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Posted by Surinder Verma on Wednesday, June 17, 2020

दीवाली पर चार ग्रहों कि युति के दुर्लभ संयोग में जमकर बरसेगी माँ लक्ष्मी की कृपा : पं बीरेन्द्र नारायण मिश्रा

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दीवाली पर चार ग्रहों कि युति के दुर्लभ संयोग में जमकर बरसेगी माँ लक्ष्मी की कृपा : पं बीरेन्द्र नारायण मिश्रा

कार्तिक महीने की अमावस्‍या को दीपावली मनाई जाती है। भृगु ज्योतिष केंद्र,महाकाली मंदिर, सेक्टर 30 के ज्योतिषाचार्य पं बीरेन्द्र नारायण मिश्रा ने बताया कि ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या को अर्द्धरात्रि के समय मां लक्ष्मी सद्गृहस्थों के घर में जहाँ तहाँ विचरण करती हैं। यदि यह अमावस्या प्रदोषकाल एवं अर्द्धरात्रि – व्यापिनी हो तो विशेष शुभकारी होती है। पं बीरेन्द्र नारायण मिश्रा के अनुसार इस वर्ष कार्तिक अमावस्या 4 नवम्बर को प्रातः 6 बजकर 6 मिनट से प्रारम्भ होकर अगले दिन प्रातः 2 बजकर 47 मिनट तक रहेगी। इसके साथ ही स्वाति नक्षत्र (प्रातः 7:44 से अगले दिन प्रातः 5:08 तक), आयुष्मान योगकालीन (प्रातः 11:09 से) अपराह्न, सायाह्न, प्रदोष, निशीथ, महानिशीथ व्यापिनी अमावस्या युक्त होने से विशेषतः प्रशस्त एवं पुण्यदायक होगी। मान्यता है कि दिवाली पर मां लक्ष्मी की विधि पूर्वक पूजा करने से सुख-समृद्धि और यश की प्राप्ति होती है। जीवन में धन की कमी नहीं रहती है।

इस साल दीपावली पर ग्रह-नक्षत्रों का दुर्लभ संयोग बन रहा है क्‍योंकि इस दिन तुला राशि में एक साथ चार ग्रहों की युति की विशेष हलचल देखने को मिलेगी। दिवाली पर तुला राशि में सूर्य, बुध, मंगल और चंद्रमा विराजमान रहेंगे। ऐसा संयोग दुर्लभ ही बनता है। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को ग्रहों का राजा, मंगल को ग्रहों का सेनापति, बुध को ग्रहों का राजकुमार और चंद्रमा को मन का कारक माना गया है। चूंकि तुला राशि के स्‍वामी शुक्र ग्रह हैं और वे भौतिक सुख-सुविधाओं के कारक हैं, ऐसे में यह दुर्लभ संयोग लोगों पर मां लक्ष्‍मी की जमकर कृपा बरसाएगा। वहीं कुछ राशियों के जातकों के लिए तो यह संयोग किस्‍मत बदलने वाला साबित होगा।

लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त 

प्रदोष काल: सायं 5 बजकर 32 मिनट से लेकर 8 बजकर 12 मिनट तक। बृष (चर) लग्न 6 बजकर 11 मिनट से 8 बजकर 5 मिनट तक रहेगा। प्रदोष काल में बृष लग्न, स्वाति नक्षत्र, तुला का चन्द्रमा तथा अमृत की चौघड़िया सायं 5:32 से 7:12 तक तथा चर की चौघड़िया 7:12 से 8:52 तक पूजन प्रारम्भ कर लेना चाहिए। अमृत तथा चर की चौघड़िया के योग में दीपदान, श्रीमहालक्ष्मी पूजन, कुबेर-गणेश-बहीखाता पूजन, धर्म स्थलों तथा घर में दीपक प्रज्वलित करना तथा ब्राह्मणो, सम्बन्धियों एवं आश्रितों को भेंट, मिष्ठान्न आदि बांटना शुभ होगा।

निशीथ काल: रात्रि 8:12 से 10:51 तक। निशीथ काल में 8:52 तक चर की चौघड़िया मुहूर्त शुभ रहेंगी किन्तु उसके बाद रोग एवं चर की चौघड़िया रात्रि 12 बजकर 11 मिनट तक पूजन आरम्भ हेतु शुभ नहीं है। अतः 8:52 से पहले पूजन प्रारम्भ हो जाना चाहिए।

