भिंड (मध्यप्रदेश).चंबल में100 से ज्यादा हत्या के आरोपीऔर 550 डाकुओं के गैंग केसरदार रहे पूर्व दस्यु पंचम सिंह पर अब फिल्म बन रही है। यह फिल्मउनके हथियार उठाने से लेकर संत बनने तक के सफर पर आधारित है। फिल्म में उनके बेटे संतोष सिंह के जीवन में आए उतार चढ़ाव का भी जिक्र है।प्रजापिता ब्रह्मकुमारी आश्रम इस फिल्म का खर्चा उठा रहा है।
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पंचम सिंह ने 14 साल तक चंबल के बीहड़ों पर राज किया। कत्ल, अपहरण औरडकैती के लगभग 300 से ज्यादा केस उनके खिलाफ दर्ज हुए। मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में उनका आतंक था,लेकिन गांधीवादी समाजसेवी डॉ सुब्बाराव के संपर्क में आने के बाद वे डाकू पंचम सिंह से संत पंचम भाई बन गए।
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अबवेब्रह्मकुमारी आश्रम के माध्यम से लोगों को आध्यात्मपर प्रवचन दे रहे हैं।वे अब तक 25 से ज्यादा जेलों में 400 सेज्यादा बार प्रवचन दे चुके हैं। फिल्म निर्माण के लिए एग्रीमेंट भी साइन हो चुका है। मुंबई की परमज्योति मोशन पिक्चर प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर अनिल चौधरी इस फिल्म को बना रहे हैं।
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पंचम सिंह के मुताबिक, “1958 में पंचायत चुनाव की रंजिश में दूसरे पक्ष के लोगों ने उनके साथ बेरहमी से मारपीट की। उनके पिता पंचम सिंह को बैलगाड़ी में अस्पताल ले गए। जब वे वापस गांव लौटे तो फिर दूसरे पक्ष के लोगों ने उन्हें और उनके पिता को पीटा। इसके बाद भी जब न्याय नहीं मिला तो उनके मन में बदला लेने की भावना पैदा हुई और वे चंबल के बीहड़ में चले गए और डकैत बन गए।
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गांधीवादी समाजसेवी डॉ. सुब्बाराव के संपर्क में आने के बाद 1972 में मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी के सामनेमुरैना जिले के जौरा आश्रम पर पंचम सिंह, भोर सिंह और माधौ सिंह ने सरेंडर किया। 100 से ज्यादा हत्याओं का आरोप होने पर पंचम सिंह, भोर सिंह और माधौ सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई,लेकिन डॉ सुब्बाराव ने राष्ट्रपति से मिलकर आजीवन कारावास में उनकी सजा परिवर्तित कराई। इसके बाद मुंगावली की खुली जेल में वे रहे।
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जेल में उनका संपर्क ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की मुख्य संचालिका दादी प्रकाश से हुआ। उन्हें इंदिरा गांधी ने चुनौती दी थी कि डाकुओं का मन बदल कर दिखाएं। दादीजी से प्रेरित होकर वे संत बन गए। 1980 में जब जेल से बाहर आए तो दो साल बाद ब्रह्मकुमारी आश्रम के लिए करीब 50 लाख रुपए की कीमत का अपना मकान ही दान कर दिया।
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पंचम सिंह की तरह उनके बेटे संतोष सिंह के जीवन में भी काफी उतार चढ़ाव आए। डेढ़ दशक पहले संतोष सिंह भिंड पुलिस का हिस्ट्रीशीटर रहा है। उस पर 25 हजार रुपए का ईनाम रहा, लेकिन ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के संपर्क में आने के बाद वह भी अपराध की राह छोड़कर आध्यात्म के मार्ग पर चल पड़ा है।