एनआईटीटीटीआर चंडीगढ़ ने “राष्ट्र प्रथम” थीम के तहत पुण्यश्लोक रानी अहिल्याबाई होल्कर के जीवन और विरासत पर विशेषज्ञ व्याख्यान आयोजित किए
चंडीगढ़, 29 मई : भारत की सबसे प्रतिष्ठित महिला नेताओं में से एक को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (एनआईटीटीटीआर), चंडीगढ़ ने राष्ट्रवादी थीम “राष्ट्र प्रथम” के अंतर्गत पुण्यश्लोक रानी अहिल्याबाई होल्कर के जीवन और योगदान पर आधारित दो दिवसीय विशेषज्ञ व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन किया।
पहला व्याख्यान 28 मई 2025 को आयोजित किया गया, जिसमें हरियाणा लोक सेवा आयोग की सदस्य डॉ. ममता यादव ने “पुण्यश्लोक रानी अहिल्याबाई होल्कर का जीवन” विषय पर संबोधन दिया। अपने व्याख्यान में डॉ. यादव ने रानी अहिल्याबाई के जीवन का एक प्रेरक वर्णन प्रस्तुत किया, जिसमें उनकी विनम्र शुरुआत, प्रारंभिक संघर्षों और एक दूरदर्शी शासिका तथा आध्यात्मिक नेता के रूप में उनके उत्कर्ष का उल्लेख किया गया। उन्होंने न्याय, जनकल्याण और समावेशी विकास के प्रति रानी के अटूट समर्पण को रेखांकित करते हुए, करुणा और नैतिक मूल्यों पर आधारित उनके शासन को अनुकरणीय बताया।
सत्र का शुभारंभ संस्थान के निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) भोला राम गुर्जर के प्रेरणादायी संबोधन से हुआ। उन्होंने लोकमाता रानी अहिल्याबाई होल्कर की कालजयी विरासत को रेखांकित करते हुए उन्हें एक आदर्श प्रशासक बताया, जिन्होंने मंदिर निर्माण, सामाजिक सेवा और नैतिक शासन के माध्यम से “राष्ट्र प्रथम” की भावना को सर्वोपरि रखा। उन्होंने शिक्षकों और छात्रों से उनके जीवन से प्रेरणा लेने और निःस्वार्थ नेतृत्व तथा सेवा की भावना को आत्मसात करने का आह्वान किया।
व्याख्यान श्रृंखला 29 मई 2025 को दूसरे सत्र के साथ आगे बढ़ी, जिसमें यूजीसी-मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र (एमएमटीटीसी), पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ की कार्यक्रम निदेशक प्रोफेसर जयंती दत्ता ने “शासन में पुण्यश्लोक रानी अहिल्याबाई होल्कर का योगदान” विषय पर विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने रानी के शासनकाल की रणनीतिक, प्रशासनिक और सुधारात्मक विशेषताओं का विश्लेषण करते हुए उन्हें सुशासन, लोककल्याण योजनाओं की दक्षता और धार्मिक सहिष्णुता की प्रतीक बताया। प्रो. दत्ता ने रेखांकित किया कि अहिल्याबाई की नीतियां नैतिक नेतृत्व और महिला सशक्तिकरण आधारित प्रशासन के आदर्श उदाहरण हैं।
इस अवसर पर उपस्थित सामाजिक कार्यकर्ता श्री सुनील देवधर ने रानी अहिल्याबाई को “लोकमाता” की संज्ञा देते हुए कहा कि वे कला और संस्कृति की संरक्षक थीं, जिन्होंने अपनी राजधानी महेश्वर को साहित्यिक और कलात्मक गतिविधियों का केंद्र बना दिया। उन्होंने कहा कि रानी अहिल्याबाई न केवल एक महान शासिका थीं, बल्कि एक दूरदर्शी नेतृत्वकर्ता भी थीं, जिनके शासन में न्याय निष्पक्ष रूप से कार्यान्वित होता था। उनकी विरासत समकालीन शासन मॉडल को समावेशिता, सांस्कृतिक संरक्षण और सामाजिक कल्याण की दिशा में प्रेरित करती है। ऐसे नेतृत्व मूल्यों को आज के शैक्षिक समुदाय को आत्मसात करना चाहिए, ताकि एक शांतिपूर्ण और सतत समाज का निर्माण हो सके।
दोनों सत्रों में संकाय सदस्यों, शोधार्थियों और कर्मचारियों की उत्साहपूर्ण सहभागिता देखी गई, जिससे ऐतिहासिक नेतृत्व और वर्तमान समय में उसकी प्रासंगिकता पर गहन विमर्श हुआ। कार्यक्रम का समापन धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ, जिसमें शैक्षणिक संवाद और चिंतन के माध्यम से राष्ट्रीय मूल्यों के संवर्धन के लिए संस्थान की प्रतिबद्धता को दोहराया गया।
इस व्याख्यान श्रृंखला के माध्यम से, एनआईटीटीटीआर चंडीगढ़ ने नागरिक चेतना के संवर्धन और उन ऐतिहासिक विभूतियों के योगदान के प्रति सम्मान प्रकट करने की अपनी भावना को पुनः पुष्ट किया, जिन्होंने “राष्ट्र प्रथम” की भावना को जीवन में उतारा।