महानिशीथ काल : रात्रि 10:51 से 1:31 तक। रात्रि 12:11 मिनट के बाद 1 बजकर 51 मिनट तक लाभ की चौघड़िया अत्यंत शुभ हैं।  इस अवधि में काली उपासना, तंत्रादि क्रियाएं, यज्ञ एवं साधनाएं किये जाते हैं। रात्रि 12:42 से सिंह लग्न भी विशेष प्रशस्त रहेगा।

अखिल भारतवर्षीय ब्राह्मण महासभा चंडीगढ़ इकाई के प्रवक्ता पं मुनीश तिवारी के अनुसार दीपों का त्योहार दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला भारत के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। आध्यात्मिक रूप से यह ‘अन्धकार पर प्रकाश की विजय’ को दर्शाता है।

दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है।  जैन धर्म के लोग इसे महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाते हैं। महावीर स्वामी (वर्तमान अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर) को इसी दिन (कार्तिक अमावस्या) को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसके साथ ही 1619 में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था। इसलिए भी सिख बन्धु इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं।

दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।

प्राचीन काल से भारत में दीवाली को विक्रम संवत के कार्तिक माह में गर्मी की फसल के बाद के एक त्योहार के रूप में दर्शाया गया। पद्म पुराण और स्कन्द पुराण में दीवाली का उल्लेख मिलता है। दीये (दीपक) को स्कन्द पुराण में सूर्य के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है, सूर्य जो जीवन के लिए प्रकाश और ऊर्जा का लौकिक दाता है और जो हिन्दू कैलंडर अनुसार कार्तिक माह में अपनी स्तिथि बदलता है। कुछ क्षेत्रों में दीवाली को यम और नचिकेता की कथा के साथ भी जोड़ते हैं।

महाभारत अनुसार कुछ दीपावली को 12 वर्षों के वनवास व 1 वर्ष के अज्ञातवास के बाद पांडवों की वापसी के प्रतीक रूप में मानते हैं। दीपावली को भगवान विष्णु की पत्नी तथा उत्सव, धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी से जुड़ा हुआ मानते हैं। दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा सागर मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से शुरू होता है। दीपावली की रात वह दिन है जब लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना और फिर उनसे शादी की। मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं और जो लोग उस दिन उनकी पूजा करते है वे आगे के वर्ष के दौरान मानसिक, शारीरिक दुखों से दूर सुखी रहते हैं।

भारत के पूर्वी क्षेत्र उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में हिन्दू लक्ष्मी की जगह काली की पूजा करते हैं, और इस त्योहार को काली पूजा कहते हैं। मथुरा और उत्तर मध्य क्षेत्रों में इसे भगवान कृष्ण से जुड़ा मानते हैं। अन्य क्षेत्रों में, गोवर्धन पूजा (या अन्नकूट) की दावत में कृष्ण के लिए 56 या 108 विभिन्न व्यंजनों का भोग लगाया जाता है और सार्वजनिक रूप से स्थानीय समुदाय द्वारा मनाया जाता है।

दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियाँ हैं। राम भक्तों के अनुसार दीवाली वाले दिन अयोध्या के राजा राम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। उनके लौटने कि खुशी में आज भी लोग यह पर्व मनाते है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रूप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए।

कैसे करें पूजा- 

पं मुनीश तिवारी के अनुसार दीपावली के दिन वृष, सिंह, वृश्चिक आदि स्थिर लग्न में श्रीगणेश, कलश, षोडशमातृका एवं ग्रहपूजनपूर्वक मां लक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। इसके पश्चात महाकाली का दवात के रूप में, महासरस्वती का कलम, बही आदि के रूप में तथा कुबेर का तुला के रूप में सविधि पूजन करना चाहिए। इसके पश्चात निशीथ आदि शुभ मुहूर्त में मंत्र, जप, यन्त्र-सिद्धि आदि अनुष्ठान सम्पादित करने चाहिए। दीपावली के दिन धन प्राप्ति के लिए स्वच्छ स्थान पर आटा, हल्दी, अक्षत एवं पुष्प आदि से अष्टदल कमल बनाकर धन की अधिष्ठात्री मां लक्ष्मी का आवाहन तथा षोडशोपचार सहित पूजन किया जाता है।
– सर्वप्रथम पूजा का संकल्प लें
– श्रीगणेश, लक्ष्मी, सरस्वती जी के साथ कुबेर का पूजन करें।
– ऊं श्रीं श्रीं हूं नम: का 11 बार या एक माला का जाप करें।
– एकाक्षी नारियल या 11 कमलगट्टे पूजा स्थल पर रखें।
– श्रीयंत्र की पूजा करें और उत्तर दिशा में प्रतिष्ठापित करें, देवी सूक्तम का पाठ करें।