौती है तो शिरोमणि अकाली दल व भारतीय जनता पार्टी के सामने अपने खोए हुए जनाधार को वापस पाने की चुनौती। आम आदमी पार्टी के सामने ग्राउंड जीरो पर जाकर नए सिरे से पार्टी को लोगों के साथ कनेक्ट करने की चुनौती है।
बीते दस सालों से नशे की सियासत में घिरा पंजाब नए साल में भी नशे की गिरफ्त से बाहर आता नहीं दिखाई दे रहा है। अलग बात है कि एसटीएफ से सरकार व लोगों को काफी उम्मीदें हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अगर सरकार को हकीकत में नशे से पंजाब को मुक्त करवाना है तो एसटीएफ को और ज्यादा छूट देनी पड़ेगी। इतना जरूर है कि कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद से सूबे की सियायत में नशे का मुद्दा ठंडा पड़ता जा रहा है।
विधानसभा चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी आसमान से जमीन पर आ गई है। इसका जनाधार जितनी तेजी के साथ बढ़ा था उतनी ही तेजी के साथ गिरा भी है। यही वजह है कि आप नए साल में दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के हवाले पंजाब की कमान देकर पार्टी को नए सिरे से खड़ा करने की कवायद में जुट गई है। सिसोदिया के लिए भी यह बड़ी चुनौती है कि पंजाब में पार्टी का ग्राफ दोबारा उठाने के लिए उन्हें ग्राउंड जीरो पर जाकर काम करना होगा। यह डिप्टी सीएम रहते हुए बहुत मुश्किल काम है।
एक दशक बाद सत्ता से बाहर हुई अकाली दल व भारतीय जनता पार्टी के लिए नए साल में सबसे बड़ी चुनौती अपनी खोई साख को बचाने की है। जालंधर, अमृतसर व पटियाला में हुए निगम चुनाव में करारी हार के बाद दोनों दलों के लिए लुधियाना में सारे दांवपेंच आजमाकर जीत हासिल की मुश्किल चुनौती है। सरकार के खिलाफ नए साल में मुद्दों की लड़ाई पर भी दोनों दल मजबूती के साथ खड़े हो पाएंगे या नहीं, इसे लेकर दोनों दलों के थिंक टैंक अभी से कवायद में जुट गए हैं।
विधानसभा चुनाव के बाद गुरदासपुर लोकसभा उपचुनाव और फिर निकाय चुनाव में शानदार जीत के साथ सत्ता की पिच पर बैटिंग कर रही कांग्रेस के लिए भी लुधियाना नगर निगम चुनाव में जीत आसान नहीं है। प्रदेश सरकार ने सियासी गोटियां फिट करके पहले तीन नगर निगमों के चुनाव तो जीत लिए हैं लेकिन लुधियाना के मैदान में कांग्रेस को पटखनी देने के लिए सभी विरोधी दलों ने कमर कस ली है। यहां लोक इंसाफ पार्टी की मौजूदगी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इस पार्टी के प्रमुख सिमरजीत बैंस के लिए भविष्य की सियासत 2018 के निकाय चुनाव तय करेंगे।
इतना ही नहीं सियासी दलों के सामने 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों की भी चुनौती है। भाजपा व अकाली दल गठबंधन और आप के सामने चुनौती तो है ही, कांग्रेस की ओवरऑल फरफारमेंस भी यही साल तय करेगा। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि खाली खजाने के साथ भी कांग्रेस सरकार 2018 में विकास के पिटारे को किसी न किसी तरह खोलकर ही रखेगी।
माघी मेले पर सियासी कांफ्रेंस से दूरी बनाई सियासी दलों ने
श्री मुक्तसर साहिब में होने वाली सियासी कांफ्रेंस से इस बार कई सियासी दलों ने दूरी बनाने का फैसला किया है। आम आदमी पार्टी ने बाकायदा धर्म के नाम पर सियासत से दूर रहने की घोषणा करके खुद को सियासी अलग कर लिया है। आप को पहले ही पता था कि इस बार लोगों में पार्टी को लेकर वह जोश व जुनून नहीं रहा है।
2015 में जब इसी स्थान पर आप की सियासी कांफ्रेंस में अरविंद केजरीवाल ने भाग लिया था तब भारी संख्या में केजरीवाल को सुनने लोग उमड़े थे। लेकिन विधानसभा चुनाव में मात खाने के बाद से लगातार पंजाब में आप कमजोर होती जा रही है। यही वजह है कि आप ने इस बार माघी मेले पर सियासी कांफ्रेंस न करने का फैसला किया है। वहीं कांग्रेस ने भी मौके की नजाकत को देखते हुए सियासी कांफ्रेंस से दूरी बना ली है।