खराब खानपान की आदतें और निष्क्रिय जीवनशैली युवाओं के स्वास्थ्य पर डाल रही हैं प्रभाव: वर्ल्ड हेल्थ डे पर डॉक्टरों की सलाह
7 अप्रैल को मनाया जाता है वर्ल्ड हेल्थ डे
चंडीगढ़, 6 अप्रैल 2025: वर्ल्ड हेल्थ डे की थीम “स्वस्थ शुरुआत, आशावान भविष्य” के तहत, फोर्टिस अस्पताल, मोहाली की न्यूट्रिशन और डायटेटिक्स विभाग की प्रमुख डॉ. सोनिया गांधी ने बताया कि बच्चों और किशोरों में बढ़ रही गैर-संक्रामक बीमारियों (एनसीडी) का मुख्य कारण खराब खानपान और निष्क्रिय जीवनशैली है।
डॉ. गांधी ने कहा कि खराब खानपान वाली आदतों वाले बच्चों को उनके स्वस्थ विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं।
उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में युवाओं में स्वास्थ्य समस्याओं में चिंताजनक वृद्धि हुई है, जिसका मुख्य कारण अस्वस्थ खानपान और निष्क्रिय जीवनशैली है। शोध दर्शाते हैं कि ये कारक मोटापा, पीसीओडी, हृदय रोग, इंसुलिन संवेदनशीलता में कमी, पाचन स्वास्थ्य में गिरावट, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली, मेटाबोलिक विकार, एलर्जी और मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य में गिरावट जैसी समस्याओं को जन्म दे रहे हैं, जो आवश्यक पोषक तत्वों की कमी और खाली कैलोरी, हानिकारक एडिटिव्स और रसायनों के अत्यधिक सेवन से जुड़ी हैं।
डॉ. गांधी ने आगे कहा कि खराब खानपान वाली आदतों वाले बच्चों को उनके विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्व नहीं मिलते, जिससे वे या तो कुपोषित रह सकते हैं या अधिक वजन वाले हो सकते हैं। ऐसे बच्चे कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली के चलते अधिक बीमार पड़ते हैं।
युवाओं में खानपान की बदलती प्रवृत्तियों पर बात करते हुए डॉ. गांधी ने प्रोसेस्ड फूड, मीठे पेय और पोषक तत्वों से रहित भोजन के बढ़ते सेवन की ओर इशारा किया।
उन्होंने आगे कहा कि संतुलित और विविध आहार की कमी — जिसमें साबुत अनाज, फल, सब्जियां, प्रोटीन और हेल्दी फैट्स शामिल हों — बच्चों के स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव डालती है। अनियमित खानपान और बार-बार भोजन छोड़ना किशोरों में मोटापे और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देता है।
डॉ. गांधी ने स्क्रीन टाइम में तेजी से हो रही वृद्धि पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि
“टीवी, कंप्यूटर और स्मार्टफोन का अत्यधिक उपयोग न केवल निष्क्रियता से जुड़ा है, बल्कि खराब खानपान की आदतों से भी जुड़ा है। इसमें बिना सोचे-समझे खाना, जरूरत से ज्यादा खाना, और पोषणयुक्त भोजन का कम सेवन शामिल है। शोध बताते हैं कि लंबे समय तक निष्क्रिय रहने से वजन बढ़ता है और कार्डियोमेटाबोलिक बीमारियों का खतरा बढ़ता है, भले ही आहार संतुलित हो।
डॉ. गांधी के अनुसार, कई सामाजिक और पर्यावरणीय कारक इन अस्वस्थ प्रवृत्तियों को बढ़ावा दे रहे हैं, जिनमें शैक्षणिक दबाव, ऑनलाइन फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म की लोकप्रियता, जंक फूड का आकर्षक विज्ञापन, सुरक्षित खेल स्थलों की कमी और बदलती स्वाद प्राथमिकताएं शामिल हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए बहुस्तरीय प्रयासों की आवश्यकता है। उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि बच्चों के लिए अनुकूल माहौल बनाना, स्क्रीन टाइम कम करना, शारीरिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करना और पोषण शिक्षा देना—हर कदम ज़रूरी है। अब समय आ गया है कि माता-पिता, शिक्षक, नीति निर्माता और स्वास्थ्य पेशेवर मिलकर हमारे युवाओं में स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा दें।
डॉ. गांधी ने प्रारंभिक जीवनशैली हस्तक्षेपों के महत्व को दोहराते हुए बताया कि स्वस्थ शुरुआत से ही आशावान भविष्य का निर्माण होता है। बचपन से ही पोषक आहार, नियमित शारीरिक गतिविधि और सजग जीवनशैली को प्रोत्साहित करना अगली पीढ़ी के बेहतर स्वास्थ्य परिणाम सुनिश्चित कर सकता है।