क्या तीन तलाक कानून लागू होने से भारत की मुस्लिम महिलाओं की दिक्कतें कम हो जाएंगी? क्या ये कानून तलाक-ए-बिद्दत से पीड़ित महिलाओं के लिए वरदान साबित होगा? या फिर ये उनकी परेशानियों को बढ़ा देगा. एक तरफ जहां सरकार का दावा है कि ये कानून मुस्लिम महिलाओं को नई शक्ति देगा तो वहीं कुछ जानकारों का मानना है कि ये कानून महिला विरोधी है.
हमने लोक सभा में पेश किए गए Muslim Women (Protection of Rights of Marriage) Bill के अलग-अलग पहलुओं को परखने की कोशिश की है. गुरुवार को ये बिल लोक सभा में पारित कर दिया गया. अब ये बिल राज्य सभा में रखा जाएगा.
लेकिन विपक्षी दल समेत कई संगठन बिल में संसोधन की मांग कर रहे हैं. इस बिल के प्रावधानों का हमने जाएजा लिया-
1. इस बिल में सबसे पहले तलाक-ए-बिद्दत यानी एक साथ तीन बार तलाक कहने की प्रथा को एक तरफा और अस्थिर कहा गया है क्योंकि इसमें पति और पत्नी के बीच सुलह का कोई रास्ता नहीं बचता.
बिल के विरोधियों का कहना है कि मौजूदा कानून में भी सुलह की कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि जैसे ही कोई पति अपनी पत्नी को तीन बार तलाक कहता है तो उसे जेल भेजा जा सकता है.
2. कानून के मुताबिक तलाक-ए-बिद्दत को अमान्य घोषित किया जाता है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पहले ही तलाक-ए-बिद्दत को अमान्य करार दे दिया है फिर इसके लिए कानून बनाने की क्या जरूरत है?
3. तलाक-ए-बिद्दत एक गैरकानूनी प्रक्रिया है और इसे एक दंडनीय अपराध माना जाएगा.
जानकारों का कहना है कि गैर फौजदारी मामले को दंडनीय अपराध के श्रेणी में नहीं रखा जा सकता.
तलाक जैसे घरेलू मामले को हमेशा पहले बातचीत से सुलझाया जाता है. दहेज विरोधी कानून 498-ए में भी बातचीत की प्रक्रिया को प्राथमिक्ता दी गई है. ऐसे मामलों को पहले महिला सेल में भेजा जाता है. बातचीत के विफल होने के बाद ही कानूनी कार्रवाई होती है, लेकिन तलाक-ए-बिद्दत कानून में आपसी बातचीत का कोई प्रावधान नहीं है.
हर क्रिमिनल कानून में आरोपी का मकसद देखा जाता है. तलाक जैसे घरेलू विवाद में पति कभी गुस्से में तलाक कह सकता है. लेकिन उसका मकसद तलाक ही था ये साबित करना पत्नी के लिए मुश्किल होगा. तलाक-ए-बिद्दत कानून इस पर स्पष्ट नहीं है.
4. बिल में कहा गया है कि जब कोई व्यक्ति तलाक-ए-बिद्दत का इसतेमाल करता है तो उसे तीन साल तक की सज़ा होगी और साथ में जुर्माना भी देना होगा.
तीन बार तलाक कहते ही पति को जेल हो सकता है. ऐसे में आपसी बातचीत से सुलह नहीं हो पाएगी. इससे परिवार टूट सकता है. इसका नुकसान महिला को ज्यादा होगा.
तीन साल की सज़ा गंभीर अपराध के लिए दिया जाता है. जानकारों का मानना है कि क्रिमिनल कानून हमेशा ऐसा बनाया जाता है जिसमें जुर्म के अनुकूल ही सजा हो.
5. बिल के प्रावधान के मुताबिक ये जुर्म संज्ञेय और गैर जमानती होगी. इस मामले में पुलिस बिना वारंट के किसी को गिरफ्तार कर सकती है और बिना कोर्ट के आदेश के मुकदमा दर्ज कर जांच शुरु कर सकती है. इस मामले में आरोपी को कोर्ट से ही जमानत मिलेगी, पुलिस थाने से नहीं.
इस प्रावधान का मतलब ये है कि ये ज़रूरी नहीं है कि पत्नी अपने पति के खिलाफ शिकायत दर्ज करे. अगर पुलिस को कहीं से पता चलता है कि किसी ने तलाक-ए-बिद्दत किया है तो पुलिस मुकदमा दर्ज कर जांच कर सकती है. ऐसे में ये कानून किसी को भी परेशान करने के लिए पुलिस को एक बड़ा हथियार मिल जाएगा.
गैरज़मानती अपराध होने की वजह से आरोपी को सीधा जेल भेजा जाएगा. इससे पति-पत्नी के रिश्ते हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे जबकि उनका तलाक कानूनी तौर पर अमान्य होगा. जब उनका तलाक अमान्य होगा तो क्या कोई पति जेल से बाहर आने के बाद अपनी पत्नी को अपने साथ रखेगा. पति के जेल जाने से बच्चों के भविष्य का क्या होगा.
6. तलाक-ए-बिद्दत कानून में महिला को गुजारा भत्ता दिए जाने का प्रावधान है.
बिल ये स्पष्ट नहीं करता कि जेल में बंद पति गुजारा भत्ता कैसे देगा. साथ ही मजिस्ट्रेट को तय करना है कि कितना गुजारा भत्ता देना होगा. इस प्रक्रिया के पूरा होने में कई महीने लग सकते हैं. इस दौरान पत्नी को कोर्ट के चक्कर काटने होंगे और जब तक गुजारा भत्ता तय नहीं होता तब तक पत्नी का गुजारा कैसे चलेगा?
7. तलाक-ए-बिद्दत कानून में बच्चों की कस्टडी मां को दिए जाने का प्रावधान है.
बच्चों की कस्टडी के मामाले में कोर्ट ये तय करता है कि बच्चे का भविष्य किसके साथ बेहतर होगा, लेकिन तलाक-ए-बिद्दत कानून में मां का अधिकार तय करना तर्क संगत नहीं लगता.